बंगाल गवर्नर सी वी आनंद बोस को हैरेसमेंट केस में राजभवन ने क्लीन चिट दे दी है। राजभवन ने गवर्नर के खिलाफ वहां काम करने वाली महिला कर्मचारी के आरोपों को निराधार बताया। राजभवन ने पुडुचेरी के एक रिटायर्ड जज से गवर्नर के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करवाई थी।
न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, शनिवार (20 जुलाई) को रिपोर्ट सामने आई है। इसमें बताया गया कि घटना के प्रत्यक्षदर्शी और आसपास मौजूद लोगों की गवाही की पड़ताल से पता चलता है कि शिकायतकर्ता का आचरण, समय और स्ट्रैटजी शक पैदा करती हैं। महिलाओं के आरोप और उन्हें लगाने का तरीका संदेह के घेरे में है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘2 मई, 2024 को घटना के दिन प्रधानमंत्री मोदी राजभवन दौर पर थे। उनके दौरे को लेकर स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (SPG) ने पहले से ही राजभवन में सिक्योरिटी का जिम्मा ले लिया था। ऐसे में राज्यपाल महिला के साथ छेड़छाड़ के लिए उस दिन को चुनेंगे, यह असंभव लगता है।’
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘राजभवन की अन्य महिला कर्मचारियों ने गवाही दी कि राज्यपाल ने उनके साथ कभी गलत व्यवहार नहीं किया। इसलिए गवर्नर पर लगे आरोप शक पैदा करते हैं। इन आरोपों के पीछे एक भयानक मकसद हो सकता है।’
TMC बोली- राजभवन में एक कॉमेडी सीरियल चल रहा
तरफ, सीएम ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने राजभवन की जांच रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं। TMC नेता कुणाल घोष ने कहा है कि राजभवन के भीतर एक कॉमेडी सीरियल चल रहा है। बंगाल गवर्नर अपने खिलाफ खुद ही जांच कैसे करा सकते हैं? वो भी उनसे जो उनका परिचित है। क्या यह कॉमेडी है?
कुणाल घोष ने कहा कि अगर वह निर्दोष हैं तो उन्हें कहना चाहिए कि वह आर्टिकल 361 का गलत फायदा नहीं उठाएंगे और जांच का सामना करने के लिए तैयार हैं। आर्टिकल 361 के बारे में सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है, हम उसका इंतजार कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट राज्यपालों को आपराधिक मुकदमे से मिली छूट की जांच को तैयार
इधर, सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार (19 जुलाई) को संविधान के आर्टिकल 361 की रूपरेखा की जांच करने के लिए तैयार हो गया। आर्टिकल 361 राज्यपालों को किसी भी प्रकार के आपराधिक मुकदमे से पूरी तरह छूट देता है।
दरअसल, गवर्नर पर राजभवन की एक महिला संविदा कर्मचारी ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। महिला ने 2 मई को हरे स्ट्रीट थाने में राज्यपाल के खिलाफ लिखित शिकायत दी थी। उसने आरोप लगाया कि वो 24 मार्च को स्थायी नौकरी का निवेदन लेकर राज्यपाल के पास गई थी। तब राज्यपाल ने बदसलूकी की।
2 मई को फिर यही हुआ तो वह राजभवन के बाहर तैनात पुलिस अधिकारी के पास शिकायत लेकर गई। हालांकि, संवैधानिक प्रावधान के चलते उन पर कोई केस दर्ज नहीं हुआ। इसके बाद महिला कर्मचारी ने राज्यपाल को छूट देने वाले आर्टिकल 361 की न्यायिक जांच की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश- केंद्र को भी पार्टी बनाएं
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से मदद मांगी है। साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार को भी नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता महिला कर्मचारी से कहा है कि वह अपनी याचिका में केंद्र को भी पार्टी बनाए।
महिला ने अपनी याचिका में पश्चिम बंगाल पुलिस से मामले की जांच करने और पीड़िता और उसके परिवार को सुरक्षा देने के साथ-साथ उसकी प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए सरकार से मुआवजा दिलाने की भी मांग की है।