कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे (83 साल) को मंगलवार को बेंगलुरु के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनके बेटे और कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे ने बुधवार को X पर इसकी जानकारी दी।
प्रियांक ने लिखा- मल्लिकार्जुन खड़गे को पेसमेकर लगाने की सलाह दी गई है और उन्हें पहले से प्लानिंग के तहत अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनकी हालत स्थिर है और वे बेहतर महसूस कर रहे हैं। आपकी चिंता और शुभकामनाओं के लिए आभारी हूं।
प्रियांक से पहले पार्टी सूत्रों ने PTI को बताया कि खड़गे को मंगलवार को बुखार और पैर में दर्द की शिकायत के बाद बेंगलुरु के एमएस रमैया अस्पताल ले जाया गया। वहां के डॉक्टर उनकी देखभाल कर रहे हैं।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बुधवार को खड़गे से अस्पताल जाकर मुलाकात की। बाद में पत्रकारों को बताया- उन्हें थोड़ी बेचैनी हो रही थी। वे अब ठीक हैं। बात कर रहे हैं। उन्हें कल छुट्टी दे दी जाएगी।
मल्लिकार्जुन खड़गे पिछले साल 29 सितंबर को जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में एक रैली को संबोधित करते हुए मंच पर बेहोश हो गए थे। भाषण देते हुए खड़गे की आवाज धीमी होती चली गई और अचानक वे बेसुध हो गए। इसके चलते भीड़ में अफरा-तफरी मच गई।
मंच पर खड़े लोगों ने उन्हें सहारा देकर बैठाया। इसके बाद उनके भाषण को रोक दिया गया। तबीयत ठीक होने के बाद खड़गे वापस मंच पर आए और कहा कि मैं 83 साल का हो गया हूं, लेकिन इतना जल्दी मरने वाला नहीं हूं। जब तक मोदी को नहीं हटाएंगे, मैं जिंदा रहूंगा।
खड़गे अक्टूबर 2022 से कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे अभी राज्यसभा में सांसद और नेता प्रतिपक्ष हैं। खड़गे के परिवार में पत्नी राधाबाई के अलावा तीन बेटियां और दो बेटे हैं।
उनका एक बेटा कर्नाटक के बेंगलुरु में स्पर्श हॉस्पिटल का मालिक है, जबकि दूसरा बेटा प्रियांक विधायक है। 2019 चुनाव के दौरान खड़गे ने अपनी संपत्ति करीब 10 करोड़ बताई थी।
50 साल से ज्यादा समय से पॉलिटिक्स में सक्रिय खड़गे को 1969 में कर्नाटक के गुलबर्गा शहर में कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली थी। खड़गे ने एक इंटरव्यू में बताया कि शुरुआत में वे पार्टी के प्रचार के लिए पर्चा खुद बांटते थे और स्लोगन दीवारों पर लिखते थे।
खड़गे 1972 में पहली बार विधायक बने। इसके बाद वे 2008 तक लगातार 9 बार विधायक चुने गए। साल 2009 में पार्टी ने उन्हें गुलबर्गा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। इसके बाद वे लोकसभा पहुंचे।
वह लगातार दो बार 2009 और 2014 में सांसद बने। केंद्र की पिछली UPA सरकार (मनमोहन सिंह कैबिनेट) में उन्हें दो बार मंत्री पद मिला। वे साल 2009 से 2013 तक श्रम एवं रोजगार मंत्री रहे। फिर 2013 से 2014 तक रेल मंत्री रहे।

