कर्नाटक में लिंगासुगुर से भाजपा विधायक मनप्पा डी वज्जल के PA (पर्सनल असिस्टेंट) प्रवीण कुमार केपी के सस्पेंशन पर स्टे लगा दिया गया है। यह रोक कर्नाटक स्टेट एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल ने लगाई है।
दरअसल प्रवीण कुमार 12 अक्टूबर को RSS की ड्रेस पहनकर संगठन के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। राज्य सरकार ने उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए सस्पेंड कर दिया था। प्रवीण ने इस फैसले के खिलाफ ट्रिब्यूनल में अपील की।
ट्रिब्यूनल के ज्यूडिशियल मेंबर एस वाई वटवती की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को अंतरिम आदेश पारित किया। साथ ही राज्य को अपनी आपत्तियां दर्ज करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी।
कर्नाटक में RSS शाखा पर प्रतिबंध को लेकर राज्य सरकार काफी समय से प्रयास कर रही है। हालांकि कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ बेंच ने 28 अक्टूबर को राज्य सरकार के आदेश पर स्टे लगा दिया, जिसमें बिना परमिशन सरकारी जगहों पर RSS की शाखा लगाने और 10 से ज्यादा लोगों के इकट्ठे होने पर रोक लगा दी गई थी।
राज्य सरकार का फैसला कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे के उस सुझाव के बाद आया था, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक जगहों पर RSS की गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग की थी। इसके बाद कैबिनेट ने 18 अक्टूबर को फैसला किया था कि सार्वजनिक जगहों, सड़कों और सरकारी परिसरों में बिना परमिशन के पथ संचलन या शाखा नहीं लगाई जा सकेगी।
जस्टिस नागप्रसन्ना की सिंगल बेंच ने पूछा कि क्या कर्नाटक सरकार इस आदेश से कुछ और हासिल करना चाहती है? हाईकोर्ट ने सरकार को मामले पर दलील देने के लिए एक दिन का समय दिया और राज्य सरकार समेत होम डिपार्टमेंट, DGP, हुबली पुलिस कमिश्नर को नोटिस जारी किया।
राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ हुबली की पुनश्चितना सेवा संस्था ने याचिका दायर की थी। सीनियर एडवोकेट अशोक हरनहल्ली ने कोर्ट में कहा कि सरकार ने जो नियम बनाया है, वह संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।
हरनहल्ली ने कहा कि सरकारी आदेश के अनुसार अगर कोई पार्टी पार्क या मैदान में भी आयोजित हो, और वहां 10 से ज्यादा लोग इकट्ठा हों, तो इसे गैर-कानूनी माना जाएगा। उन्होंने यह भी पूछा कि जब पहले से पुलिस एक्ट लागू है तो इस तरह का नया आदेश क्यों बनाया गया।
ऑर्डर में कहा गया है कि सरकार ने बिना अनुमति के 10 या उससे अधिक लोगों के जमावड़े को अपराध मानकर सार्वजनिक जगहों जैसे सड़कों, पार्कों, मैदानों और झीलों में प्रवेश पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान द्वारा मिले अधिकारों को किसी भी सरकारी आदेश के माध्यम से छीना नहीं जा सकता।

