एड गुरु पीयूष पांडे का शनिवार को मुंबई के शिवाजी पार्क श्मशान घाट में अंतिम संस्कार कर दिया गया। उन्हें आखिरी विदाई देने के लिए बॉलीवुड से अमिताभ और अभिषेक बच्चन समेत कई लोग पहुंचे।
परिवार ने पोस्टर लगाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। जिस पर लिखा- वेल प्लेड कैप्टन। पीयूष का निधन 24 अक्टूबर को हुआ था। वे कुछ समय पहले एक कॉन्फ्रेंस के लिए दिल्ली गए थे, वहां उन्हें इन्फेक्शन हो गया। पहले उनको निमोनिया हुआ, फिर चिकनपॉक्स हो गया। इससे उनकी हालत बिगड़ती गई।
पीयूष पांडे कहा करते थे कि जिंदगी और विज्ञापन दोनों का मकसद है जुड़ना, जीतना नहीं। वे कहते थे- कहानी वह होती है जो दिल से निकले, तभी वह कानों में नहीं, दिमाग में बसती है।
पीयूष 27 साल की उम्र में विज्ञापन जगत से जुड़ गए थे। उन्होंने शुरुआत अपने भाई प्रसून पांडे के साथ की। दोनों ने रोजमर्रा के उत्पादों के लिए रेडियो जिंगल्स की आवाज दी थी।
1982 में विज्ञापन कंपनी ओगिल्वी से की। 1994 में उन्हें ओगिल्वी के बोर्ड में नॉमिनेट किया गया। पीयूष को 2016 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा, 2024 में उन्हें LIA लीजेंड अवॉर्ड भी मिला।
फेविकॉल का “ट्रक वाला विज्ञापन”: साल 2007 में आया था। इसमें एक साधारण चिपकाने वाले गोंद को पीयूष ने ऐसा बदला कि हर घर में फेमस हो गया। विज्ञापन में एक ट्रक के ऊपर ढेर सारे लोग बैठे हुए होते हैं और ऊबड़ खाबड़ सड़क पर वह गिरते नहीं और गाड़ी चलती रहती है। इस एड ने ग्लू को फेविकोल में बदल कर रख दिया। ना सिर्फ इस एड को कई अवॉर्ड मिले बल्कि दर्शकों के दिलों में यह छप गया।
कैडबरी का “क्रिकेट वाला विज्ञापन”: साल 2007 में आया था। इसमें भारतीय क्रिकेट के लिए प्यार दिखाया गया है। एक बच्चा छक्का मारकर खुशी से नाचने लगता है, तो पूरा मोहल्ला उसके साथ झूम उठता है। पांडे की आवाज ने इसे और भी मजेदार बना दिया। वहीं “कुछ खास है जिंदगी में!” लाइन ने लोगों से जोड़ दिया।
एशियन पेंट्स का “हर घर कुछ कहता है”: साल 2002 में आया विज्ञापन ‘हर घर कुछ कहता है’। 2002 में एक परिवार की कहानी बताई गई, जहां पिता की यादें दीवारों पर जीवित हो उठती हैं। टैगलाइन “हर घर कुछ कहता है” ने लाखों घरों को छुआ और एशियन पेंट्स मार्केट लीडर बन गया।

