सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को डिटेंशन सेंटर्स से जुड़े मामले की सुनवाई की। इस दौरान 63 विदेशी घोषित लोगों को उनके देश भेजने की जगह, डिंटेशन सेंटर्स में रखने के लिए फटकार लगाई। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां ने असम सरकार से पूछा कि क्या आप इसके लिए किसी मुहूर्त का इंतजार कर रहे हैं।
असम सरकार ने कोर्ट में दावा किया कि इन लोगों का निर्वासन संभव नहीं था क्योंकि उन्होंने यह नहीं बताया कि वे किस देश के रहने वाले हैं। बेंच ने 14 दिन में इन लोगों को वापस भेजने का निर्देश दिया।
आपने बंदियों का निर्वासन शुरू करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया है कि आपको उनके पते नहीं मालूम हैं। इसकी चिंता क्यों होनी चाहिए?
आप उनकी नागरिकता की स्थिति जानते हैं। फिर आप उनका पता मिलने तक कैसे इंतजार कर सकते हैं? यह दूसरे देश को तय करना है कि उन्हें कहां जाना चाहिए।
एक बार किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित कर देते हैं, तो अगला तार्किक कदम उठाना पड़ता है।उन्हें अनंत काल तक हिरासत में नहीं रख सकते।
असम में कई विदेशी हिरासत केंद्र हैं। आपने कितने लोगों को निर्वासित किया है? दो हफ्ते में हलफनामा देकर बताएं।
केंद्र सरकार को भी नोटिस, 1 महीने में जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को भी नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा- सरकार को यह बताना होगा कि ऐसे व्यक्ति जिनकी राष्ट्रीयता ज्ञात नहीं है, उन मामलों को किस तरह से निपटाया जाना है, क्योंकि वे न तो भारतीय नागरिक हैं और न ही उनकी असली नागरिकता पता है। हम सरकार को हलफनामा दाखिल करने के लिए एक महीने का समय देते हैं।
कोर्ट ने कहा- सरकार को उन घोषित विदेशियों का ब्यौरा भी रखना चाहिए जो भारतीय नागरिक नहीं हैं। और उन लोगों का ब्यौरा भी जो अब तक रिपोर्ट किए गए हैं। इनके डिपोर्टेशन के तरीकों के बारे में भी ब्यौरा दिया जाए। साथ ही आंकड़ों की जानकारी भी शेयर करें।