भारत में मेड इन चाइना – राहुल गांधी विपक्ष के नेता के तौर पर पहली बार विदेश दौरे पर हैं। वे रविवार को अमेरिका के टेक्सास राज्य पहुंचे।
यहां उन्होंने 2 कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। पहले उन्होंने डलास में भारतीय समुदाय के लोगों से मुलाकात की।
इसके बाद राहुल गांधी ने सोमवार को यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के छात्रों से भारतीय राजनीति, इकोनॉमी और भारत जोड़ो यात्रा समेत कई मुद्दों पर चर्चा की।
भारत में सब मेड इन चाइना है। चीन ने प्रोडक्शन पर ध्यान दिया है
इसलिए चीन में रोजगार की दिक्कतें नहीं हैं।”
कार्यक्रम में इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने कहा, “राहुल गांधी पप्पू नहीं है, वे पढ़े-लिखे हैं और किसी भी मुद्दे पर गहरी सोच रखने वाले स्ट्रैटजिस्ट हैं।”
कार्यक्रम में राहुल गांधी ने विपक्ष के नेता के तौर पर जिम्मेदारी, भारत के आर्थिक हालात, रोजगार समेत 6 मुद्दों पर अपनी राय रखी। जानिए उन्होंने क्या कहा…
विपक्ष में अपने रोल पर…मेरा काम राजनीति में प्रेम लाना
मेरा रोल संसद में सरकार के खिलाफ बोलना और उन्हें तानाशाह बनने से रोकने तक सीमित नहीं है। मुझे लगता है कि मेरा रोल भारत की राजनीति में प्यार, सम्मान और विनम्रता लाना है।
प्यार और सम्मान सिर्फ ताकतवर लोगों के लिए नहीं,
बल्कि उन सबके लिए जो देश को बनाने में जुटे हैं।
भारत में मेड इन चाइना – अमेरिका की तरह भारत
में भी कोई राज्य दूसरे से सुपीरियर (ताकतवर) नहीं है।
- कोई धर्म, भाषा किसी दूसरी भाषा से सुपीरियर नहीं है।
- लोगों के विचारों को उनकी जाति, भाषा, धर्म, परंपरा या फिर इतिहास की परवाह किए बिना जगह दी जानी चाहिए।
RSS को लगता है भारत एक विचार पर बना है। हमें लगता है कि भारत कई विचारों से मिलकर बना है।
चुनाव में लाखों को लगा कि प्रधानमंत्री संविधान पर हमला कर रहे हैं।
इसलिए चुनाव के वक्त जब मैंने संविधान हाथ में उठाया तो लोग समझ गए कि BJP हमारी परंपरा, भाषा, राज्यों और हमारे इतिहास पर हमला कर रही है।
मैंने संसद में अपने पहले भाषण में अभय मुद्रा का जिक्र किया। BJP को यह बर्दाश्त नहीं हुआ।
वे इसे समझ नहीं पाए, लेकिन हम इसे समझाकर रहेंगी। चुनाव के बाद लोगों में BJP का डर खत्म हो गया।
भारत की राजनीति पर…बोलने से ज्यादा जरूरी सुनना
भारतीय राजनीति में सुनना, बोलने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।
सुनने का मतलब है खुद को दूसरे की जगह पर रखना।
अगर कोई किसान मुझसे बात करता है तो मैं खुद को उनके रोजमर्रा के जीवन में शामिल करने की कोशिश करूंगा और समझूंगा कि वे क्या कहना चाह रहे हैं।
सुनना बुनियादी बात होती है। इसके बाद किसी मुद्दे को गहराई से समझना होता है।
हर एक मुद्दे को नहीं उठाना चाहिए। जिस मुद्दे को हम नहीं उठाना चाहते हैं, उसे भी अच्छी तरह से समझना चाहिए।
भारत जोड़ो यात्रा पर…लोगों तक पहुंचना था इसलिए पैदल चला
भारत में कम्युनिकेशन के चैनल बंद हो गए थे। लोकसभा में बोलते थे तो वह टेलीविजन पर नहीं चलता था। मीडिया वह नहीं चलाता था, जो हम कहते थे। सब कुछ बंद था। लंबे समय तक हमें समझ नहीं आ रहा था कि जनता से कैसे बात करें।
फिर हमने सोचा कि मीडिया हमें लोगों तक नहीं ले जा रहा था तो डायरेक्ट चले जाओ।
इसलिए हमने यह यात्रा की। शुरुआत में मुझे घुटनों में दिक्कत हुई।
मैंने सोचा यात्रा करने का मैंने यह कैसा फैसला ले लिया, लेकिन कुछ दिनों बाद यह आसान लगने लगा।
नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने वाला स्लोगन भी मेरा नहीं।
- यात्रा के दौरान एक शख्स मेरे पास आया।
- उसने मुझसे बोला- मैं जानता हूं आप क्या कर रहे हो।
- मैंने पूछा क्या कर रहा हूं?
- तो वह बोला- आप नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हो।
एक महिला मेरे पास आईं। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा। मैंने पूछा क्या हुआ?
उन्होंने कहा कि मुझे मेरा पति मार रहा था। मैं भागकर आई हूं।
- पुलिस को बताएंगे तो वह और मारेगा।
- मैंने यात्रा में समझा कि हिंदुस्तान में कई महिलाओं के साथ मारपीट होती है।
- यात्रा में मुझे लोगों के सेंटिमेंट के बारे में पता चला।
- मुझे यात्रा में पता चला कि हमारा देश क्या चाहता है और हमारा देश क्या और कैसे महसूस करता है।
राहुल ने कहा कि भारत में देवता का मतलब सिर्फ भगवान नहीं होता है।
देवता वह शख्स होता है जो अंदर जैसा महसूस करता है,
वैसा ही बाहर उसके एक्सप्रेशन दिखते हैं। इसे देवता कहा जाता है।
ऐसा ही हमारी पॉलिटिक्स में होता है।
खुद के मंसूबों को खत्म कर लोगों के बारे में सोचना चाहिए।
जैसा जनता महसूस करती है, वैसे ही नेता एक्सप्रेशन देता है।
खुद के आइडिया खत्म कर लोगों के बारे में सोचना ही देवता होना होता है।
भगवान राम, बुद्ध, महात्मा गांधी जैसे लीडर्स ऐसे ही थे।
यही हिंदुस्तान के नेता और अमेरिका के नेताओं में भी फर्क है।