New Delhi/Atulya Loktantra: भारत में 2018 में तपेदिक के करीब 5.4 लाख मामले दर्ज ही नहीं हुए। ऐसा तब हुआ हैै जबकि भारत इस बीमारी से सबसे ज्यादा जूझ रहे आठ देशों में शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2018 में तपेदिक मरीजों की संख्या में पिछले साल की तुलना में करीब 50,000 की कमी आई।
साल 2017 में भारत में टीबी के 27.4 लाख मरीज थे जो साल 2018 में घटकर 26.9 लाख रह गए। एक लाख लोगों पर टीबी मरीजों की संख्या साल 2017 के 204 से घटकर साल 2018 में 199 हो गई। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में 30 लाख टीबी के केस राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम में दर्ज नहीं हो पाते। भारत में 2018 में टीबी के करीब 26.9 लाख लाख मामले सामने आए और 21.5 लाख मामले भारत सरकार के राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत दर्ज हुए। यानी 5,40,000 मामले इसमें जगह नहीं पा सके।
निष्प्रभावी दवा के मामले बढ़े
टीबी के इलाज की कारगर दवा रिफामसिन के हताश करने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इस दवा के निष्प्रभावी मामलों की संख्या 2017 में 32 फीसदी थी। यह संख्या 2018 में बढ़कर 46 फीसदी हो गयी। हालांकि टीबी के नये मरीज और दोबारा इसकी चपेट में आने मरीजों की के उपचार की सफलता दर 2016 के 69 फीसद से बढ़कर 2017 में 81 फीसदी हो गई।
कई तरह की है चुनौतियां
रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य सेवा का बड़ा ढांचा कमजोर है और कर्मचारियों की कमी की समस्या देखने को मिल रही है। इसके अलावा बीमारी का शुरुआती दौर में पता लगने में दिक्कत और सही इलाज का मिलना चुनौती बनी हुई है। खराब रिपोर्टिंग भी एक प्रमुख समस्या है।