पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत का कहना है कि आधुनिक विज्ञान के युग में भी हम गृहीय परिघटनाओं को समझने में नाकाम हैं। ऐसी स्थिति में विनाशकारी आपदाओं को कैसे टाला जा सकता है। वे भविष्य में भी होंगी। जाहिर है उस स्थिति में पर्यावरणीय खतरे बढे़ंगे। ऐसी दशा में समय रहते उसे संभालने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। ताकि आपदा से कम से कम मानव जीवन , चल व अचल संपत्ति तथा प्राकृतिक संसाधनों की हानि न हो।
हमारे यहाँ धन का अभाव नहीं, बल्कि सुशासन और सुशासकों का अभाव है। यह याद रखना होगा कि कुदरती कहर की पूर्व चेतावनियां उतनी जाने नहीं बचातीं, जितनी कहर के बाद उससे जूझने की तैयारी बचाती है। यह घड़ी परीक्षा की घड़ी होती है। यदि हम चाहते हैं कि हमारी धरती निरापद घूमती रहे और हर दिन नया साल आये तो हमें हर तरह से धरती और उसके तमाम संसाधनों, संपदा की रक्षा करनी होगी।
जरूरत है पर्यावरण के कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाये। ध्यान देने वाली अहम बात यह है कि समंदर अब पहले से ज्यादा खतरनाक होते जा रहे हैं। सुनामी का कहर भविष्य में अब पहले से ज्यादा दूर तक के इलाके में फैल सकता है। बीते सालों में इस दिशा में काफी कुछ प्रयास-सुधार हुए हैं। फिर भी बहुत कुछ करना बाकी है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि सरकार सुनामी के प्रकोप से सबक लेकर त्वरित कुछ ऐसा करे ताकि हम अपनी सुरक्षा के प्रति भविष्य में कुछ अधिक सजग हो सकें। रावत ने यह बातें सुनामी के 15 साल पूरे होने पर आयोजित एक समारोह में कहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद् है)