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Home » प्लास्टिक अपने कफन में दफन करके ही दम लेगा
विचार

प्लास्टिक अपने कफन में दफन करके ही दम लेगा

Deepak Sharma
Last updated: 3 June, 2021
By Deepak Sharma
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अतुल्य लोकतंत्र के लिए लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”

की कलम से •••

“प्लास्टिक प्रदूषण से उठो युद्ध करो, कुछ भी न प्रकृति देवी के विरूद्ध करो, मानवता का अस्तित्व बचाने के लिए, संसार के पर्यावरण को शुद्ध करो।”विज्ञान ने ऐसी बहुत सी खोज की है जो जो अभिशाप बन गई है। ऐसा ही एक अभिशाप है प्लास्टिक। प्लास्टिक शब्द लेटिन भाषा के प्लास्टिक्स तथा ग्रीक भाषा के शब्द प्लास्टीकोस से लिया गया है।दिन की शुरूआत से लेकर रात में बिस्तर में जाने तक अगर ध्यान से गौर किया जाए तो आप पाएंगे कि प्लास्टिक ने किसी न किसी रूप में आपके हर पल पर कब्जा कर रखा है। पूरे विश्व में प्लास्टिक का उपयोग इस कदर बढ़ चुका है और हर साल पूरे विश्व में इतना प्लास्टिक फेंका जाता है कि इससे पूरी पृथ्वी के चार घेरे बन जाएं। हमारे भारत देश में 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिदिन 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट निकलता है। जो कि दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। जबकि अगर निर्माण की बात करे तो भारत में प्रतिवर्ष लगभग 500 मीट्रिक टन पॉलीथिन का निर्माण होता है, लेकिन इसके एक प्रतिशत से भी कम की रीसाइक्लिंग हो पाती है। वैसे इस समय विश्व में प्रतिवर्ष प्लास्टिक का उत्पादन 10 करोड़ टन के लगभग है और इसमें प्रतिवर्ष उसे 4 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। इन आंकड़ों से प्लास्टिक से भविष्य में होने वाले प्रभावों का आकलन किया जा सकता हैं।

प्लास्टिक जिसने पूरी दुनियां के नाक में दम कर रखा है, एक ऐसा कार्बनिक योगिक है जो एक विशिष्ट श्रृंखला से बनता है। यह एक सिंथेटिक पॉलिमर है। पॉलिमर यह अणुओं का भार है जो कई मोनोमर के शृंखला से बना हुआ हैं । पॉलिमर को दो प्रकार में वर्गीकृत किया गया है। नैसर्गिक प्रकार के प्लास्टिक होते हैं।आकार यांत्रिक बल और गर्मी के प्रभाव से प्लास्टिक को एक वांछित आकार में बनाया जा सकता है। कोयला, पेट्रोलियम, सेल्यूलोज, नमक, सल्फर जैसे प्लास्टिक के कच्चे माल के निर्माण में, चूना पत्थर, हवा, पानी आदि का उपयोग किया जाता है। प्लास्टिक के प्रकार में थर्माप्लास्टिक औऱ थर्मोसेटिंग प्लास्टिक आते है। इसके आलावे प्लास्टिक के मिश्रण को विभिन्न के मिश्रण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है – प्लास्टिसाइज़र, एक्सटेंडर के भराव, लुब्रिकेंट, थर्माप्लास्टिक और पिगमेंट जैसी सामग्री थर्मोसेटिंग रेजिन उनके उपयोगी गुणों जैसे ताकत, टिकाऊ आदि को बढ़ाने के लिए करता है।

हानिकारक प्लास्टिक की चीजों का जीवन में बेतहाशा उपयोग हमारे शरीर के आंतरिक अंगों पर जानलेवा प्रभाव डालता है और कैंसर का एक प्रमुख कारण बनता है। घर के फर्नीचर, रसोई के बरतन, कप, प्याली, गिलास, थालियों, पानी के घड़ों और पानी की बोतलों से लेकर, दवाओं सी शीशियां सब कुछ में हम प्लास्टिक के विकल्प अपनाते हैं और कभी सोचते नहीं कि अनजाने में हमारे पेट में, फेफड़ों में, किडनी तक में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण कितनी बड़ी मात्रा में पहुंच रहे हैं। प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण हमारे शरीर के लिए धीमे जहर की तरह हैं।

रोजमर्रा की जिंदगी में हम जो प्लास्टिक काम में लाते हैं वह बहुत खतरनाक किस्म का रसायन पोली विनायल क्लोराइड है। इसे रसायनों के रक्त में घुल जाने से अनेक बीमारी की आशंका बढ़ जाती है और गर्भ में पल रहा बच्चा भी अनेक रोगों के गिरफ्त में आ सकता है । प्लास्टिक की थैली भी बहुत खतरनाक है । प्लास्टिक नॉन-बॉयोडिग्रेडेबल होता है। नॉन-बॉयोडिग्रेडेबल ऐसे पदार्थ होते हैं जो बैक्टीरिया के द्वारा ऐसी अवस्था में नहीं पहुंच पाते जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान न हो। कचरे की रीसाइक्लिंग बेहद जरूरी है क्योंकि प्लास्टिक की एक छोटी सी पोलिथिन को भी पूरी तरह से छोटे पार्टिकल्स में तब्दील होने में हजारों सालों का समय लगता है और इतने ही साल लगते हैं प्लास्टिक की एक छोटी सी पोलिथिन को गायब होने में।

हर साल जो झुगियां जलकर राख हो जाती है उसमें पीवीसी का बड़ा हाथ होता है। यह बेहद निचले दर्जे का प्लास्टिक होता है, जो आग जल्दी पकड़ता है वह बुझने में घंटो लग जाता है।शोधकर्ताओं ने अपने अध्‍ययन में पाया है कि तकरीबन नौ तरह की प्लास्टिक के कण खाने-पीने एवं अन्य तरीकों से इंसान के पेट में पहुंच रहे हैं। प्लास्टिक के ये कण लसीका तंत्र और लीवर तक पहुंच कर इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित कर सकते हैं।अध्ययन में पाया गया है कि हर इंसान एक हफ्ते में औसतन पांच ग्राम प्लास्टिक निगल रहा है।

समुद्र में लगभग 1950 से 2016 के बीच के 66 वर्षों में जितना प्लास्टिक जमा हुआ है, उतना अगले केवल एक दशक में जमा हो जाएगा। इससे महासागरों में प्लास्टिक कचरा 30 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। यही नहीं हर साल उत्पादित होने वाले कुल प्लास्टिक में से महज 20 फीसद ही रिसाइकिल हो पाता है। 39 फीसदी प्‍लास्टिक कचरा जमीन के अंदर दबाकर नष्ट किया जाता है और 15 फीसदी जला दिया जाता है। 1950 में दुनिया-भर में प्लास्टिक उत्पादन 1.5 मिलियन टन था। 2015 आते-आते यह 322 million टन हो गया। यह हर साल औसतन 8.6% की दर से बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में जैसे-जैसे प्लास्टिक का प्रयोग बढ़ा है, वैसे-वैसे इसकी वजह से दिक्कतें भी बढ़ी हैं।

प्लास्टिक के हजारों सालों तक खराब नहीं होने के कारण यह महासागरों में पड़ा रहता है प्लास्टिक से धीरे धीरे जहरीले पदार्थ निकलते रहते हैं जो कि जल में घुल जाते हैं और उसे प्रदूषित कर देते हैं। जिससे समुद्री जीवो के लिये एक गंभीर संकट उत्पन्न हो जाता है, क्योकि निरीह जीवो द्वारा इन प्लास्टिको को अपना भोजन समझकर खा लिया जाता है। जिससे मछलियों, कछुओं और अन्य समुद्री जीवो के स्वास्थ्य पर गंभीर संकट उत्पन्न हो जाता है। प्रतिवर्ष कई समुद्री जीव प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या इस से अपनी जान गवा बैठते है और शोधकर्ताओं का दावा है कि आने वाले समय में इस संख्या में और इजाफा होने वाला है।

वर्तमान में प्लास्टिक के दुष्परिणामों से बचने के लिए कुछ विकसित देशों में प्लास्टिक के रूप में निकला कचरा फेंकने के लिए खास केन जगह जगह रखी जाती हैं। इन केन में नॉन-बॉयोडिग्रेडेबल कचरा ही डाला जाता है। असलियत में छोटे से छोटा प्लास्टिक भले ही वह चॉकलेट का कवर ही क्यों न हो बहुत सावधानी से फेंका जाना चाहिए। क्योंकि प्लास्टिक को फेंकना और जलाना दोनों ही समान रूप से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। प्लास्टिक जलाने पर भारी मात्रा में केमिकल उत्सर्जन होता है जो सांस लेने पर शरीर में प्रवेश कर श्वसन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसे जमीन में फेंका जाए या गाड़ दिया जाए या पानी में फेंक दिया जाए, इसके हानिकारक प्रभाव कम नहीं होते।

भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय ने भी प्रयास किया है। इसके रीसाइकिल लिए रि-साइकिल्ड प्लास्टिक मैन्यूफैक्चर एंड यूसेज़ रूल्स-1999 जारी किया था। इसे 2003 में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1968 के तहत संशोधित किया गया है, ताकि प्लास्टिक की थैलियों और डिब्बों का नियमन और प्रबंधन सही तरीक़े से किया जा सके। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने धरती में घुलनशील प्लास्टिक के 10 मानकों के बारे में अधिसूचना जारी की थी, मगर इसके बावजूद हालात वही ‘ढाक के तीन पात’ वाले ही हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव अब भी नहीं दिख रहा है।

हालांकि विशेषज्ञों का मानना यह भी है की रि-साइक्लिंग की प्रक्रिया भी प्रदूषण को बढ़ाती है। रि-साइकिल किए गए या रंगीन प्लास्टिक थैलों में ऐसे रसायन होते हैं, जो ज़मीन में पहुंच जाते हैं और इससे मिट्टी और भूगर्भीय जल विषैला बन सकता है। जिन उद्योगों में पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर तकनीक वाली रि-साइकिलिंग इकाइयां नहीं लगी होतीं उनमें रि-साइकिलिंग के दौरान पैदा होने वाले विषैले धुएं से वायु प्रदूषण फैलता है। प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है, जो सहज रूप से मिट्टी में घुल-मिल नहीं सकता। इसे अगर मिट्टी में छोड़ दिया जाए, तो भूगर्भीय जल की रिचार्जिंग को रोक सकता है। इसके अलावा प्लास्टिक उत्पादों के गुणों के सुधार के लिए और उनको मिट्टी से घुलनशील बनाने के इरादे से जो रासायनिक पदार्थ और रंग आदि उनमें आमतौर पर मिलाए जाते हैं, वे भी अमूमन सेहत पर बुरा असर डालते हैं।

प्लास्टिक के उपयोग को हम अचानक तो नहीं खत्म कर सकते लेकिन उससे बचने की शुरुआत तो कर ही सकते है।प्लास्टिक के उपयोग में कम से कम अपने घर के अंदर खाने-पीने की चीजों को हम प्लास्टिक से मुक्त रखें। एक रिसर्च के अनुसार बोतलों में रखा पानी अपने अंदर कुछ न कुछ मात्रा में प्लास्टिक की विषाक्तता समा ही लेता है। फिर वह पानी के साथ हमारे शरीर में पहुंचता है। जहां संभव हो वहां बोतलबंद पानी पीने से बचना चाहिए। कुछ भी उठाकर मुंह में डाल लेने वाले बहुत छोटी आयु के बच्चों को हानिकारक प्लास्टिक या रबड़ के खिलौनें न दें। टिफिन, लंच, नाश्ते आदि प्लास्टिक के डब्बों या प्लास्टिक के टिफिन बॉक्स में पैक न करें। प्लास्टिक की थैलियों में मिलने वाले दूध और डेयरी उत्पादों को घर लाकर तुरंत किसी स्टेनलेस स्टील या कांच के बरतन में रखें।

देश के अधिकतर राज्यों ने हानिकारक प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाए हैं, लेकिन कानून के पालन में लापरवाही के कारण इनका उपयोग जारी है। हमें खुद जागरुक होना चाहिए और दुकानदार से इनकी मांग नहीं करनी चाहिए। इनके स्थान पर दुकानदारों को कागज के थैलों में सामान देने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इन थैलों में भरे समान रखने के लिए हम घर से कपड़े या जूट के झोले या बैग ले जाएं, जैसा कि पहले हुआ करता था।

भगवान बुद्ध ने कहा था कि इस सृष्टि में एक दिन ऐसा आएगा जब 12 कोस पर एक दीपक जलेगा । ऐसे में यह जल्द ही सच का जामा पहनता नजर आ रहा है। हमने अपनी मौत का साजो सामान खुद ही चारों तरफ सजा लिया है। प्लास्टिक की तुलना उस रक्तबीज दानवों से की जा सकती है , जिसकी एक बूंद रक्त के भूमि पर गिरते ही एक नया दानव अवस्थित में आ जाता है । प्लास्टिक रक्तबीज दानवों की तरह नष्ट नहीं होता है।वैसे भी हमने पर्यावरण को बर्बाद करने वाले सभी तौर तरीकों को अपना लिया है । चाहे वह जंगल काटने का मसला हो या खाद्य पदार्थ में कीटनाशकों और उर्वरकों का घुलता जहर। प्लास्टिक भी हमारे जीवन के किसी भी हिस्से से अछूता नहीं है। हम कुदरत द्वारा दिए गए संसाधनों को दरकिनार कर प्लास्टिक या इसके जैसे अन्य उत्पादों को अपने जीवन का अंग बनाते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हम खुद को प्लास्टिक के कफन दफन कर लेंगे।

( लेखक प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” हैं )

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इस न्यूज़ पोर्टल अतुल्यलोकतंत्र न्यूज़ .कॉम का आरम्भ 2015 में हुआ था। इसके मुख्य संपादक पत्रकार दीपक शर्मा हैं ,उन्होंने अपने समाचार पत्र अतुल्यलोकतंत्र को भी 2016 फ़रवरी में आरम्भ किया था। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से इस नाम को मान्यता जनवरी 2016 में ही मिल गई थी ।
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