•अतुल्य लोकतंत्र के लिए सुभाष आनंद, विनायक फीचर्स की कलम से )
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की गतिविधियां चरम पर हैं। इस बार यहां पांच नवम्बर को चुनाव होना है। मुख्य मुकाबला अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच होना है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया लगभग एक वर्ष पूर्व से ही प्रारंभ हो जाती है।
अमेरिकन संविधान बहुत सख्त है इस बार अमेरिका में दो मुख्य राजनीतिक पार्टियां मैदान में है। सत्तारूढ़ डैमोक्रेटिक पार्टी की ओर से कमला हैरिस अपना समर्थन बढ़ाने के लिए पूरी कोशिश कर रही हैं। वह राष्ट्रपति जो बाइडन को साथ लेकर अपने प्रतिद्वंदी डोनाल्ड ट्रंप पर बढ़त बनाने के लिए जी जान से प्रयत्न कर रही हैं लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप भी इस रोचक मुकाबले में आगे दिखाई देते हैं। फैडरल पार्टी इस स्थिति में नहीं है कि वह किसी भी उम्मीदवार की हार जीत को प्रभावित कर सकें। इन चुनावों में कौन जीतेगा इससे पहले हमें यह जानना होगा कि विश्व के शक्तिशाली देश अमेरिका में राष्ट्रपति के चुने जाने की प्रक्रिया क्या है?
विश्व में अमेरिकी लोग सिद्धांतों के बहुत ही पक्के होते हैं यह चुनाव की प्रक्रिया 1789 से चल रही है। लेकिन अभी तक कोई हेर-फेर नहीं हुआ पूरे संविधान में 31 संशोधन हुए है किसी पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। अमेरिका में राष्ट्रपति प्रणाली है और यह प्रणाली तब से चली आ रही है जब से अमेरिका में संविधान लागू हुआ है। राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च है लेकिन वह कभी तानाशाह नहीं बन सकता। अमेरिका में लोकतंत्र प्रणाली बड़े अच्छे ढंग से चल रही है इसी कारण राष्ट्रपति चुनाव में कुछ कम बदलाव देखने को मिले हैं।
चुनाव की तिथि 5 नवम्बर पहले से निर्धारित है इन तारीखों का कभी उल्लंघन नहीं हुआ, बाकी फेर बदल बहुत दूर की बात है। यहां राष्ट्रपति चुनने की प्रक्रिया एक वर्ष पहले शुरू हो जाती है क्योंकि कई स्तरों पर उम्मीदवार का चयन होता है सर्वप्रथम विभिन्न राजनीतिक दल राज्यों में अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं जिन्हें प्राइमरी कहा जाता है हर राज्य के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार तय होते हैं फिर प्रत्येक पार्टी अपना अधिवेशन बुलाती है इसी अधिवेशन में पार्टी अपने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारों का चयन करती है। उम्मीदवारों का नाम तय करने के लिए बॉक्स प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। बॉक्स का अभिप्राय छोटी से छोटी इकाई की मीटिंगें। निचले स्तर पर छोटी-छोटी इकाईयों की मीटिंग होती है जो राष्ट्रपति के नामों पर विचार करती है लेकिन अंतिम निर्णय राष्ट्रपति अधिवेशन में ही होता है। इस बार राष्ट्रपति अधिवेशन में डैमोक्रेटिक पार्टी ने कमला हैरिस और रिपब्लिकन ने ट्रंप पर दांव खेला है।
अमेरिका में 5 नवम्बर को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के जो चुनाव होने हैं वह बाकी देशों से भिन्न हैं। देशभर मेें 538 निर्वाचक चुने जाते हंै। इसका महत्व राष्ट्रपति चुने जाने तक होता है। इलेक्टोरल कॉलेज का अपने आप में कोई अस्तिव नहीं होता न ही प्रशासन में उनकी कोई खास हिस्सेदारी होती है। आधुनिक चुनाव यद्यपि राष्ट्रपति के नाम पर ही लड़ा जाता है लेकिन चुने जाते हैं निर्वाचक। ये निर्वाचक अपने-अपने दल के राष्ट्रपति के उम्मीदवारों के प्रतिनिधि के रूप में वचनबद्ध होते हैं।
कुछ राज्यों में कानूनी कार्रवाई है लेकिन कुछ राज्यों में परम्परा से ही ये निर्वाचक अपने-अपने उम्मीदवारों के लिए वचन बद्ध होते हैं। ये राज्य स्तर पर चुने जाते हैं और चुने जाने के पश्चात दिसम्बर के दूसरे बुधवार के पश्चात पहले सोमवार को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए वोट डालते हैं और सभी राज्यों से इन मतों को इकट्ठा करके कांगे्रस के दोनों सदनों के सामने खोला जाता है इसके लिए जनवरी की छह तिथि निर्धारित है कुल निर्वाचकों की संख्या 538 है विजय के लिए 270 वोट हासिल करना जरूरी हैं। यदि दोनों उम्मीदवारों को बराबर वोट पड़े तो तब कांगे्रस का निचला सदन अर्थात हाऊस ऑफ रिप्रजेंन्टेटिव फैसला करता है। अध्यक्ष का यह अधिकार होता है कि वह पहले 3 में से एक पर सहमति जताए चूंकि कुछ निर्वाचक कांग्रेस या सरकार के सदस्य भी हो सकते हैं निर्वाचक केवल राजनीतिक कार्यकर्ता होते हैं इसलिए इस काम के बाद उनका राजनीतिक महत्व समाप्त हो जाता है।
इतिहास साक्षी है कि अमेरिका में निर्वाचक लोगों ने पार्टी के साथ कभी दगा नहीं किया अर्थात राष्ट्र सर्वोपरि है 20 जनवरी को राष्ट्रपति अपने पद पर आसीन होता है राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 वर्ष का होता है। राष्ट्रपति के गद्दी पर बैठने से पहले ही यदि किसी कारणवश कोई दुर्घटना हो जाती है या देहांत हो जाता है या राष्ट्रपति किसी तरह अयोग्य ठहराया जाता है तो उपराष्ट्रपति स्वत: ही राष्ट्रपति बन जाता है यदि दोनों के साथ दुर्घटना हो जाती है तो फिर कांग्रेस का अध्यक्ष यह कार्यभार संभालता है लेकिन बीच में चुनाव करवाने का कोई प्रावधान नहीं है। अमेरिका के बड़े संविधान और नियमों को लेकर राष्ट्रपति का चुनाव निष्पक्ष वातावरण में होता है।
अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव को सफल बनाने में मीडिया की बहुत अहम भूमिका मानी जाती है। राष्ट्र अधिवेशन के पश्चात जब यह साफ हो जाता है कि कौन-कौन उम्मीदवार मैदान में है तो देशभर में वाद-विवाद शुरू हो जाते हैं। किसी नेता के पक्ष या विपक्ष में जनमत बनाने में इन चर्चाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यहां इस समय वाद-विवाद का सिलसिला शुरू हो चुका है। आरंभ में दोनों पार्टियों की आंखों में चमक देखने को मिल रही है। कमला हैरिस को कम लोग जानते हैं जबकि उसके विपरीत ट्रंप जाने माने राजनीतिक है और वह पहले भी अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके हैं पिछले चुनावों में वह जो बाइडन के हाथों बुरी तरह पराजित हुए थे। मीडिया का चुनावों में बड़ा हाथ होता है। अमेरिका में जनमत संग्रह की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चुनावों से पहले वहां की सर्वेक्षण कम्पनियां और वहां केे अखबार मिलकर सर्वे करवाते है। चुनाव वर्ष आरंभ होते ही यह बड़ी-बड़ी कम्पनियां उम्मीदवारों की लोकप्रियता को लेकर सर्वे करना आरंभ कर देती हैं इसी कारण काफी बड़ा जनमत इन सर्वेक्षणों से प्रभावित होता रहता है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस समय ट्रंप का पलड़ा भारी महसूस होता दिख रहा है। वह अपनी विरोधी कमला हैरिस पर लगभग 2 प्रतिशत की बढ़त बनाए हुए हैं उधर भारतीय समुदाय ने भी ट्रंप का समर्थन करने की घोषणा कर दी है। इस समय राष्ट्रीय चुनावों में विदेश नीति का मुद्दा प्रभावशाली प्रतीत हो रहा है। वैसे अमेरिकन समाज घरेलू मामलों में ज्यादा सक्रिय रहता है।
दुनिया में क्या हो रहा है उसको देखकर अमेरिका सदैव चौकस रहता है लेकिन अपनी राष्ट्रभक्ति के लिए अमेरिकन समाज अग्रणी रहता है। वह चाहते हैं कि हमारा राष्ट्रपति ईमानदार, देशभक्त, सर्वगुण संपन्न हो वह किसी तरह के घोटाले में शामिल न हो। जनमत सर्वेक्षणों में अभी भी ट्रंप का पलड़ा भारी लगता है। यदि ट्रंप जीत जाते हैं तो रिपब्लिकलन पार्टी की बहुत बड़ी जीत होगी और अमेरिका की विदेश नीति में बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा। भारत-अमेरिका के बीच रिश्ते मधुर होने की पूर्ण सम्भावनाएं बढ़ जाएंगी। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ट्रंप की तुलना में कमला हैरिस को चुनावी फंडज ज्यादा प्राप्त हो रहे हैं। ज्यों-ज्यों अमेरिकन राष्ट्रपति के चुनावों की तारीख 5 नवम्बर नजदीक आ रही त्यों-त्यों पार्टी उम्मीदवार एक दूसरे पर हमलावर हो रहे हैं। विश्व की सभी गुप्तचर एजेंसियां भी अमेरिकन राष्ट्रपति के चुनावों को लेकर सक्रिय हो चुकी हैं उनकी पैनी नजरें इन चुनावों पर लेकर लगी हुई हैं।
( अतुल्य लोकतंत्र के लिए सुभाष आनंद, विनायक फीचर्स की कलम से )