समूची दुनिया में प्रदूषित भूजल जहां सबसे बड़ी समस्या बन चुका है, वहीं वह करोडो़ं लोगों की मौत का सबब भी बन गया है। इसमें वर्तमान में तेजी से बढ़ रही भूजल स्तर और भूजल की गुणवत्ता में आ रही गिरावट इस खतरे की भयावहता का एक बहुत बड़ा कारण है। वहीं वह पीने के साफ पानी की कमी के भीषण संकट का संकेत भी है। दुनिया के शोध-अध्ययन सबूत हैं कि रेडियो एक्टिव पदार्थों और भारी धातुओं की भूजल में बढ़ती मात्रा ने भूजल की गुणवत्ता में जहां भारी गिरावट दर्ज की है, वहीं मानव जीवन को संकट में डालने में अहम योगदान दिया है।
हांगकांग यूनिवर्सिटी आफ साइंस एण्ड टैक्नोलाजी के अध्ययन में खुलासा हुआ है कि दुनिया के 156 देशों के भूजल में सल्फ़ेट की मात्रा अधिक पायी गयी है जिनमें भारत के अलावा अल्जीरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, इटली, स्पेन, मैक्सिको, अमेरिका, ट्यूनीशिया, ईरान आदि देशों के भूजल में सल्फ़ेट की मात्रा अधिकाधिक होने से लगभग 1.70 करोड़ लोग पेट और आंत की बीमारी की भीषण चपेट में हैं। शोधकर्ता वैज्ञानिकों की मानें तो सल्फ़ेट युक्त पानी स्वास्थ्य के साथ साथ पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है। यही नहीं फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों को अलग करके पारिस्थितिकी के नुकसान का कारण भी बनता है।
भारत में पेयजल ही नहीं, सिंचाई के लिए भी भूजल की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आ रही है। आर्सेनिक, नाइट्रेट, सोडियम, फ्लोराइड, यूरेनियम आदि की अधिकता के कारण भूजल की खराब गुणवत्ता चिंता का सबब बन गयी है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की सालाना रिपोर्ट इसकी जीती-जागती सबूत है। रिपोर्ट के मुताबिक देश के हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और गुजरात में भूजल के 12.5 फीसदी नमूने उच्च सोडियम की मौजूदगी के कारण पेयजल ही नहीं, सिंचाई के लिए भी अनुकूल नहीं पाये गये हैं। इनमें राजस्थान की स्थिति सबसे बुरी है।
भूजल में सोडियम की मौजूदगी का यह स्तर पानी को सिंचाई के लिए अनुपयुक्त बना देता है। इससे मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। देश की अधिकांश आबादी पीने के पानी के लिए भूजल पर ही निर्भर है। जल संकट का अहम कारण बढ़ती आबादी तो है ही जिसके चलते पीने का साफ पानी मुहैय्या करा पाना सरकारों के लिए बहुत बड़ी समस्या है। फिर 1960 के बाद से पानी की मांग दोगुनी से भी अधिक हो जाना भी एक बड़ा कारण है। 2050 तक पानी की मांग में 25 फीसदी से अधिक की और बढो़तरी की चेतावनी ने यह सोचने पर विवश कर दिया है कि आखिर इस संकट का समाधान कैसे होगा? जबकि भूजल दोहन के मामले में हमारा देश शीर्ष पर है। देश के उत्तरी गांगेय इलाके में तो भूजल खत्म होने के कगार पर है और देश की राजधानी सहित देश के कई शहरों का डार्क जोन में आना तथा एनसीआर में गंभीर पानी का संकट इसका जीता जागता सबूत है।
असलियत में
जलवायु में आ रहे बदलाव में भूजल दोहन की बडी़ भूमिका है। ऐसे में भूजल प्रबंधन और भूजल उपयोग सम्बंधी रणनीतियों में व्यापक ध्यान दिए जाने की जरूरत है। क्योंकि ऐसी स्थिति में आबादी में बढो़तरी, बढ़ता शहरीकरण और समीपस्थ क्षेत्रों में कृषि भूमि पर गहन खेती के साथ ही लगातार भूजल की गिरावट हालात को और भयावह बना देगी।
वर्तमान में भूजल की कमी देश के सर्वत्र भूभाग में दिखाई देती है। देश के 440 जिलों के भूजल में बढा़ नाइट्रेट का स्तर गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर रहा है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि पानी के 9.04 फीसदी नमूनों में फ्लोराइड का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक और 3.55 फीसदी आर्सेनिक की मौजूदगी पायी गयी। राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु में 40 फीसदी से ज्यादा नमूने सुरक्षित सीमा से अधिक पाये गये। महाराष्ट्र में पानी में नाइट्रेट का स्तर 35.74 फीसदी, तेलंगाना में 27.48 फीसदी, आंध्र में 23.5 फीसदी और मध्य प्रदेश में 22.58 फीसदी से भी ज्यादा उच्च स्तर तक दर्ज किया गया है।
जबकि हरियाणा, तमिलनाडु, आंध्र में यह स्तर लगातार बढ़ रहा है। यह प्रदूषण पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों के लिए भयावह स्तर तक हानिकारक है। इससे कैंसर, किडनी, हड्डियों और त्वचा की बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। पीने के पानी में उच्च नाइट्रेट का स्तर नवजात शिशुओं में बेबी सिंड्रोम की वजह बन रहा है। इससे शिशु के खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाना जानलेवा बन जाती है। इस मामले में देश के 15 जिले जैसे राजस्थान के बाढ़मेर, जोधपुर, महाराष्ट्र के वर्धा, जलगांव, बुलढाणा, अमरावती, नांदेड़, बीड़, यवतमाल, तेलंगाना …