हरियाणा के फरीदाबाद में 38 वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेला 7 फरवरी से शुरू होकर 23 फरवरी को इसका समापन होगा।
मेले का आयोजन सूरजकुंड मेला प्राधिकरण और हरियाणा पर्यटन निगम द्वारा केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय, कपड़ा मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के सहयोग से किया जाता है।
अन्तर्राष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले की बाबत गत 7 जनवरी 25 को बैठक में हरियाणा पर्यटन निगम के प्रधान सचिव कला रामचंद्रन ने कहा कि हरियाणा में सूरजकुंड मेला हमारी सांस्कृतिक विरासत को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभा रहा है।यह हरियाणा प्रदेश के लिए गौरव की बात है। रामचंद्रन ने कहा कि
इस बार मेले में ओडिशा और मध्यप्रदेश दो थीम स्टेट होंगे। वहीं, बिम्सटेक संगठन से जुड़े देश बांग्लादेश, भूटान, इंडिया, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाइलैंड को पार्टनर राष्ट्र है।
क्या है बिम्सटेक :
बिम्सटेक एक क्षेत्रीय संगठन है जिसमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड 7 सदस्य देश शामिल हैं। इसकी संगठन की स्थापना 1997 में हुईं थी। जो बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के देशों के बीच बहुमुखी तकनीकी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
पूर्वाेत्तर राज्य :
भारत के पूर्वाेत्तर राज्य असम, अरुणाचल, सिक्किम मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और मिजोरम की मेले में सांस्कृतिक भागीदार होंगे। तथा नॉर्थ ईस्ट हैंडलूम एंड हैंडीक्राफ्ट एसोसिएशन मेले का सांस्कृतिक पार्टनर है।
मेले की परिकल्पना
इस मेले की परिकल्पना मुख्य रूप से कुशल कारीगरों के समूह को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। भारत की लुप्त होती कला और शिल्प को संरक्षित करने के लिए, सूरजकुंड शिल्प मेला पहली बार सन् 1987 में आयोजित किया था। तब से शिल्पकार और बुनकर कारीगरों की वस्त्र, चित्रकला, लकड़ी के सामान, हाथी दांत का काम, मिट्टी के बर्तन, टेराकोटा, पत्थर का काम, लाख के बर्तन, बेंत और घास के उत्पादों की अद्भुत श्रृंखला प्रदर्शित होती है। विशेष बात यह है कि सूरजकुंड मेला प्राधिकरण और हरियाणा पर्यटन निगम द्वारा शिल्पकारों और बुनकरों को बिचौलियों को खत्म करके अपने माल को सीधे बाजार में बेचने के लिए एक मंच प्रदान करने का एक गंभीर प्रयास है।वही हथकरघा व हस्तशिल्प के माल को विदेशों में निर्यात को बढ़ावा देना भी है। इसके अलावा मेला हस्तशिल्प, हथकरघा और सांस्कृतिक ताने-बाने की समृद्धि और विविधता को प्रदर्शित करता है।
चौपाल
मेला परिसर में स्थित चौपालों, खुले आसमान के नीचे बने थिएटरों में बड़ी संख्या में प्रसिद्ध राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लोक कलाकार और सांस्कृतिक समूह अपनी प्रस्तुतियां देते हैं। इसके अलावा मेले में हर रोज शाम के समय मुख्य चौपाल पर मनोरंजक सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
थीम राज्य की शुरुआत
वर्ष 1089 में पहली बार थीम राज्य की शुरुआत की गई थी और उसके बाद प्रति वर्ष मेले का थीम राज्य अलग- अलग होने से ये प्रमुख आकर्षण केन्द्र दर्शकों के लिए गया है। थीम राज्य का उद्देश्य देश के प्रत्येक राज्य की कला, शिल्प और व्यंजनों को बढ़ावा देना था। जिससे किसी थीम राज्य की बेहतरीन लोक परंपराओं को प्रदर्शित करना और इस तरह उसके शिल्पियों और लोक कलाकारों के जीवन स्तर को बेहतर बनाना है।
थीम राज्य के कलाकारों, बुनकरों और शिल्पकारों को उनके शिल्प का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए मौका मिलता हैं। थीम राज्य के सांस्कृतिक कलाकार पूरे कार्यक्रम के दौरान राज्य की विशिष्ट परंपराओं का प्रतिनिधित्व करते हुए आकर्षकन नृत्य/ गायन/प्रदर्शन प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि यह थीम राज्य की संस्कृति और लोकाचार को दर्शाता एक अनूठा माहौल रखता है।
इस बार मध्य प्रदेश और ओडिशा थीम राज्य है। इन दोनों राज्यों के कलाकारों और हस्तशिल्पकारों द्वारा अपने हूनर को प्रदर्शित करेंगे। जिसमें पति राज्य करीब 200 कलाकार तथा 40 शिल्पी ,पूर्वोेत्तर राज्यों से करीब 300 कलाकार व 60 शिल्पी , जबकि बिम्सटेक संगठन के करीब 100 कलाकार व 40 से 60 के बीच शिल्पी मेले में अपनी उपस्थित दर्ज करेंगे।
"अपना घर" की विशेषता
थीम राज्य एक अस्थायी संरचना भी बनाता है जिसे ‘अपना घर’ के रूप में जाना जाता है। जहां राज्य का एक पारंपरिक परिवार मेले के पूरे पखवाड़े के लिए रहता है। आगंतुक उस विशेष राज्य के लोगों की जीवनशैली और सामाजिक रीति-रिवाजों से रूबरू होते हैं।
इसके अतिरिक्त थीम राज्य का फूड कोर्ट में एक फूड स्टॉल भी होता है, वहाँ के विशेष व्यंजन का स्वाद आगंतुक लेते हैं।
सूरजकुण्ड मेले में राज्य की थीम और राज्य के स्मारक कौन-2 से रहे हैं उन पर एक नज़र।
क्र. वर्ष स्मारक राज्य थीम
1) 1987 —
2) 1988 —
3) 1989 शेखावाटी गेट राजस्थान
4) 1990 विष्णुपुर गेट पश्चिम बंगाल
5) 1991 कोट्टायमबलम गेट केरल
6) 1992 दंतेश्वरी देवी द्वार मध्य प्रदेश
7) 1993 मुक्तेश्वर गेट उड़ीसा
8) 1994 होयसला गेट कर्नाटक
9) 1995 राम बाग पैलेस पंजाब
10) 1996 महेश्वर मंदिर द्वार हिमाचल प्रदेश
11) 1997 गली ‘गुजरात की पोल’ गुजरात गुजरात
12) 1998 असम – रंग घर
मेघालय – ‘लिंग सैड’
त्रिपुरा – उनाकोटि तीर्थ
मणिपुर – कांगला संथोंग- पूर्वोत्तर राज्य:-
असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा।
13) 1999 चार मीनार आंध्र प्रदेश
14) 2000 खानकाह-ए-मौल्ला जम्मू और कश्मीर
15) 2001 पेर्गोला गोवा
16) 2002 सिक्किम गेट (ड्रैगन जैसे बौद्ध प्रतीकों और स्थानीय कला को दर्शाने वाला द्वार) सिक्किम
17) 2003 बद्रीनाथ मंदिर की प्रतिकृति उत्तराखंड
18) 2004 अर्जुन तपस्या मामल्लपुरम तमिलनाडु
19) 2005 छत्तीसगढ़ गेट (राज्य के आदिवासी जीवन को दर्शाता हुआ) छत्तीसगढ
20) 2006 एलीफेंटा गुफाओं से त्रिमूर्ति महाराष्ट्र
21) 2007 चार मीनार गेट (नवीनीकृत) आंध्र प्रदेश (2 दफा)
22) 2008 विष्णुपुर गेट पश्चिम बंगाल (2 दफा)
23) 2009 भीमबेटका गेट मध्य प्रदेश (2 दफा)
24) 2010 शेखावाटी गेट (नवीनीकृत) राजस्थान (2 दफा)
25) 2011 चारमीनार गेट (नवीनीकृत)आंध्र प्रदेश (3 दफा)
26) 2012 पुनर्निर्मित रंग घर असम (2दफा)
27) 2013 मैसूर पैलेस के भव्य द्वारों की प्रतिकृतियां, बेलूर, हम्पी की स्थापत्य शैली और जैन बसादि और बीजापुर के विश्व प्रसिद्ध स्मारक कर्नाटक (2 दफा)
28) 2014 पेर्गोला (पुनर्निर्मित) गोवा (2 दफा)
29) 2015 छत्तीसगढ़ द्वार – जनजातीय भावना और कला छत्तीसगढ़ (2 दफा)
30) 2016 वारंगल गेट तेलंगाना
31) 2017 मालुति मन्दिर झारखंड
32) 2018 बनारस के घाटों के साथ-साथ सहित वन्य द्वार, अयोध्या द्वार, अवध द्वार, शाक्य मुनि द्वार, बुन्देलखण्ड द्वार उत्तर प्रदेश
33) 2019 1 रायगढ़ किले के महा द्वार / महा दरवाज़े की प्रतिकृति महाराष्ट्र (2 दफा)
34) 2020 मनाली का राम बाग-गेट
2 सहारन के भीमा काली मंदिर की प्रतिकृति और पुनर्निर्मित महेश्वर देवता मंदिर हिमाचल प्रदेश (2 दफा)
35) 2022 मुबारक मंडी- गेट
वैष्णो देवी मंदिर, बच्ची दरवाजा व हाउस बोट की प्रतिकृतियां जम्मू और कश्मीर (2 दफा)
36) 2023 बांस की वास्तुकला की भाषा का अनुसरण करने वाला स्मारक द्वार उत्तर पूर्वी क्षेत्र
37) 2024 वडनगर के कीर्ति तोरण कस्बे से तोरण (स्तंभ) गुजरात
स्मारक प्रतिकृति :
प्रति वर्ष, जो थीम राज्य होता है वह अपने राज्य के किसी एक लोकप्रिय स्मारक की प्रतिकृति बनाता है जिसे वह मेला मैदान में स्मारक प्रतिकृतिके रूप में प्रदर्शित करे। स्मारक प्रतिकृति मेले के माहौल का एक अभिन्न अंग है। ये मेले के उद्घाटन और समापन समारोह इनके इर्द-गिर्द केंद्रित होते हैं और मेले की स्मृति बनती हैं।
मेले को मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान:
सन् 2012 में 26 वें सूरजकुंड मेले में थाईलैंड को पहले भागीदार राष्ट्र के रूप में शामिल किए जाने पर मेले का नाम बदलकर ‘सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला’ कर दिया ।उसके बाद इसकी पहचान अंतर्राष्ट्रीय मेले के रुप में होने लगी।अब इसे विश्व का सबसे बड़ा मेले का गौरव प्राप्त है।
उल्लेखनीय है कि सन् 2009 में इस मेले को वैश्विक आकर्षण मिला, जब 23 वें सूरजकुंड मेले का पहला फोकस राष्ट्र मिस्र देश बना था।
मिस्र की भागीदारी के साथ, अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों, शिल्पकारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक नई लहर आई। इस प्रकार, विदेशी देशों के लिए अपनी कला और संस्कृति को प्रस्तुत करने के लिए एक नया रास्ता खुला और उनकी संख्या हर साल बढ़ती गई। यह मेला दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीकी राष्ट्र, मध्य एशिया के देश से लेकर न्यूजीलैंड जैसे कई देश इस भव्य आयोजन का हिस्सा रहे हैं।
भागीदार राष्ट्र हथकरघा और हस्तशिल्प के क्षेत्र से अपने सर्वश्रेष्ठ कारीगरों सहित उनके द्वारा बुने हुए कालीनों, मनमोहक मिट्टी के बर्तनों, ज्वलंत चित्रों से लेकर जटिल कपड़ों तक, प्रत्येक राष्ट्र के पास समान रूप से कुछ आकर्षक चीजें लाते हैं। पारंपरिक शिल्प के अलावा इन देशों के कई लोक कलाकार भाग लेते हैं। उनके लोकगीतों और नृत्यों से मेले का आकर्षण और भी बढ़ जाता है।
भारतीय दर्शकों के लिए विदेशी भूमि की परंपराओं से परिचित होने का और वहां के व्यंजनों का टेस्ट मिलने का मेला एक केन्द्र है।
सूरजकुण्ड मेले में अब तक भाग लेने वाले देश इस प्रकार हैं।
क्र. वर्ष देश
1) 2009 मिस्र
2) 2010 थाईलैंड, मिस्र और ताजिकिस्तान
3) 2011 उज़्बेकिस्तान
4) 2012 थाईलैंड
5) 2013 अफ़्रीकी राष्ट्र
6) 2014 श्रीलंका
7) 2015 लेबनान
8) 2016 जापान और चीन (फोकस देश)
9) 2017 मिस्र
10) 2018 किर्गिज़स्तान
11) 2019 थाईलैंड
12) 2020 उज़्बेकिस्तान
13) 2022 उज़्बेकिस्तान
14) 2023 शंघाई कॉर्पोरेशन संगठन (एससीओ)
15) 2024 संयुक्त गणराज्य तंजानिया