विशेषज्ञों का कहना है कि मलेरिया और डेंगू से करीब करीब पूरा उत्तर प्रदेश प्रभावित होता है। कभी भी कहीं से भी इसके मामले बढ़ जाते हैं जबकि फाइलेरिया में 51 जनपद की 16 करोड़ आबादी पर फोकस है। इन्हें बचाव के लिए घर घर जाकर निशुल्क दवा दी जाती है। हालांकि कालाजार सिर्फ 13 जनपदों में असर करता है जिस पर विभाग को फोकस करके एड़ी चोटी का जोर लगाए है।
डेंगू के उत्तर प्रदेश के 2015 से आंकड़ों पर गौर करें तो 2015 में डेंगू के 2892 मरीज मिले थे और नौ की मृत्यु हुई थी। इसी तरह 2016 में 15033 रोगियों पर 42 की मृत्यु हुई थी। 2017 में 3092 मरीजों पर 28, 2018 में 3829 मरीजों पर सिर्फ चार और 2019 में 10557 मरीजों पर 26 की मृत्यु हुई तथा 2020 में 3715 मरीजों पर छह इसके अलावा 2021 में मई तक डेंगू के 105 मरीज मिले हैं लेकिन अभी तक किसी की मृत्यु होने की सूचना नहीं है।
इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में मलेरिया दस्तक दे चुका है। स्वास्थ्य विभाग जुट गया है और एक जुलाई से पूरे प्रदेश में सघन अभियान छेड़ दिया जाएगा। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना का डरावना अनुभव करने के बाद लोग खुद इतना अधिक सतर्क हैं जिससे इन बीमारियों के फैलने की आशंका बहुत कम है। इसी तरह मुजफ्फरनगर में हाल के सालों में मलेरिया के मरीज घट रहे हैं जबकि डेंगू के मरीज बढ़े हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक कालाजार से सूबे के 13 जिले प्रभावित बताए जाते हैं। जिनमें गोरखपुर, बलिया, देवरिया, गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, कुशीनगर, सुलतानपुर, संत रविदासनगर, जौनपुर, गोंडा, बहराइच, महाराजगंज में इनका सबसे अधिक प्रभाव रहता है। इनमें से कई जिलों में कालाजार के इक्का दुक्का मरीज मिलने शुरू हो चुके हैं जिसे लेकर शासन और प्रशासन अलर्ट है। कालाजार बालू मख्खी से फैलने वाली बीमारी है। कुशीनगर, बलिया, देवरिया और गाजीपुर में इसका असर ज्यादा मिला है। और इनकी सीमाएं बिहार से सटी हैं।