•युवा पत्रकार अजय चौधरी की कलम से…
जनसंख्या नियंत्रण के साथ एक और आना था “समान नागरिक सहिंता” या फिर उसे अगली बार के लिए रखा गया होगा। खैर सारे ब्रह्मास्त्र बीजेपी एकसाथ नहीं चलाती। इस यूपी चुनाव के लिए जनसंख्या नियंत्रण का मयान में से निकाला जाना ही काफी है, पार्टी इसी के प्रचार में अब जोर शोर से लगेगी।
मन में सवाल होगा इससे आगे क्या आएगा? मेरे पास उसका भी जवाब है, बीते साल अयोध्या प्रवास के दौरान बहुत कुछ जानने और समझने को मिला था। पता चला था मयान में इतने तीर हैं कि पार्टी उससे 2050 तक सत्ता में बने रहने के सपने गलत नहीं देख रही।
जैसा मैंने मई 2020 में जनसंख्या नियंत्रण के बारे में बताया था अब मैं बीजेपी के मयान में रखे समान नागरिक सहिंता कानून के अलावा दो अन्य अस्त्रों की जानकारी भी दे देता हूं। जिसमें एक बार फिर राम मंदिर आएगा ये 2024 लोकसभा चुनाव के आसपास बनकर तैयार होगा। मंदिर के कपाट आम जनता के लिए खुलने के साथ मजबूत पीआर के दम पर सत्ता के दरवाजे भी भाजपा के लिए खुल जाएंगे ऐसा अनुमान है।
दूसरा अस्त्र है श्रीकृष्ण जन्मभूमि, इसे मयान में अभी संभाल कर रखा जा रहा है, राम मंदिर बनने के साथ ही भक्तों की संतुष्टी के साथ राममंदिर मुद्दा काफी हल्का पड़ जाएगा ऐसे में श्रीकृष्ष ही सत्ता की रक्षा के लिए सामने आएंगे ऐसा मानकर चला जा रहा है। आप आज इसे नोट कर रख लें, आने वाले सालों में समीकरण ऐसे ही घूमते आपको नजर आंएगे।
बात मैं अब जनसंख्या नियंत्रण कानून की कर लेता हूं, मैं इसके पक्ष में था और रहूंगा लेकिन ऐसा कहने से मैं बीजेपी और उसके ध्रुवीकरण के साथ आकर खड़ा नहीं हो जाता। यहां मुद्दे और कानून सिर्फ वोटों के लिए लाए जाते हैं, ट्रस्ट तो धर्म के मामलों में भी घोटाला कर लेती हैं।
मैं किसी धार्मिक नजरिए से नहीं एक नागरिक की नजर से हमेशा जनसंख्या नियंत्रण पर कानून लाने का पक्षधर रहा हूं। ऐसा करने से मैं मानता रहा हूं कि देश प्रगतिशीलता की तरफ बढ़ेगा। भारत में संसाधनों की अत्याधिक कमी और बेरोजगारों की फौज जैसे बहुत सारे मुद्दे जनसंख्या की समस्या पर आकर खत्म हो जाते हैं। मैं बहुत बार लिख चुका हूं इसपर।
महानगरों में जनसंख्या की अपनी समस्या है। एक बार 2 मिनट के लिए दिल्ली के या किसी अन्य महानगर के भीड-भाड वाले किसी इलाके में रुककर देखना, आपको समझ नहीं आएगा कि ये शहर चल कैसे रहा है, कहां से निकल कर ये इतने सारे लोग आ रहे हैं और कहां जा रहे हैं। मानव जाति में कितनी तरह की नस्लें हैं, कितने तरह के पहनावे हैं, इतनी बसें, इतनी कारें, कंधों पर बैग लिए इतने पैदल, इन सब को समाहित कर ये महानगर इतने बोझ तले चल कैसे रहे हैं?