गुजरात में चांदीपुरा वायरस के चलते 5 दिन में 6 बच्चों की मौत हो गई है। गुजरात के स्वाथ्य मंत्री ऋषिकेश पटेल ने बताया कि अभी तक राज्य में 12 बच्चे इस वायरस से इन्फेक्टेड हैं। इस वायरस का इन्फेक्शन 9 साल से 14 साल के बच्चों को ही होता है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्टरों ने बताया कि चंदीपुरा वायरस से बच्चों में फीवर और फ्लू जैसे लक्षण दिखते हैं। इसके बाद इन्सेफेलाइटिस यानी दिमाग में सूजन तक हो सकती है, जो बच्चों की मौत का कारण बन सकती है। यह वायरस मच्छर और मक्खियों से इंसानों में फैलता है।
ऋषिकेश ने बताया कि फिलहाल राज्य में 12 बच्चों में से 4 साबरकांठा, 3 अरावली, 1 महीसागर, 1 खेड़ा और 2 राजस्थान, 1 मध्य प्रदेश से हैं। हालांकि, इन सभी का इलाज गुजरात में अलग-अलग अस्पतालों में चल रहा है।
स्वास्थ्य विभाग ने किया अलर्ट जारी
चांदीपुरा वायरस को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश भर में अलर्ट जारी कर दिया है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है की अगर किसी को इसके लक्षण दिखे तो तुरंत हॉस्पिटल जाएं। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि यह वायरस ज्यादा खतरनाक नहीं है, क्योंकि यह ज्यादा संक्रामक नहीं है। वायरस से बचाव के लिए अभी तक 4,487 घरों में स्क्रीनिंग की गई है। स्वास्थ्य विभाग चौबीस घंटे काम कर रहा है, ताकि ये बीमारी और ना फैलें।
चांदीपुरा वायरस से फैलने वाली बीमारी का इलाज नहीं
वायरस का फिलहाल कोई इलाज नहीं मिला है। गुजरात स्वास्थ्य विभाग की ओर से कहा गया है कि कोई भी लक्षण देखने को मिले तो घबराए नहीं। तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। बारिश के समय में अच्छी सेहत, खाना-पीना और स्वच्छता रखना अनिवार्य है।
1966 में महाराष्ट्र के चांदीपुरा में हुई थी इस वायरस की पहचान
1966 में महाराष्ट्र के नागपुर स्थित चांदीपुरा गांव में चांदीपुरा वायरस की पहचान हुई थी। इसके बाद इस वायरस को वर्ष 2004-06 और 2019 में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में रिपोर्ट किया गया था। चांदीपुरा वायरस एक RNA वायरस है। यह वायरस सबसे अधिक मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से ही फैलता है।
मच्छर में एडीज ही इसके पीछे ज्यादातर जिम्मेदार है। 15 साल से कम उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा इसका शिकार होते हैं। उन्हीं में मृत्यु दर भी सबसे ज्यादा रहती है। चांदीपुरा के इलाज के लिए आज तक कोई एंटी वायरल दवा नहीं बनी है।
मस्तिष्क में सूजन आ जाती है, मौत तक हो जाती है
चांदीपुरा वायरस के संक्रमण के दौरान शरीर के माइक्रोगियल सेल्स में माइक्रो RNA-21 की संख्या बढ़ने लगती है। इससे कोशिकाओं में फोस्फेटेस और टेनसिन होमलोग (PTEN) पदार्थ का सिक्रिशन कम हो जाता है। इससे इंसानों की माइक्रोग्लियल कोशिकाओं में न्यूक्लियर फैक्टर कापा लाइट-चैन-एनहांसर ऑफ एक्टिवेटिड बी सेल्स (NF कप्पा BP65) या साइटोकाइन्स की सक्रियता बढ़ जाती है। इससे मस्तिष्क में सूजन हो जाती है।
इससे तेज बुखार, उल्टी, ऐंठन और कई मानसिक बीमारियां आ जाती हैं। इसके कारण मरीजों में इंसेफेलाइटिस के लक्षण भी दिखने लगते हैं और मरीज कोमा में चला जाता है। कई बार तो मौत तक हो जाती है। इन लक्षणों को एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) की कैटेगरी में रखा गया है।
देश में पहली बार वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के वैज्ञानिकों ने चांदीपुरा वायरस का तोड़ खोजने का दावा किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मानव मस्तिष्क में किस तरह से इस वायरस का संक्रमण फैलता है। इसका पता लगाया गया है।

