इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने कैश कांड केस में खुद को दोषी ठहराने वाली जांच रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है।
जस्टिस वर्मा ने गुरुवार को अपील में कहा, ‘उनके खिलाफ जो कार्यवाही की गई, वह न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। मुझे खुद को साबित करने का पूरा मौका नहीं दिया गया। कार्यवाही में एक व्यक्ति और एक संवैधानिक अधिकारी दोनों के अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।’
यह याचिका संसद का मानसून सत्र शुरू होने से कुछ दिन पहले आई है। सत्र के दौरान जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। वहीं, कांग्रेस ने कहा कि पार्टी जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लोकसभा में लाए जा रहे प्रस्ताव का समर्थन करेगी और कांग्रेस सांसद भी उसमें हस्ताक्षर करेंगे।
कांग्रेस बोली- पूर्व CJI ने लेटर लिख सांसदों को कदम उठाने को मजबूर किया
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने शुक्रवार को कहा कि उस समय के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजकर सांसदों को यह कदम उठाने को मजबूर किया। रमेश ने कहा-
विपक्ष जस्टिस शेखर यादव का मामला भी उठाएगा
रमेश ने यह भी दोहराया कि विपक्ष जस्टिस शेखर यादव के मामले को भी जोर से उठाएगा, जिन पर सांप्रदायिक भाषण देने का आरोप है। उनके खिलाफ पिछले दिसंबर में राज्यसभा में 55 सांसदों ने प्रस्ताव दिया था, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
समझिए जस्टिस वर्मा का कैश कांड क्या है
जस्टिस वर्मा के लुटियंस स्थित बंगले पर 14 मार्च की रात 11:35 बजे आग लगी थी। इसे अग्निशमन विभाग के कर्मियों ने बुझाया था। घटना के वक्त जस्टिस वर्मा शहर से बाहर थे।
21 मार्च को कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि जस्टिस वर्मा के घर से 15 करोड़ कैश मिला था। काफी नोट जल गए थे।
22 मार्च को सीजे आई संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की इंटरनल जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई। पैनल ने 4 मई को CJI को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया था।
रिपोर्ट के आधार पर ‘इन-हाउस प्रोसीजर’ के तहत CJI खन्ना ने सरकार से जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश की थी। जांच समिति में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन थीं।

