सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के आचरण पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा कि उनका व्यवहार भरोसे के लायक नहीं है और पूछा कि अगर उन्हें जांच समिति की प्रक्रिया पर ऐतराज था तो उन्होंने उसी वक्त उसे चुनौती क्यों नहीं दी।
बेंच में शामिल जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह ने कहा कि जस्टिस वर्मा को पहले ही सुप्रीम कोर्ट आना चाहिए था, न कि अब जब जांच समिति ने उन्हें दोषी पाया है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि महाभियोग संसद की प्रक्रिया है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा महाभियोग की सिफारिश किया जाना गलत है।
दरअसल, जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका में इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने की अपील की गई है। रिपोर्ट में घर में कैश मिलने के मामले में जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया है।
याचिका में जस्टिस वर्मा बोले- घर से नोट मिलना साबित नहीं करता कि ये मेरे थे
18 जुलाई को जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने तर्क दिया था कि उनके आवास के बाहरी हिस्से में कैश बरामद होने मात्र से यह साबित नहीं होता कि वे इसमें शामिल हैं, क्योंकि आंतरिक जांच समिति ने यह तय नहीं किया कि नकदी किसकी है या परिसर में कैसे मिली।
समिति के निष्कर्षों पर सवाल उठाते हुए उनका तर्क दिया है- ये अनुमान पर आधारित है। याचिका में जस्टिस वर्मा का नाम नहीं है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट डायरी में इसे ‘XXX बनाम भारत सरकार व अन्य’ के टाइटल से दर्ज किया गया है।
जस्टिस वर्मा ने 5 सवालों के जवाब मांगे
जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में 5 सवालों के जवाब मांगे हैं, साथ ही 10 तर्क दिए हैं, जिनके आधार पर जांच समिति की रिपोर्ट रद्द करने की मांग और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने का अनुरोध किया गया है।

