सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को न्यायपालिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) के बेहिसाब इस्तेमाल पर रोक लगाने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने कहा- हमें न्यायपालिका में AI और ML टूल्स के बुरे असर की जानकारी है, लेकिन इन मुद्दों को न्यायिक निर्देशों के बजाय प्रशासनिक स्तर पर निपटाया जा सकता है।
याचिका कार्तिकेय रावल ने दाखिल की। उन्होंने AI जनरेटेड कंटेंट और न्यायिक प्रोसेस में इसके गलत उपयोग से वाले खतरों से सुरक्षा की मांग की थी।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) साइंस एंड टेक्नोलॉजी का एक पार्ट है। इसमें मशीनों में इंसानों की तरह सोचने-समझने, सीखने और समस्याओं को हल करने की क्षमता विकसित की जाती है। AI मशीनें या टूल्स इंटरनेट पर मौजूद डेटा के आधार पर आउटपुट देते हैं।
कंप्यूटर साइंटिस्ट एलन ट्यूरिंग ने वर्ष 1950 में भविष्यवाणी की थी कि ‘कुछ दशकों के भीतर कंप्यूटर मानव मस्तिष्क की नकल करेंगे।’ आज AI के रूप में हम उस भविष्यवाणी को सच साबित होते हुए देख सकते हैं।
AI आज हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बनता जा रहा है। यह टेक्नोलॉजी हमारे सोचने-समझने व निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस राजेश बिंदल ने कहा है कि भारत और अमेरिका में कुछ युवा वकील AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) टूल्स से कोर्ट के फर्जी फैसले खोज कर अदालत में पेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कई बार युवा वकील AI पर सिर्फ दो-तीन शब्द डालकर सर्च करते हैं और जो भी फैसला सामने आता है, उसे कोर्ट में दिखा देते हैं।

