गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम सरकार के उस फैसले को सही ठहराया है जिसके तहत प्रदेश के सभी मदरसों को आम स्कूलों में बदलने का ऑर्डर दिया गया था। प्रदेश की हेमतां बिस्वा सरमा सरकार की तरफ से ये फैसला असम रिपीलिंग एक्ट-2020 के तहत दिया था जिसे हाईकोर्ट ने सही ठहराया है। मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति सौमित्र सैकिया की पीठ ने कहा कि कि विधानसभा और राज्य सरकार द्वारा लाये गए बदलाव का जो फैसला किया गया है वो सिर्फ सरकारी मदरसों के लिए है न कि निजी मदरसों के लिए।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने विधानसभा में असम रिपीलिंग एक्ट-2020 पास करते हुए इस कानून के आधार पर सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों को विद्यालयों में बदलने का निर्णय लिया था। इस ऐक्ट के तहत मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) अधिनियम- 1995 और असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवाओं का प्रांतीयकरण और मदरसा शैक्षिक संस्थानों का पुनर्गठन) अधिनियम- 2018 को खत्म कर दिया गया था।
2021 में 13 व्यक्तियों की ओर से दायर याचिका के माध्यम से राज्य सरकार के उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदला जाना है। कोर्ट ने पिछले साल 13 लोगों के जरिये दाखिल असम रिपीलिंग एक्ट-2020 को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि पूरी तरह सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसे मजहबी तालिम नहीं दे सकते। ये संविधान के अनुच्छेद 28-1 के खिलाफ है। मदरसों के टीचरों की नौकरी नहीं जाएगी। अगर जरूरी हुआ तो उन्हें दूसरे विषय पढ़ाने के लिए ट्रेंड किया जाएगा।