सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (20 अगस्त) को नाबालिग से रेप के आरोपी की सजा बहाल कर दी। साथ ही कलकत्ता हाईकोर्ट की उस टिप्पणी को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर काबू रखना चाहिए। वे दो मिनट के सुख के लिए समाज की नजरों में गिर जाती हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा- निचली अदालतों को फैसला कैसे लिखना चाहिए, इसे लेकर भी हम निर्देश जारी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के कमेंट को आपत्तिजनक बताया था।
कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस चितरंजन दास और जस्टिस पार्थ सारथी सेन की बेंच ने 18 अक्टूबर 2023 को रेप केस की सुनवाई की थी। बेंच ने लड़के को नाबालिग गर्लफ्रेंड के यौन उत्पीड़न मामले में बरी कर दिया था। दोनों टीनएजर्स के बीच अफेयर था और उन्होंने सहमति से संबंध बनाए थे।
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने लड़के को पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराते हुए 20 साल जेल की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ वह हाईकोर्ट पहुंचा था। हाईकोर्ट ने लड़के को नसीहत दी थी- किशोरों को युवतियों, महिलाओं की गरिमा और शारीरिक स्वायत्तता का सम्मान करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 8 दिसंबर को कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना की थी। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट की टिप्पणियों को घोर आपत्तिजनक और पूरी तरह से गलत करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को टीनएजर्स के आर्टिकल 21 के अधिकारों का उल्लंघन बताया था।
बेंच ने ये भी कहा था कि जज से उम्मीद नहीं की जाती कि वे फैसला सुनाते वक्त अपने विचार व्यक्त करें। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने पूछा था कि अगर फैसले के खिलाफ कोई अपील फाइल हुई हो तो हमें बताएं। बंगाल सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने पेरेंट्स को सलाह दी थी- बच्चों को घर में सिखाएं
कलकत्ता हाईकोर्ट ने पेरेंट्स से कहा था कि बच्चों, खासतौर पर लड़कियों को गुड टच-बैड टच, गलत इशारे, अच्छी-बुरी संगत और रिप्रोडक्टिव सिस्टम के बारे में सही जानकारी दें। महिलाओं का सम्मान करने की सीख देनी चाहिए, क्योंकि परिवार ही ऐसी जगह है, जहां बच्चे सबसे ज्यादा और सबसे पहले सीखते हैं।
हाईकोर्ट ने सहमति से संबंध बनाने की उम्र घटाने का सुझाव दिया
हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के प्रावधान पर भी चिंता जताई थी। इनमें किशोरों में सहमति से यौन संबंधों को अपराध माना गया है। बेंच ने 16 साल से ज्यादा उम्र के किशोरों के बीच सहमति से बने संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटाने का सुझाव दिया था।
भारत में यौन संबंधों के लिए सहमति की उम्र 18 साल है। इससे कम उम्र में दी गई संबंध बनाने की सहमति वैध नहीं मानी जाती।
सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। मंगलवार यानी 17 अक्टूबर को 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि कोर्ट स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव नहीं कर सकता। कोर्ट सिर्फ कानून की व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है।

