सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद, यह कानूनी सिद्धांत UAPA जैसे स्पेशल केस में भी लागू होता है। जिन मामलों में जमानत मिलनी चाहिए, अगर अदालतें उनमें बेल से मना करने लगेंगी तो यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज की बेंच ने कहा, “प्रॉसीक्यूशन के आरोप गंभीर हो सकते हैं, लेकिन यह अदालत का कर्तव्य है कि वो कानून को ध्यान में रखते हुए जमानत पर विचार करे।”
अदालत ने यह कमेंट करते हुए आरोपी जलालुद्दीन खान को जमानत दी। जलालुद्दीन पर अपने मकान की ऊपरी मंजिल पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के मेंबर्स को किराए पर देने का आरोप था। उसके खिलाफ UAPA के तहत केस दर्ज किया गया था।
PFI-SIMI से जुड़े केस में दिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने जलालुद्दीन खान नाम के एक शख्स की जमानत याचिका पर सुनवाई की। इस शख्स ने पटना हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। जलालुद्दीन पर आरोप थे कि वह PM मोदी के बिहार दौरे के दौरान उनके काफिले में बवाल करना चाहता था। वह गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्त था और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे प्रतिबंधित संगठन से जुड़ा था।
PFI के सदस्यों की जलालुद्दीन के घर पर 6 और 7 जुलाई 2022 को ट्रेनिंग होनी थी। जलालुद्दीन को इसके बारे में जानकारी थी, फिर भी उसने घर किराए पर दिया था।
जलालुद्दीन का दावा- वह किसी संगठन से जुड़ा नहीं
याचिका में जलालुद्दीन ने कहा था कि वह किसी प्रतिबंधित संगठन से नहीं जुड़ा है। उसका रोल सिर्फ मका किराए से देने तक था। स्पेशल NIA कोर्ट ने पहले इसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने पुलिस के दस्तावेजों को पढ़ने के बाद NIA कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।
हाईकोर्ट ने आशंका जाहिर की थी कि ये बाहर निकले तो कहीं फिर से ऐसी वारदातों को अंजाम न दे। कोर्ट को यह भी शक था कि ये साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर सकते हैं, इसलिए इनकी जमानत याचिका खारिज की। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। कोर्ट ने जमानत दे दी।
सिसोदिया को भी इसी आधार पर जमानत मिली
9 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व डिप्टी CM मनीष सिसोदिया को भी इसी आधार पर जमानत दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- ‘बार-बार देखा गया है कि किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने से पहले लंबे समय तक की जेल को मुकदमे के बिना सजा बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘बार-बार देखा गया है कि किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने से पहले लंबे समय तक की जेल को मुकदमे के बिना सजा बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

