अयोध्या का राम मंदिर आज संपूर्ण हो गया। प्राण प्रतिष्ठा के 673 दिनों बाद PM मोदी और RSS प्रमुख मोहन भागवत ने मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण किया। सुबह 11.50 बजे अभिजीत मुहूर्त में बटन दबाते ही 2 किलो की केसरिया ध्वजा 161 फीट ऊंचे शिखर पर फहराने लगी। PM भावविभोर हो गए। उन्होंने धर्मध्वजा को हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
ध्वजारोहण से पहले PM मोदी ने मोहन भागवत के साथ मंदिर की पहली मंजिल पर बने रामदरबार में पूजा और आरती की। इसके बाद रामलला के दर्शन किए। PM रामलला के लिए वस्त्र और चंवर लेकर पहुंचे थे। PM ने साकेत कॉलेज से रामजन्मभूमि तक डेढ़ किमी लंबा रोड शो भी किया।
इस दौरान स्कूली छात्रों ने काफिले पर फूल बरसाए और जगह-जगह महिलाओं ने उनका स्वागत किया। पहले चर्चा थी कि ध्वजारोहण समारोह के लिए अमिताभ बच्चन समेत कई सेलिब्रिटीज को न्योता भेजा गया है, लेकिन कोई नहीं पहुंचा।
चारों शंकराचार्यों को छोड़कर देशभर के मठों के संत मंदिर परिसर में मौजूद रहे। शहर को 1000 क्विंटल फूलों से सजाया गया। मंदिर में 5-लेयर सुरक्षा रही। ATS, NSG, SPG, CRPF और PAC के जवान तैनात रहे। रामलला ने आज सोने और रेशम के धागों से बने पीतांबर वस्त्र धारण किए।
सदियों के घाव भर रहे हैं, सदियों की वेदना आज विराम पा रही है। सदियों से आस्था डिगी नहीं, एक पल भी विश्वास टूटा नहीं। धर्म ध्वजा केवल ध्वजा नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता के पुनर्जागरण का प्रतीक है। आने वाले सदियों तक यह ध्वज प्रभु राम के आदर्शों का उद्घोष करेगा। यह ध्वज प्रेरणा देगा कि प्राण जाए पर वचन न जाए।
अयोध्या वह भूमि है, जहां आदर्श आचरण में बदलते हैं। यह वही भूमि है, जहां राम ने जीवन शुरू किया। इसी धरती ने बताया कि एक व्यक्ति अपने समाज की शक्ति से कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम बनता है। जब भगवान यहां से गए तो युवराज राम थे, लौटे तो मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर लौटे।
हर कालखंड में राम के विचार ही हमारी प्रेरणा बने हैं। विकसित भारत की यात्रा को गति देने के लिए ऐसा रथ चाहिए, जिसके पहिये शौर्य और धैर्य हों। ऐसा रथ जिसकी ध्वजा नीति-नीयत से समझौता न करे। ऐसा रथ जिसके घोड़े बल, विवेक, संयम और परोपकार हों।
आज से 190 साल पहले 1835 में लॉर्ड मैकाले ने मानसिक गुलामी की नींव रखी थी। 2035 में उस अपवित्र घटना को 200 साल पूरे हो रहे हैं। हमें आने वाले 10 सालों में भारत को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करना है। मैकाले ने जो सोचा था, उसका प्रभाव व्यापक हुआ। हमें विकार आ गया कि विदेशी चीज अच्छी है, हमारी चीज में खोट है। हर कोने में गुलामी की मानसिकता ने डेरा डाला है। नौसेना के ध्वज पर ऐसे प्रतीक बने थे, जिनका हमारी विरासत से कोई संबंध नहीं था। हमने गुलामी के प्रतीक को हटाया है।
हमारे राम भेद से नहीं, भाव से जुड़ते हैं। उनके लिए कुल नहीं, भक्ति महत्वपूर्ण है। जब देश का हर व्यक्ति सशक्त होता है तो संकल्प की सिद्धि में सबका प्रयास लगता है। राम यानी आदर्श, राम यानी मर्यादा, राम यानी जीवन का सर्वोच्च चरित्र, राम यानी धर्म पथ पर चलने वाला व्यक्तित्व, राम यानी जनता के सुख को सर्वोपरि रखने वाला। अगर समाज को सामर्थ्यवान बनाना है तो भीतर राम की स्थापना करनी होगी।

