सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि प्रत्येक बच्चे को अपने माता-पिता के प्यार का हक है। भले ही दोनों अलग-अलग रहते हों या अलग-अलग देशों में ही क्यों ना हों।
कोर्ट ने कहा कि माता-पिता के मार्गदर्शन और भावनात्मक सहयोग को किसी भी हाल में रोका नहीं जा सकता। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने यह फैसला एक पिता को अपने बेटे से बात करने से रोकने के मामले में सुनाया।
दरअसल, पिता भारत में रहता है और बेटा आयरलैंड में उनकी पत्नी के साथ है। पिता ने 9 साल के बेटे से वीडियो कॉल पर बात करने की अनुमति मांगी थी।
बेंच ने पिता की मांग को जायज ठहराते हुए आदेश दिया कि पिता बेटे से हर दूसरे रविवार को आयरलैंड के समय अनुसार सुबह 10 से 12 बजे तक दो घंटे वीडियो कॉल पर बात कर सकते हैं। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि माता-पिता दोनों सुनिश्चित करें कि यह प्रक्रिया बिना किसी रुकावट के पूरी हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पैरेंट्स का झगड़ा, बच्चे के लिए ठीक नहीं
बच्चे को पिता या मां से दूर करना उसके विकास और भविष्य पर बुरा असर डालता है। माता-पिता का झगड़ा बच्चे को अनावश्यक संघर्ष में झोंक देता है, जो उसकी जिंदगी और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
बच्चे को पिता से दूर करना उसके प्यार और मार्गदर्शन से वंचित करना है। अदालत ने कहा कि बच्चों की भी जिम्मेदारी है कि वे मां और पिता दोनों के संपर्क में बने रहें, ताकि उनका संतुलित विकास हो सके।
इस पूरे मामले को जानिए
यह याचिका मनोज धनखर ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 4 अक्टूबर, 2024 के आदेश के खिलाफ दायर की थी। मनोज धनखर ने 26 नवंबर, 2012 को निहारिका से विवाह किया था। उनका बेटा 18 जनवरी, 2016 को पैदा हुआ। लेकिन 5 साल बाद अलग हो गए। तलाक के लिए आवेदन किया।
इसके बाद बच्चे की कस्टडी को लेकर दोनों के बीच विवाद शुरू हुआ। पिता ने 2018 में फैमिली कोर्ट का रुख किया। शुरुआत में, उन्हें महीने में दो बार स्कूल में बच्चे से मिलने की अनुमति दी गई।
बाद में, 2022 में, कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ उन्हें हफ्ते के आखिरी दो के लिए कस्टडी दी। मार्च 2023 में, फैमिली कोर्ट ने उनकी कस्टडी याचिका खारिज कर दी, क्योंकि उन्होंने अंतरिम आदेशों का उल्लंघन किया था। मामला हाईकोर्ट पहुंचा। यहां 2024 में इस फैसले को बरकरार रखा, कोर्ट ने कहा कि बच्चा 2017 से लगातार मां के साथ रह रहा है।

