सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र निकाय चुनाव को लेकर फैसला सुनाया है। कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं कि वह चार सप्ताह के भीतर राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी करे।
अदालत ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र चुनाव आयोग चार महीने के भीतर निकाय चुनाव संपन्न कराने का प्रयास करे।
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा- हमारे विचार से स्थानीय निकायों के समय-समय पर चुनावों के जरिए लोकतंत्र के संवैधानिक जनादेश का सम्मान किया जाना चाहिए।
ओबीसी आरक्षण पर फंसा था पेंच
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव पिछले कई सालों से नहीं हुए हैं। इसका मुख्य कारण ओबीसी आरक्षण से जुड़ी कई लंबित कानूनी प्रक्रियाएं रही हैं।
कोर्ट ने इस देरी को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए सही नहीं माना है और समय पर चुनाव करने के निर्देश दिए। अदालत ने बनठिया आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया।
इस रिपोर्ट में ओबीसी पर सटीक आंकड़े तय करने के लिए जनगणना और महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में इस वर्ग के लिए 27 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की गई थी।
पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव के परिणाम सर्वोच्च न्यायालय में लंबित याचिकाओं के निर्णयों के अधीन होंगे।
2021 में भी सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था फैसला
साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक कि सरकार शीर्ष अदालत के 2010 के आदेश में निर्धारित ट्रिपल टेस्ट को पूरा नहीं करती।
कोर्ट ने आदेश दिया था कि जब तक ट्रिपल टेस्ट मानदंड पूरा नहीं हो जाता तब तक ओबीसी सीटों को सामान्य श्रेणी की सीटों के रूप में फिर से अधिसूचित किया जाएगा।
शिवसेना (अविभाजित) ने 84 सीटें जीती थीं
वर्ष 2017 के बीएमसी चुनावों में (अविभाजित) शिवसेना ने 84 सीट पर, जबकि बीजेपी ने 82 सीट पर जीत हासिल की थी। अविभाजित शिवसेना विधायकों और सांसदों के एक बड़े हिस्से ने जून 2022 में उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी और एकनाथ शिंदे नीत खेमे में शामिल हो गए थे। बाद में चुनाव आयोग ने उनकी पार्टी को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी थी।

