CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि जब वे पांचवीं क्लास में थे, तो उन्हें एक छोटी सी गलती के लिए बेंत से हाथ पर मार पड़ी थी। शर्म के मारे 10 दिन बाद तक वे अपने माता-पिता को ये बात नहीं बता पाए थे। उन्हें अपना घायल हाथ माता-पिता से छिपाना पड़ा था।
CJI ने ये बातें शनिवार को काठमांडू में सुप्रीम कोर्ट ऑफ नेपाल की तरफ से आयोजित कराए गए नेशनल सिम्पोजियम ऑन ज्यूवनाइल जस्टिस में कहीं। अपने बचपन का किस्सा शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि मैं उस दिन को कभी नहीं भूल पाऊंगा। आप बच्चों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं, उसका असर जिंदगीभर उनके दिमाग पर रहता है।
CJI बोले- इस घटना ने मेरे दिल-दिमाग को प्रभावित किया
CJI ने बताया कि मैं कोई नाबालिग अपराधी नहीं था, जब मुझे मार पड़ी थी। मैं क्राफ्ट सीखा करता था और उस दिन मैं असाइनमेंट के लिए क्लास में सही साइज की सुई लेकर नहीं गया था। मुझे याद है कि मैंने अपने टीचर से कहा था कि हाथ पर मारने की बजाय कमर पर मार दें। लेकिन, उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी।
मार पड़ने के बाद शर्म के मारे 10 दिन बाद तक मैं अपने माता-पिता को इस बारे में नहीं बता पाया था। मुझे अपना घायल हाथ उनसे छिपाना पड़ा था। मेरे हाथ का घाव तो भर गया, लेकिन मेरे दिमाग और आत्मा पर हमेशा के लिए ये घटना छप गई। आज भी जब मैं अपना काम करता हूं तो मुझे ये बात याद रहती है। ऐसी घटनाओं का बच्चों के मन पर प्रभाव बहुत गहरा होता है।
CJI ने कहा- नाबालिग अपराधियों के प्रति दया रखना जरूरी
CJI ने कहा कि नाबालिग न्याय पर चर्चा करते हुए हमें नाबालिग अपराधियों की परेशानियों और खास जरूरतों का ध्यान रखने की जरूरत है। साथ ही ये भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारा जस्टिस सिस्टम इन बच्चों के प्रति दया रखे। उन्हें सुधरने और समाज में वापस शामिल होने का मौका दे। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि हम किशोरावस्था के अलग-अलग स्वभाव को समझें और ये भी समझें कि ये समाज के अलग-अलग आयामों से कैसे जुड़ते हैं।