पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में अप्रैल में सांप्रदायिक हिंसा को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट की तरफ से गठित जांच समिति ने गंभीर खुलासे किए हैं। इसमें कहा गया है कि हिंसा में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) के स्थानीय नेता की भूमिका थी। हमलों का नेतृत्व स्थानीय पार्षद महबूब आलम ने किया।
रिपोर्ट के अनुसार हिंसा में खासतौर पर हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया। इस दौरान स्थानीय पुलिस पूरी तरह से निष्क्रिय रही। पीड़ितों ने कई बार पुलिस को कॉल किया, लेकिन कोई मदद नहीं पहुंची।
दरअसल, 17 अप्रैल को हाईकोर्ट ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। इसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के एक-एक सदस्य शामिल थे।
पश्चिम बंगाल में 11-12 अप्रैल को नए वक्फ बोर्ड कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान भीड़ उग्र हो गई थी। इसके बाद मुर्शिदाबाद में हिंसा हुई। इसमें कम से कम तीन लोगों की मौत हुई थी और कई लोग घायल हुए थे।
मुख्य हमला 11 अप्रैल, शुक्रवार को दोपहर 2:30 बजे के बाद हुआ।
पार्षद महबूब आलम उपद्रवियों के साथ आए थे। इसके बाद हिंसा भड़की।
बेटबोना गांव में 113 घरों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा।
आगजनी, लूटपाट और दुकानों व मॉल्स को निशाना बनाया गया।
बंगाल गवर्नर गृह मंत्रालय को रिपोर्ट भेज चुके
पश्चिम बंगाल के गवर्नर सी. वी. आनंद बोस ने 4 मई को मुर्शिदाबाद दंगे पर गृह मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें कट्टरपंथ और उग्रवाद को पश्चिम बंगाल के लिए बड़ा खतरा बताया था।
गवर्नर ने कहा था कि बंगाल को दोहरा खतरा है, खासतौर पर बांग्लादेश से सटे मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में ज्यादा है, क्योंकि यहां हिंदू आबादी अल्पसंख्यक हैं। उन्होंने नॉर्थ दिनाजपुर को भी संवेदनशील जिला बताया था।
गवर्नर की रिपोर्ट के 4 मुख्य सुझाव..
बांग्लादेश से सटे सीमावर्ती जिलों में सेंट्रल फोर्सेस की चौकियां बनाई जाएं।
हिंसा की जांच के लिए एक आयोग गठित हो।
केंद्र सरकार ‘संवैधानिक विकल्पों’ पर विचार करे, ताकि राज्य में कानून व्यवस्था बनी रहे।
हालात बिगड़ने पर आर्टिकल 356 (राष्ट्रपति शासन) को विकल्प बताया। हालांकि, उन्होंने साफ किया कि अभी इसकी जरूरत नहीं है।
गवर्नर का दावा- मुर्शिदाबाद हिंसा प्री-प्लांड थी
बंगाल गवर्नर ने दावा किया था कि मुर्शिदाबाद हिंसा पहले से ही प्लान की गई थी। राज्य सरकार को पहले से खतरे का अंदेशा था, क्योंकि 8 अप्रैल को वक्फ (अमेंडमेंट) एक्ट जारी होने के तुरंत बाद हिंसा भड़क गई और राज्य सरकार ने उसी दिन इंटरनेट बंद कर दिया।
उन्होंने कहा था कि राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने में कोऑर्डिनेशन की बड़ी कमी दिखी। इसी वजह से केंद्र को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए संवैधानिक विकल्प तलाशने की सिफारिश की है।

