सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के रिवीजन जारी रखने की अनुमति दी। अदालत ने इसे संवैधानिक जिम्मेदारी बताया।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) यानी वोटर लिस्ट रिवीजन की टाइमिंग पर सवाल उठाए। अदालत ने चुनाव आयोग से कहा कि बिहार में SIR के दौरान आधार, वोटर आईडी, राशन कार्ड को भी पहचान पत्र माना जाए।
बेंच के मुताबिक, 10 विपक्षी दलों के नेताओं समेत किसी भी याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर अंतरिम रोक की मांग नहीं की है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर चुनाव आयोग से 21 जुलाई तक जवाब मांगा। अगली सुनवाई 28 जुलाई के लिए तय की।
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) यानी वोटर लिस्ट रिवीजन पर अदालत में करीब 3 घंटे सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि वोटर लिस्ट रिवीजन नियमों को दरकिनार कर किया जा रहा है। वोटर की नागरिकता जांची जा रही है। ये कानून के खिलाफ है।
SIR के खिलाफ राजद सांसद मनोज झा, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत 11 लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं। याचिकाकर्ता की ओर से वकील गोपाल शंकर नारायण, कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने जिरह की। चुनाव आयोग की पैरवी पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, राकेश द्विवेदी और मनिंदर सिंह ने की।
सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा, हम आपकी नीयत पर संदेह नहीं कर रहे
सुप्रीम कोर्ट ने आयोग की ओर से पेश वकील राकेश द्विवेदी से कहा, “हम आपकी नीयत पर संदेह नहीं कर रहे, लेकिन धारणा भी मायने रखती है। हम आपको रोकना नहीं चाहते, क्योंकि यह संवैधानिक दायित्व है।”
द्विवेदी ने बताया कि अब तक 60% मतदाताओं ने अपनी जानकारी सत्यापित कर ली है। अदालत को आश्वस्त किया कि किसी भी मतदाता का नाम सुनवाई किए बिना मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम एक संवैधानिक संस्था को वह करने से नहीं रोक सकते जो उसका दायित्व है। लेकिन साथ ही हम यह भी नहीं होने देंगे कि वह ऐसा कुछ करे जो उसका दायित्व नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अगली सुनवाई 28 जुलाई को
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि किसी भी वोटर को वोटर लिस्ट से बाहर नहीं किया जाएगा। मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।

