राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से इस्तीफा देंगे। रायबरेली से सांसद बने रहेंगे। दैनिक भास्कर ने 10 दिन पहले ही बता दिया था कि राहुल वायनाड से इस्तीफा देंगे और प्रियंका गांधी वायनाड से उप-चुनाव लड़ेंगी। राहुल ने वायनाड सीट को छोड़कर देश के सबसे बड़े सियासी स्टेट और गांधी परिवार के गढ़ को फिर से अपना बना लिया।
राहुल ने रायबरेली सीट को क्यों अपनाया? वायनाड क्यों छोड़ा? बहन प्रियंका क्यों उप-चुनाव लड़ेंगी? दोनों की फ्यूचर पॉलिटिकल स्ट्रैटजी क्या होगी? इन सारे सवालों के जवाब हैं, इनके अपने सियासी मायने और समीकरण हैं। इसमें नॉर्थ और साउथ की पॉलिटिक्स भी है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है- गांधी परिवार को पता है कि यूपी में अपनी खोई जमीन को दोबारा पाने का इससे बेहतर मौका नहीं आएगा। आम चुनाव में इंडिया गठबंधन ने यूपी में देश का सबसे बेस्ट परफॉर्मेंस दिया।
राहुल ने वायनाड से इस्तीफे का ऐलान भले आज किया हो, लेकिन यह फैसला 10 दिन पहले ही कर लिया था। सोमवार की मीटिंग महज औपचारिकता थी। बैठक में भी ज्यादातर नेताओं का कहना था कि राहुल ने साउथ इंडिया में कांग्रेस को काफी मजबूत कर दिया है। अब नॉर्थ इंडिया की यानी हिंदी पट्टी की बारी है। देश में कांग्रेस को अकेले दम पर सरकार बनानी है तो उसे हिंदी पट्टी को जीतना ही होगा।
इसीलिए पार्टी ने अच्छा निर्णय लिया कि राहुल उत्तर भारत को लीड करेंगे, जबकि प्रियंका साउथ इंडिया को। प्रियंका के साउथ में जाने से वहां कांग्रेस के प्रति लोगों में नाराजगी भी नहीं होगी। साथ ही कांग्रेस की पकड़ भी बनी रहेगी।
- पार्टी और परिवार के लिए लकी सीट और विरासत भी
गांधी परिवार की अब तक की राजनीति देखेंगे तो उसमें पार्टी के मुखिया ने हमेशा अमेठी या रायबरेली से ही देश की राजनीति को चलाया है। ये दोनों सीटें परिवार के लिए लकी भी मानी जाती हैं।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पहले मां सोनिया ने राहुल को समझाया कि UP कांग्रेस के लिए बेहद जरूरी है। इसलिए उन्हें रायबरेली अपने पास रखना चाहिए। राहुल के रायबरेली में बने रहने की सहमति के पीछे मां सोनिया की वह भावुक अपील भी है, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘आपको बेटा सौंप रही हूं।’
सोनिया के अलावा बहन प्रियंका और जीजा रॉबर्ट वाड्रा ने भी समझाया कि रायबरेली की जीत इस लिहाज से भी बड़ी है कि परिवार ने अमेठी की खोई सीट भी हासिल कर ली। रायबरेली में राहुल को वायनाड से बड़ी जीत मिली। ऐसे में रायबरेली छोड़ेंगे तो UP में गलत मैसेज जाएगा।
यही नहीं, गांधी परिवार के मुखिया ने हमेशा UP से ही राजनीति की। पिता राजीव गांधी अमेठी और परदादा जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद से चुनाव लड़ते रहे हैं। रायबरेली उनकी मां, दादी इंदिरा और दादा फिरोज गांधी की सीट है।
- हिंदी पट्टी और देश में पैठ का रास्ता यूपी से जाता है
उत्तर भारत के राज्यों में लोकसभा की 543 में से करीब 350 सीटें हिंदी भाषी बहुल राज्यों से आती हैं। यहां 2019 में भाजपा को 170 से ज्यादा सीटें मिली थीं और भाजपा ने अकेले दम पर सरकार बनाई थी।
कांग्रेस की भी यही सोच है कि अगर उसे अकेले दम पर केंद्र में सरकार बनानी है तो हिंदी भाषी राज्य और खासकर यूपी में मजबूत होना होगा, क्योंकि गठबंधन के भरोसे बहुत दिन सत्ता में कायम नहीं रहा जा सकता है।
यूपी कांग्रेस को UP में इस बार 9.4 फीसदी वोट मिले। यह कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह है। 2019 में 6.36% वोट शेयर और 1 सीट ही मिली थी। 2022 UP विधानसभा चुनाव में 2.33% वोट और दो सीटें मिली थीं।
- यूपी से हो विपक्ष का नेता, मोदी को संसद में देंगे चैलेंज
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि राहुल को संसद में विपक्ष का नेता बनना होगा, नहीं तो अनुशासनात्मक कार्रवाई करूंगा। इसके बाद से राहुल का विपक्ष का नेता बनना तय माना जा रहा है।
रायबरेली सीट को बरकरार रखने के पीछे कांग्रेस का एक आइडिया ये भी है कि जिस राज्य से प्रधानमंत्री आते हैं, उसी राज्य से विपक्ष का नेता भी होगा। इससे राहुल को नेशनल मीडिया और लोगों के बीच में बने रहने का ज्यादा मौका मिलेगा। राहुल यूपी में ज्यादा एक्टिव होंगे तो वह मोदी को और ज्यादा टक्कर दे सकेंगे।
राहुल मुखर होकर यूपी के मुद्दों को सदन में उठा सकेंगे। इससे कांग्रेस का यूपी में मास कनेक्ट और बढ़ेगा। साथ ही कांग्रेस हिंदी भाषी राज्यों में और मजबूत होगी। कांग्रेस के कार्यकर्ता एक बार फिर नई ऊर्जा और जोश के साथ जनता के बीच

