फरीदाबाद। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। इसी खास अवसर पर लिंगयास विद्यापिठ, डीम्ड-टू-बी- यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को प्राथनिकता देते हुए इस अवसर को बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। प्रोफेसर एंड एसोसियेट डिन डिपाप्टमेंट ऑफ आंगलिश डॉ. आंचल मिश्रा ने एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) के सहयोग से बेहद ही महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया।
आयोजन के दौरान एनडीआरएफ के आठवें बटालियन के उप कमांडेंट अधिकारी आदित्य प्रताप सिंह ने बहुत ही जानकारीपूर्ण सत्र के लिए मंच संभाला जिसमें उन्होनें बाढ़, भूकंप, चक्रवात और सुनामी जैसी स्थिती में काम आने वाले बचाव के तरीके बताएं। उन्होंने बचाव कार्यों का संचालन करते समय एनडीआरएफ के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में भी बात की। उन्होंने प्राथमिक चिकित्सा पद्धतियों पर चर्चा की। एनडीआरएफ की टीम ने सीपीआर का प्रदर्शन किया और घायल पीडि़तों को प्राथमिक उपचार के बारे में जानकारी दी। एक घायल पीडि़त की पूरी तरह से जांच कैसे करें और एक डॉक्टर के आने तक उसकी मदद कैसे करें। इन सभी महत्वपूर्ण सूचनाओं की जानकारी दी।
इस अवसर पर लिंग्याज ग्रुप के चेयरमैन डा. पिचेश्वर गड्डे ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने के उद्देश्य समय के साथ और महिलाओं की समाज में स्थिति बदलने के साथ परिवर्तित होती रही है। शुरुआत में जब 19 सवी शताब्दी में इसकी शुरुआत की गई थी, तब महिलाओं ने मतदान का अधिकार प्राप्त किया था, परंतु अब समय परिवर्तन के साथ इसके उद्देश्य भी बदल चके है। महिला दिवस मनाने का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य महिला और पुरुषो में समानता बनाए रखना है। आज भी दुनिया में कई हिस्से ऐसे है, जहां महिलाओं को समानता का अधिकार उपलब्ध नहीं है। नौकरी में जहां महिलाओं को पदोन्नति में बाधाओं का सामना करना पड़ता है, वहीं स्वरोजगार के क्षेत्र में महिलाएं आज भी पिछड़ी हुई है। महिला दिवस मनाने के एक उद्देश्य लोगों को इस संबंध में जागरूक करना है।
वाइस चांसलर डॉ. ए.आर. दूबे ने बताया कि 19वीं सदी तक आते-आते महिलाओं ने अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता दिखानी शुरू कर दी थी। अपने अधिकारों को लेकर सुगबुगाहट पैदा होने के बाद 1908 में 15000 स्त्रियों ने अपने लिए मताधिकार की मांग दुहराई। साथ ही उन्होंने अपने अच्छे वेतन और काम के घंटे कम करने के लिए मार्च निकाला। यूनाइटेड स्टेट्स में 28 फरवरी 1909 को पहली बार राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का विचार सबसे पहले जर्मनी की क्लारा जेडकिंट ने 1910 में रखा। उन्होंने कहा कि दुनिया में हर देश की महिलाओं को अपने विचार को रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने की योजना बनानी चाहिए। इसके मद्देनजर एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें 17 देशों की 100 महिलाओं ने भाग लिया और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने पर सहमति व्यक्त की। 19 मार्च 1911 को आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। उसके बाद 1913 में इसे बदल कर 8 मार्च कर दिया गया।