फरीदाबाद। आज के आधुनिक युग में गलत खान-पान व आदतों के चलते छोटी उम्र के युवा भी हार्ट अटैक जैसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहे है। एसएसबी अस्पताल में हार्ट अटैक से पीडि़त होकर गंभीर अवस्था में आए 19 वर्षीय युवक की डाक्टरों ने इमरजेंसी एंजियोप्लास्टी कर नया जीवन देने का काम किया है। अस्पताल के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ एवं निदेशक डा. एस.एस. बंसल ने बताया कि जिस समय युवक को अस्पताल लाया गया, उसके सीने व जबड़े में दर्द था और दर्द बाएं कंधे तक भी जा रहा था, उसे उल्टी और पसीना भी आ रहा था। जांच करने पर पता चला कि उसे हार्ट अटैक उसके हृदय की महत्वपूर्ण धमनी में रूकावट के कारण हुआ था और उनके हृदय की पम्प की क्षमता भी घटकर 40 प्रतिशत रह गई थी। प्रारंभिक जाचं के बाद उनकी एंजियोग्राफी की गई, जिसमें पाया गया कि हृदय की धमनी एलएडी में बड़े-बड़े रक्त के थक्के जमा होकर क्रिटिकल ब्लॉक बन गए थे। एक स्पेशल कैथेटर की मदद से उन रक्त के थक्कों को निकालकर इमरजेंसी एंजियोप्लास्टी व स्टेंटिग की गई, जिसके बाद अब रोगी स्वस्थ है। डा. बंसल ने बताया कि इस मरीज में हृदय रोग का कारण धूम्रपान व पारिवारिक हृदय रोग का होना पाया गया। इसमें हामोसिस्टीन के लेवल बहुत हाई पाये गए। इसमें की एचएससीआरपीआर मात्रा भी 32 पाई गई, जो कि 3 से कम होनी चाहिए। इस मामले में पाया गया कि मरीज का हा हामोसिस्टीन स्तर 50 माइक्रोमोल/लीटर से अधिक था, जो कि काफी उच्च स्तर पर है, इसकी नार्मल सीमा 16 माइक्रोमोल/लीटर से कम होती है। डा. बंसल के अनुसार शरीर में होमेासिस्टीन सामान्य रूप से शरीर द्वारा उपयोग के लिए अन्य अमीनो एसिड में टूटकर बदल जाता है। इसके टूटने के लिए विटामिन बी और फोलिक एसिड की आवश्यकता होती है, यदि होमोसिस्टीन का स्तर बहुत अधिक है तो यह रक्त थक्का बनने का कारण बन सकता है, इन रोगियों को विट बी 12 और फोलिड एसिड की उच्च खुराक दी जाती है। उन्होंने बताया कि इस मामले में दिलचस्प तथ्य यह है कि मरीज के पिता भी हाइपरहोमोसिस्टीनमिया के मरीज थे और वह हृदय रोग और एथेरोस्क्लेरोसिस से भी पीडि़त थे। हालांकि उनके पिता को उनसे बड़ी उम्र में दिल का दौरा पड़ा था। डा. एस.एस. बंसल ने लोगों को सलाह दी कि यदि हाइपरहोमोसिस्टीनेमिया और हृदय रोग का पारिवारिक इतिहास है, तो भाई-बहनों को अन्य पांरपरिक रिश्तेदारों को भी स्थापित करने के लिए अपने सीरम होमेसिस्टीन स्तर की भी जांच करवानी चाहिए ताकि हृदय रोग के जोखिम को कम करने के लिए कुछ निवारक उपाय किए जा सके ताकि इतनी कम उम्र में हार्ट अटैक को रोका जा सके।