पहले आम चुनाव (1952) के बाद से अब तक 72 सालों के चुनावी सफर में देश ने करीब 31 साल गठबंधन सरकारों का दौर देखा है। 2014 से 2024 तक नरेंद्र मोदी की अगुआई में एनडीए की सरकार जरूर थी, लेकिन इसके प्रमुख घटक भाजपा ने 2014 और 2019 में क्रमशः 282 और 303 सीटें जीती थीं।
सरकार चलाने के लिए मोदी एनडीए के घटक दलों पर निर्भर नहीं थे। लेकिन, 2024 चुनाव में भाजपा की सीटें घटकर 240 हो गई हैं, लिहाजा इस बार भाजपा को घटक दलों पर निर्भर रहना होगा। यानी देश में एक बार फिर गठबंधन सरकार का दौर शुरू हो रहा है।
1977 में बनी जनता पार्टी की सरकार पहली गठबंधन सरकार थी। इसके बाद 1989 में वीपी सिंह की अगुआई में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी थी। उनकी सरकार के गिरने के बाद चंद्रशेखर ने कांग्रेस के बाहर से समर्थन से सरकार चलाई थी।
1991 में कांग्रेस को 232 सीटें मिलीं, जिससे पीवी नरसिंह राव को कई दलों के भरोसे रहना पड़ा। 1996 के चुनाव के बाद सबसे बड़े दल भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री जरूर बने थे, लेकिन बहुमत नहीं जुटा सके। उनकी सरकार 13 दिनों में गिर गई।
उसके बाद एच डी देवेगौड़ा की अगुआई में 13 दलों से मिलकर बने संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी, जिसे बाहर से कांग्रेस का समर्थन हासिल था। 1996 से 2014 तक देश ने गठबंधन सरकारों को लंबा दौर देखा। गठबंधन सरकारों ने आर्थिक सुधार के मामले में दिशा दिखाई, लेकिन अपने सहयोगियों को रुठने-मनाने से जूझती रहीं।
इस दौर ने दो प्रधानमंत्री देखे, पहले एच डी देवेगौड़ा और फिर इंद्रकुमार गुजराल। देवेगौड़ा ने कांग्रेस के बाहर से समर्थन से बनी 13 दलों की संयुक्त मोर्चा सरकार संभाली थी। इसमें जनता दल, सपा, द्रमुक, तमिल मनिला कांग्रेस, असम गण परिषद व टीडीपी प्रमुख थे।
देवेगौड़ा सरकार में 1997 में चिदंबरम द्वारा पेश किए गए बजट में खाद, पावर ट्रिलर और छोटे ट्रैक्टर की खरीद पर सब्सिडी दी। आयकर की दरें 15, 30 और 40 फीसदी से 10, 20 और 30 फीसदी कर दी गईं। कॉर्पोरेट टैक्स में सेस हटाया गया। इसके साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए विनिवेश आयोग की पेशकश की गई।
देवेगौड़ा की जगह प्रधानमंत्री बनने वाले इंद्र कुमार गुजराल ने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को प्राथमिकता दी। इसे ‘गुजराल डॉक्ट्रिन’ कहा गया। यह आज भी प्रासंगिक है।
कांग्रेस अध्यक्ष की अति महत्वाकांक्षा ने गिराई सरकार: देवेगौड़ा की सरकार कांग्रेस की मेहरबानी पर टिकी थी। कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी की अति महत्वाकांक्षी के चलते देवेगौड़ा को एक साल पहले इस्तीफा देना पड़ा। यही हाल उनके उत्तराधिकारी इंद्र कुमार गुजराल का हुआ।इसके लिए राजीव गांधी की हत्या की जांच से जुड़े जैन आयोग की रिपोर्ट को कांग्रेस ने आधार बनाया। रिपोर्ट में घटक दल डीएमके पर अंगुली उठाई गई थी। वैसे सरकार के आंतरिक झगड़े भी कम नहीं थे। चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव का नाम आने पर जनता दल के भीतर से ही आवाज उठने लगी थी।

