जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने शहीद दिवस के दिन उन्हें घर में नजरबंद किए जाने का दावा किया है। महबूबा ने इस बात की जानकारी सोशल मीडिया पर अपने घर के गेट पर लगे ताले की तस्वीर शेयर की। उनका कहना है उन्हें खिंबर में उनके घर पर नजरबंद किया गया है।
महबूबा के अलावा, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी शहीद दिवस मनाने पर लगी रोक को प्रशासन की ज्यादती बताया है।
सरकार हमारे इतिहास को मिटाना चाहती है – महबूबा
महबूबा मुफ्ती ने तस्वीर के साथ लिखा मेरे घर के दरवाजे एक बार फिर से बंद कर दिए गए। मुझे सत्तावाद, उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ कश्मीर के विरोध का प्रतीक मानी जाने वाली मजार-ए-शुहादा जाने से रोक दिया गया।
उन्होंने ने लिखा हमारे शहीदों का बलिदान इस बात का सबूत है कि कश्मीरियों की भावनाओं को कुचला नहीं जा सकता। इस दिन शहीद हुए प्रदर्शनकारियों की याद में शहीद दिवस मनाना भी अपराध घोषित कर दिया गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने लिखा 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर दो हिस्सों में बांटकर खंडित कर दिया गया। वह सब कुछ छीन लिया गया जो हमारे लिए पवित्र था। वे हमारे इतिहास को मिटाना चाहते हैं। लेकिन इस तरह के हमले हमारे अधिकार और सम्मान की लड़ाई जारी रखने के संकल्प को मजबूत करेंगे।
प्रशासन की ज्यादती का आखिरी साल- उमर अब्दुल्ला
महबूबा के अलावा नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी शहीद दिवस पर सरकार के प्रतिबंधों पर नाराजगी जताई है। जम्मू-कश्मीर में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों का जिक्र करते हुए लिखा अगले से जम्मू-कश्मीर में 13 जुलाई को 22 शहीदों की याद में शहीद दिवस मनाया जाएगा।
गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को इस साल 30 सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के आदेश दिए हैं। चुनाव आयोग ने राज्य में वोटर्स लिस्ट में अपडेशन को लेकर आदेश जारी कर दिया है। यह काम 20 अगस्त तक पूरा होना है।
लोगों को अपने नायक चुनने का अधिकार- सज्जाद लोन
इसके अलावा पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने भी दावा किया कि उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया है। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा कि उन्हें नजरबंद करने की जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने यह भी कहा कि वे समझ नहीं पा रहे हैं कि लोगों को शहीदों के कब्रिस्तान जाने से रोकने में प्रशासन को क्या मिलता है।
शहीद कश्मीर के लोगों के नायक हैं और लोगों को अपना नायक चुनने का अधिकार है। सरकार को बताने की जरूरत नहीं है कि कौन सा इतिहास वीरतापूर्ण है और कौन नायक है।
22 कश्मीरियों की याद में मनाया जाता है शहीद दिवस
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने से पहले तक 13 जुलाई को राज्य में सार्वजनिक अवकाश हुआ करता था। हर साल इस दिन पर एक सरकारी समारोह आयोजित होता था जिसमें मुख्यमंत्री और राज्यपाल बतौर मुख्य अतिथि शामिल होते थे। लेकिन 2020 में इसे राजकीय अवकाश की सूची से हटा दिया गया।
13 जुलाई के दिन 1931 में राजा हरिसिंह की डोगरा सेना की गोलियों से 22 कश्मीरी शहीद हुए थे। इन कश्मीरियों की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है। इसमें लोग श्रद्धांजलि देने शहीद कब्रिस्तान भी जाते हैं।
हालांकि, इस साल कोई समारोह आयोजित नहीं किया गया। कश्मीर के लोगों को किसी भी तरह के आयोजन से रोकने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन ने कई तरह के प्रतिबंध लागू किए थे।

