दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को देश में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की वकालत की। कोर्ट ने कहा कि पर्सनल लॉ बाल विवाह की परमिशन देता है, जबकि पॉक्सो एक्ट, BNS में यही अपराध है। इन कानूनों के बीच बार-बार होने वाले टकराव को देखते हुए इसकी कानूनी रूप से स्पष्ट व्याख्या जरूरी है।
जस्टिस अरुण मोंगा ने पूछा कि अक्सर हम इस दुविधा में आ जाते हैं कि क्या समाज को लंबे समय से चले आ रहे पर्सनल लॉ का पालन करने के लिए अपराधी बनाया जाना चाहिए।
जस्टिस मोंगा ने कहा कि क्या अब UCC की तरफ बढ़ने का समय नहीं आ गया है। जिसमें एक ऐसा ढांचा बनाया जाए, ताकि पर्सनल लॉ जैसे कानून राष्ट्रीय कानूनों पर हावी न हों।
दिल्ली हाईकोर्ट की यह टिप्प्णी नाबालिग लड़की से शादी करने के आरोपी हामिद रजा की जमानत याचिका से जुड़े केस की सुनवाई के दौरान सामने आई।
हामिद पर IPC की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट के तहत आरोप है कि उसने नाबालिग लड़की से शादी की। रजा के खिलाफ FIR लड़की के सौतेले पिता ने की थी।
हालांकि कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में, नाबालिग रजा की गिरफ्तारी से पहले उसके साथ रह रही थी। उसके पिता ने अपना अपराध छिपाने के लिए FIR की थी। हामिद रजा को जमानत दे दी।
उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन चुका है। 27 जनवरी 2025 में CM पुष्कर सिंह धामी ने इसका ऐलान किया था। UCC लागू होने के बाद से उत्तराखंड में हलाला, बहुविवाह, तीन तलाक पर पूरी तरह रोक लग गई है।
उत्तराखंड, गोवा के बाद पहला राज्य है, जहां UCC लागू हुआ। भले ही गोवा में पहले से ही UCC लागू है, लेकिन वहां इसे पुर्तगाली सिविल कोड के तहत लागू किया गया था। उत्तराखंड आजादी के बाद समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बना है।
इस्लामी पर्सनल लॉ किसी लड़की के यौवन शुरू होने पर शादी की परमिशन देता है। जिसे 15 साल माना जाता है, जबकि IPC-BNS और पॉक्सो एक्ट नाबालिगों की शादी या यौन संबंधों पर प्रतिबंध लगाते हैं। ये कानून धार्मिक रीति-रिवाजों की परवाह किए बिना ऐसी शादियों और रिश्तों को अपराध मानते हैं।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हामिद के केस में उसने जानबूझकर इस शादी की वैधता पर कोई फैसला देने से परहेज किया है। केस में कुछ विचलित करने वाले पॉइंट्स मिले। मसलन FIR, नाबालिग लड़की की मां ने दर्ज कराई थी, लेकिन उस पर उसके सौतेले पिता के दस्तखत थे। सौतेले पिता पर लड़की के यौन उत्पीड़न करने और उसके पहले बच्चे के पिता होने के आरोप में मुकदमा चल रहा है। इसलिए FIR के दावों पर संदेह है।
दस्तावेजों में लड़की की बर्थ डेट 2010 से 2011 के बीच थी। अस्पताल के रिकॉर्ड में उसकी पहली डिलीवरी के समय उसकी उम्र 17 साल बताई थी, जबकि अपने हलफनामे में उसने अपनी उम्र 23 साल होने का दावा किया था। कोर्ट ने कहा कि उम्र के विवाद का निपटारा केवल मुकदमे के दौरान ही किया जा सकता है।

