कश्मीर की पशमीना शॉल वह साड़ी की खरीदारी के लिए लगातार उमड़ रही है दर्शकों की भीड़।
सूरजकुंड (फरीदाबाद), 24 मार्च : 35 वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय क्राफ्ट मेले का दिन गत दिनों से ज्यादा भीड़भाड़ वाला रहा। आपको बता दें कि इस बार 35 वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय क्राफ्ट मेले में जम्मू और कश्मीर थीम स्ट्रीट वेस्ट पाकिस्तान कंट्री पार्टनर के रूप में अपनी भूमिका अदा कर रहा है। जम्मू कश्मीर के सांस्कृतिक कार्यक्रम से लेकर वेशभूषा, वस्त्र, पहनावा आदि दर्शकों को खूब लुभा रहे हैं। जम्मू कश्मीर से 35 से सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय क्राफ्ट मेला में हिस्सा बनिए युवा बुजुर्ग में महिलाओं ने अपने अपने क्षेत्र के व्यंजनों से लेकर कपड़ों तक की स्टाल लगाई हुई है।
वहीं मेले में कश्मीर से आए वाणी ने भी स्कूल नंबर 122 पर अपने प्रदेश में क्षेत्र के पहनावे व सांस्कृतिक वस्त्रों के स्टाल लगा रखी है। स्टॉल पर कश्मीर मैं हाथ से बनी पशमीना शॉल पशमीना साड़ी और कप्तान आदि जैसे वस्त्र दर्शकों का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। स्टॉल के मालिक वाणी से बात करने पर उन्होंने बताया कि वह इस बार मेले में सातवीं साल लगातार हिस्सा ले रहे हैं 2014 से लेकर 2022 तक लगातार मेले में अपनी कश्मीर से लाए गए परिधानों को बेच रहे हैं और दर्शकों को खूब उनके परिधान पसंद आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस बार जम्मू कश्मीर थीम स्टेट होने से उनको बहुत अच्छा व पारिवारिक महसूस हो रहा है सूरजकुंड मेले में आने के बाद उनको बिल्कुल ऐसा नहीं लगता कि वह किसी दूसरे प्रदेश में हो दर्शकों के द्वारा भी उनको खूब प्यार मिलता आया है।
पश्मीना : –
पश्मीना नाम एक फारसी शब्द “पश्म” से लिया गया है, जिसका अर्थ है एक रीतिबद्ध तरीके से ऊन की बुनाई। पश्मीना बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऊन हिमालय के अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पायी जाने वाली कश्मीरी बकरी की एक विशेष नस्ल से प्राप्त होती है। कश्मीर के 15 वीं शताब्दी के शासक, जैन-उल-आबदीन को कश्मीर में ऊन उद्योग का संस्थापक कहा जाता है। हालांकि, इन शॉलों के निर्माण का इतिहास तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से देखा जा सकता है। पश्मीना सदियों से पारंपरिक पहनावे का अभिन्न अंग रहा है। पहले के समय में, यह केवल राजाओं और रानियों द्वारा ही पहना जाता था और इस प्रकार यह शाही महत्व का प्रतीक था। पश्मीना की बुनाई की कला कश्मीर राज्य में पीढ़ी से पीढ़ियों तक विरासत के रूप में चली आई है। एक अच्छी पश्मीना शॉल की कताई, बुनाई और कढ़ाई बनाने के लिए एक विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है।
पश्मीना शॉल :-
फाइबर जैसे बहुत ही अच्छे रेशम से तैयार की गई उच्चतम गुणवत्ता वाली शॉल है। शाल की गर्मी, नर्मी और कुछ हद तक उसके रंग के द्वारा एक शुद्ध पश्मीना को पहचाना जा सकता है। पश्मीना शॉल का सबसे अच्छा प्राकृतिक क्रीम रंग है। कश्मीर हजारों वर्षों से पश्मीना शॉलों का निर्विवाद निर्माता रहा है। पश्मीना का उत्पादन और निर्यात कश्मीर के लोगों के लिए एक विशेष व्यापारिक अवसर है, जब तक मूल रूप से इसका यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात किया जा रहा है। पश्मीना व्यापार कश्मीर राज्य के लिए आय के प्रमुख स्रोत के रूप में कार्य करता है और इसकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है। 1990 के दशक में, फैशन उद्योग में पश्मीना की मांग ने इसकी आपूर्ति के कारण इसकी कीमतों ने आकाश की ऊँचाई को छुआ। नतीजतन पश्मीना अधिक महंगी हो गई और इस प्रकार उच्च वर्ग समाज तक ही सीमित रह गई।
पश्मीना शॉल लगभग पिछले कुछ वर्षों में एक हैसियत का प्रतीक बन गई है। एक पश्मीना पहनना अपने आप में एक अलग शान है। एक शुद्ध पाश्मिना शॉल की लागत 7000-12000 रुपये है। ये शॉल मौद्रिक मूल्य के आधार पर विभिन्न रंगों और डिजाइनों में आती हैं। हालांकि यह शॉलें कीमत में सस्ती नही हैं लेकिल एक पश्मीना शॉल को ठंडकों में आपकी अलमारी में होना चाहिए। यह एक सदाबहार फैशन सहायक शॉल है जो हर शैली में अच्छी लगती है और कभी भी अपना आकर्षण नही खो सकती है। यह गर्दन के चारों ओर एक स्कार्फ के रूप में पहनी जा सकती है या बाहों के चारों ओर लपेटी जा सकती है। चाहे आप पार्टी में हों या आपने कार्यस्थल पर, पश्मीना शॉल आपके व्यक्तित्व को बढ़ाने और भीड़ में अपने आपको अलग दर्शाने का सबसे अच्छा तरीका है।
35 वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय क्राफ्ट मेले में अगर आप पश्मीना शॉल की खरीदारी करना चाहते हैं तो स्टॉल नंबर 122 पर जरूर आएं।