दिल्ली एनसीआर में भी भुकंप के चार झटके महसूस किए गए। भूकंप का केंद्र नेपाल में था। कुछ दिनों से कई बार दिल्ली- एन सी आर और देश के कई हिस्से में कई बार भूकम्प के झटके महसूस किए गए हैं।
भूकंप से बचाव क्या है एकमात्र उपाय
इसी साल फरवरी महीने में जम्मू कश्मीर में भी भूकंप आया था।
पिछले दो वर्षो में दस से भी अधिक बार भुकंप के झटके दिल्ली में आए ।
मुझे नहीं लगता कि इस तरह इतनी बार शायद ही कभी भी दिल्ली में भूकम्प के झटके आए होंगे।
भारत में जान माल का कोई नुकसान की खबर अभी नहीं है ।
यह भूकम्प फॉल्ट लाइन प्रेशर के कारण आया या कोई और कारण था यह तो शोध के बाद मालूम होगा ।
हिंदूकश से हिमालय बड़े भूकम्प बड़े भूकम्प फॉल्ट लाइन के किनारे लगते हैं।
भूकम्प के मामले में दिल्ली और आस पास के क्षेत्रों को zone-4 में रखा गया है जहाँ 7.9 तीव्रता तक के भूकम्प आ सकते हैं।
अतुल्य लोकतंत्र के लिए पर्यावरणविद् एवं स्तंभकार प्रशांत सिन्हा की कलम से
भूकम्प से निपटने के लिए किसी भी स्तर पर कोई भी काम होता नहीं दिख रहा है।
2001 में गुजरात में आए भयावह भूकम्प से किसी ने कोई सबक़ नहीं लिया।
दिल्ली की इमारतें 6.6 की तीव्रता को सह सकती है वहीं पुरानी इमारतें 5.5 की तीव्रता को झेल सकतीं हैं।
वैसे आपदा विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिकों ने बड़े भूकम्प ( जिसकी तीव्रता 8.5 तक हो सकती है) की जानकारी दी है।
नेपाल में आए 2008 और 2015 में आए भूकम्प से दिल्ली थोड़ी सबक़ लेते हुए कुछ सरकारी इमारतों को मज़बूत की गयी थीं।
पिछ्ले साल केंद्र सरकार ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह के सभी शहर भुकंप के लिहाज से जोखिम वाली जगहों में शामिल है ।
सन 1315-1440 के बीच इस क्षेत्र में बड़ा भूकम्प आया था।
तभी से यह हिमालय का क्षेत्र शांत है लेकिन इस पर दवाब बढ़ रहा है इसलिए भूकम्प आने की सम्भावना है।
जैसे सभी को ज्ञात है कि भूकम्प को आने से नहीं रोका जा सकता है
लेकिन जापान की तर्ज़ पर बचने की प्रयास तो किया जा सकता है।
हमें और हमारी सरकार को देरी से
जागने की आदत है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान ( NIDM ) की तरफ़ से भूकम्प से बचाव के प्रस्ताव कई संस्थाओं को दी गयीं हैं लेकिन इस पर शायद ही कोई अमल हुआ होगा।
भूकंप से होने वाले नुकसान को टालने के लिए ” प्री डिजास्टर मैनेजमेंट ” काफी ज़रुरी है। हमारी ज़्यादातर इमारतें भूकम्प रोधी तकनीक से नहीं बनाए गए हैं।
इसलिए अगर भूकम्प आता है तो ईमारतें कमज़ोर या भूकम्प रोधी तकनीक नहीं लगने से गिरतीं हैं।
इसलिए पुराने मकानों को मज़बूत एवं नए मकानों को सुरक्षित करने के लिए सख़्त नियमों का होना आवश्यक है।
यह सच है कि भूकम्प इंसान की जान नही लेता बल्कि इमारतें लेती हैं।भवन निर्माता को नियमों का पालन ईमानदारी से करने की ज़रूरत है।
नगर निगम, नगर प्राधिकरण एवं दूसरी सरकारी एजेन्सीयों को ऐसे मौक़ों पर सुरक्षा से समझौता नहीं करना चाहिए।
अगर कोई भी समझौता करता है तो सेवानिवृत के बाद भी सज़ा का प्रावधान रखने की ज़रूरत है।
जिस प्रकार करोना वाएरस से लोगों को बचाने के लिए सरकार एवं सम्बंधित विभाग द्वारा प्रयास किए गए उसी प्रकार भूकम्प से बचने और बचाने के लिए लोगों को गम्भीरता से प्रयास करना चाहिए क्योंकि बचाव ही एकमात्र उपाय है।