अतुल्य लोकतंत्र के लिए वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद् ज्ञानेन्द्र रावत की कलम से…
देखा जाये तो वैसे हमारे देश में विभूतियों की कोई कमी नहीं है। पीठाधीश्वर शंकराचार्य भी हैं।अब तो देश में शंकराचार्यों की बहुत ही लम्बी श्रृंखला है। शंकराचार्य बनाने में बीते दशकों में कीर्तिमान स्थापित किया गया है। किसने यह कीर्तिमान बनाया है, यह जगजाहिर है। फिर साधु-संतों-स्वामियों की तादाद भी बहुत है। वह तो गिनती से भी ज्यादा है। बापू भी हैं और महाराज भी हैं। इनका आशीर्वाद पाने को बडे़-बडे़ राजनेता-उद्योगपति लालायित रहते हैं। नाच-गाकर और अपनी विशेष विधा से अपनी कुटिया में आशीर्वाद देने वाले आशाराम जैसे स्वयं घोषित संत भी हैं। ऐसे लोगों के चरण वंदन करने में एक दल विशेष के हमारे नेताओं ने रिकार्ड भी बनाये हैं। इस कटु सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता। फिर जहां तक राष्ट्र भक्त और शीर्ष नेताओं का सवाल है तो उस श्रेणी में आदरणीय श्री लालकृष्ण आडवाणी जी व डा.मुरली मनोहर जोशी जी सर्वोपरि हैं और वह दल में ही नहीं देश भर में सर्वग्राह्य भी हैं। सबसे बडी़ बात यह है कि वह देश की मौजूदा सरकार के मार्गदर्शक भी हैं। उनको गणतंत्र दिवस समारोह का मुख्य अतिथि बनाया जाना देश के लिए अभूतपूर्व और देश की जनता के लिए सरकार का स्वागत योग्य कदम होगा। यदि ऐसा हुआ तो ऐतिहासिक होगा और राष्ट्र के इतिहास में पहली बार होगा।इससे देश का भाल समूचे विश्व में ऊंचा उठेगा। अब सवाल यह है कि मुख्य अतिथि होगा कौन?किसी को भी देश के गणतंत्र दिवस समारोह का अतिथि बनाया जा सकता है। यह भविष्य के गर्भ में है। आखिरकार अब यह निर्णय तो मोदी जी को ही करना है कि वह किसको इस अवसर के लिए उचित और उपयुक्त समझते हैं और किसको उत्तम पात्र व किससे इस अवसर की गरिमा बरकरार रहती है। बहरहाल यह निश्चित है कि मोदी है तो देश में कुछ भी मुमकिन है।इसमें दो राय नहीं।
(लेखक ज्ञानेन्द्र रावत वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद् हैं)
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