New Delhi/Atulya Loktantra: दिल्ली में गणतंत्र दिवस के दिन किसानों के ( ट्रैक्टर तांडव) ने जहां पूरे देश को झकझोर दिया था वहीं इस घटना से पूरी दुनिया में हमारे देश की प्रतिष्ठा को धक्का भी लगा है , इसमें कोई दो राय नहीं और अतुल्य लोकतंत्र इस घटना की निन्दा करता है और इस कुकृत्य के लिए जो कोई भी जिम्मेदार है उसे इसकी सजा मिलनी चाहिए। देश में विचित्र स्थिति बनी हुई है एक ओर कांग्रेस राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने के फैसले पर अड़ी हुई है , जो उचित नहीं।
जहां पहले किसानों से सरकार की कई दौर की बात चली , किसानों के बिल को लेकर और दो महीने से भी अधिक समय से चल रहे इस किसान आंदोलन के आगे सरकार भी सकते में लग रही थी। लालकिले के प्रकरण से देश की प्रतिष्ठा को धक्का लगा है। दिल्ली में किसानों द्वारा किए गए उत्पात से पूरा एन सी आर सहम गया था।
28 जनवरी को हताश किसान नेता राकेश टिकैत के जज्बाती आंसुओं ने बुझी आग में घी का काम किया और उन्हें उनके इलाके के समर्थन के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह, जयंत चौधरी, कांग्रेस व अन्य राजनीतिक लोगों के समर्थन से उनके आंदोलन को बल मिलता दिख रहा है, गाजीपुर के आंदोलन स्थल से बिजली भी जोड़ दी गई, राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन में जान डाल दी। उन्होंने कहा कि आंदोलन पहले से भी ज्यादा मजबूत होगा।
वहीं 26 जनवरी को दिल्ली में हुए तांडव ने किसान आंदोलन की कमर सी तोड़ दी थी। किसान नेताओं के तेवर ढीले पड़ गए थे , कई किसान संगठनों ने आंदोलन से खुद को अलग कर दिया है । राकेश टिकैत के तेवर ढीले पड़ गए थे लेकिन मिल रहे समर्थन के बाद उनके तेवर फिर कड़े दिखाई दिए , यानी उनके व्यवहार में 26 जनवरी से अब तक कई तरह की तब्दीलियों को देखा गया। फिलहाल की स्थिति से यह लगता है कि यह आंदोलन राकेश टिकैत को देश में बड़े किसान नेता के रूप में भी स्थापित कर सकता है , इस आंदोलन का परिणाम उनके भविष्य के लिए टर्निंग पॉइंट होगा।
अब देखना यह है कि इस आंदोलन की दशा, दिशा किधर जाती है….
(पत्रकार दीपक शर्मा शक्ति पत्रकार होने के साथ साथ राजनीतिक विश्लेषक भी हैं )