केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि जम्मू कश्मीर में 30 सितंबर से पहले विधानसभा चुनाव हो जाएंगे। फिर इसके बाद सरकार के वादे के मुताबिक, केंद्र शासित प्रदेश को राज्य को दर्जा दे दिया जाएगा। गृहमंत्री ने यह बातें शनिवार को देर रात न्यूज एजेंसी PTI को दिए इंटरव्यू में कहीं।
शाह ने छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की समस्या से लेकर यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) तक बात की। उन्होंने कहा कि अगले 5 साल में देश में UCC लागू कर दिया जाएगा। देश में एकसाथ सभी चुनाव भी करवाए जाएंगे। इसके साथ ही शाह ने कहा कि देश में अगले 2-3 साल में नक्सलियों की समस्या पूरी तरह से खत्म हो जाएगी।
- जम्मू-कश्मीर को विधानसभा चुनाव के बाद राज्य का दर्जा मिल जाएगा
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर में सफल मतदान से मोदी सरकार की कश्मीर नीति सही साबित हुई है। इस चुनाव में अलगाववादियों ने भी भारी मतदान किया। शाह ने आश्वासन दिया कि वहां 30 सितंबर से पहले विधानसभा चुनाव होंगे।
शाह ने PTI को दिए इंटरव्यू में कहा कि मैंने संसद में कहा है कि हम विधानसभा चुनावों के बाद राज्य का दर्जा बहाल करेंगे। चुनाव खत्म होने के बाद सरकार केंद्र शासित प्रदेश का राज्य का दर्जा बहाल करने की प्रक्रिया शुरू करेगी।
शाह ने आगे कहा की जम्मू-कश्मीर में हमने परिसीमन की प्रक्रिया पूरी कर ली है, क्योंकि परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही आरक्षण दिया जा सकता है। हम सुप्रीम कोर्ट की समय सीमा से पहले विधानसभा चुनाव की प्रोसेस पूरी कर लेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2023 को निर्वाचन आयोग को 30 सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने का निर्देश दिया था।
- अगले 2-3 साल में नक्सल समस्या खत्म हो जाएगी
शाह ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के एक छोटे से क्षेत्र को छोड़कर पूरा देश अब नक्सल की समस्या से मुक्त हो गया है। छत्तीसगढ़ में 5 महीने पहले जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है, तभी से नक्सलियों से राज्य को मुक्त कराने का काम शुरू हो गया है। अगले 2-3 साल में यह समस्या देश से पूरी तरह से खत्म हो जाएगी।
एक समय कुछ लोग पशुपतिनाथ से तिरुपति तक नक्सल कॉरिडोर के बारे में कहा करते थे। अब झारखंड पूरी तरह से नक्सलियों से मुक्त है। बिहार पूरी तरह से मुक्त है। ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश भी पूरी तरह से मुक्त हैं। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश भी मुक्त हैं। पशुपतिनाथ से तिरुपति तक तथाकथित नक्सली गलियारे में माओवादियों की कोई मौजूदगी नहीं है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक, वामपंथी उग्रवाद की घटनाएं 2004-14 के दशक में 14,862 से घटकर 2014-23 के दशक में 7,128 रह गईं। वामपंथी उग्रवाद की वजह से सुरक्षा बलों के मौत की संख्या 2004-14 में 1750 से 72% घटकर 2014-23 के दौरान 485 हो गई। वहीं, नागरिकों के मौत की संख्या 4285 से 68% घटकर 1383 हो गई। 2010 में हिंसा वाले जिलों की संख्या 96 थी, जो 2022 में 53 प्रतिशत घटकर 45 हो जाएगी। इसके साथ ही, हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या 2010 में 465 से घटकर 2022 में 176 हो गई।