- अतुल्य लोकतंत्र के लिए वरिष्ठ स्तंभकार एवं पर्यावरणविद् प्रशांत सिन्हा की कलम से..
नए साल का आगमन हम सभी के लिए नई उम्मीदें और नई योजनाएं लेकर आता है। यह समय होता है जब हम अपने जीवन में नई दिशा और सुधार की दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प लेते हैं। इस नए साल में, आइए हम सभी मिलकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लें और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें। पर्यावरण संरक्षण का मतलब सिर्फ पेड़ लगाना या प्लास्टिक का उपयोग कम करना नहीं है। यह एक व्यापक अवधारणा है जिसमें जल, वायु, भूमि, और सभी प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण शामिल है। नए साल में हमें छोटे-छोटे कदम उठाकर इस दिशा में अपना योगदान देना चाहिए
पानी का संकट आज सबसे बड़ा है। लेकिन अगर हम दृढ़ संकल्प लेते हैं तो हम इससे पार पा सकते हैं। सरकार ने भी इस समस्या के प्रति अपनी गम्भीरता स्पष्ट कर दी है। ऐसे में अब बारी समाज की है। भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 140 लीटर है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक दिन में प्रति व्यक्ति को 200 लीटर पानी उपलब्ध होना चाहिए। देश के 85 – 90 प्रतिशत गांव भूजल से अपनी आपूर्ति करते हैं। पानी का संरक्षण व उसकी बचत दोनों स्तरों पर जल संकट के स्थाई समाधान हेतु जहां तालाबों का पुनर्जीवित होना आवश्यक है वहां अति आवश्यक है कि वर्षा के प्रत्येक बूंद का हम संचयन करें एवं अनुशासित हो कर जल के उपयोग के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए संकल्प लेने की आवश्यकता है।
वायु प्रदुषण खतरनाक स्तर पर पहुंच रहा है। खुली हवा में सांस लेने के लिए वायु प्रदुषण को रोकने के लिए हमें खुद इसके लिए जिम्मेदारी लेकर दूसरों को भी जागरुक करना होगा। बढ़ते वायु प्रदुषण के कारकों में बढ़ते वाहन, आवासीय क्षेत्र व नजदीक में चल रहे उद्योग धंधे, खुले में पड़ी भवन निर्माण सामग्री, मानक के विपरीत चल रहे ईंट भट्टे, खुले में जलाए जा रहे प्लास्टिक – पॉलीथीन व कूड़ा है। प्रदुषण को रोकने के लिए सरकारी विभागों के साथ मिलजुलकर काम करने का संकल्प लेना ज़रुरी है। वायु की खराब गुणवत्ता का रिश्ता दिल की बीमारी, फेफड़े का कैंसर, दमा और सांस रोगों से है।
पॉलीथीन और एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के अंधाधुंध प्रयोग तीव्रता से पर्यावरण को नष्ट कर रहा है। यह हमारी भूमि पर कब्जा कर लिया है। गांव, कस्बों, और शहरों की इस्तेमाल किए गए सामानों से पटी पड़ी हैं जो मिट्टी में नही घुलता है और धीरे धीरे पानी में चला जाता है और कुछ दिनों के बाद विभिन्न तरीकों से यह समुद्र में चला जाता है जिससे समुद्री जीव जंतुओं को नुकसान पहुंच रहा है। पक्षियों से लेकर मछलियों और अन्य समुद्री जीवों तक हर साल प्लास्टिक से लाखों जानवर मारे जाते हैं। ज्ञात है कि लुफ्त प्रायः प्रजातियां सहित और लगभग हर प्रजातियों सहित लगभग 700 प्रजातियां प्लास्टिक से प्रभावित है।
हमें इस नए साल में यह संकल्प लेना होगा कि एकल प्रयोग प्लास्टिक की इस्तेमाल न खुद करेगें और दूसरों को ऐसा करने से रोकेंगे।हमारे देश में पेड़ों की संख्या कम है। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि लोगों के पास पौधारोपण करने का समय नहीं है। जब प्रदूषण जी का जंजाल बना हुआ है और शुद्ध हवा के लिए लोग तरस रहे हैं तो हर एक व्यक्ति को चाहिए कि वे वृक्षारोपण को बढ़ावा दे ताकि भावी पीढ़ी को शुद्ध हवा नसीब हो सके। पेड़ों के तनों से कार्बन डायऑक्साइड सोखने की अदुभूत क्षमता है। हरियाली के अभाव मे यही कार्बन उत्सर्जन वायु मंडल में जाकर मौसम को गड़बड़ा रहा है।
हम संकल्प लें कि धरती की हरियाली को कम नहीं होने देंगे। घरेलू कचरे को सही तरीके से अलग करना और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है । कम से कम प्लास्टिक का उपयोग करना और जहां संभव हो सके बायोडिग्रेडेबल विकल्प चुनने की आवश्यकता है। अनावश्यक बिजली की खपत भी कम करने की आवश्यकता है । एलईडी बल्ब का उपयोग एवं उपकरणों को अनप्लग करना चाहिए जब उपयोग में न हों, और ऊर्जा बचाने वाले उपकरणों को उपयोग करना चाहिए।
इन सभी प्रयासों से हम पर्यावरण को बचाने में सक्षम होंगे और हमारी भावी पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और हरित भविष्य सुनिश्चित कर सकेंगे। आइए हम सभी मिलकर इस नए साल में यह संकल्प लें कि हम पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझेंगे और उसके संरक्षण के लिए कदम उठाएंगे। याद रखें, प्रत्येक व्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण है। आपके द्वारा उठाए गए छोटे-छोटे कदम भी पर्यावरण को बचाने में महत्वपूर्ण साबित होंगे।