सुप्रीम कोर्ट में बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी SIR (सामान्य शब्दों में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन) पर शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) को निर्देश दिया कि वह हटाए गए वोटर्स को लिस्ट में अपना नाम जुड़वाने के लिए फिजिकली के अलावा ऑनलाइन आवेदन की अनुमति भी दे।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि आधार कार्ड समेत फॉर्म 6 में दिए गए 11 दस्तावेज में से कोई भी जमा किया जा सकता है, इनमें ड्राइविंग लाइसेंस, पासबुक, पानी का बिल जैसे डॉक्यूमेंट शामिल हैं।
कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों को मामले पर चुप्पी साधने के लिए भी फटकार लगाई और पूछा कि मतदाताओं की मदद के लिए आप क्या कर रहे हैं। आपको आगे आना चाहिए। अगली सुनवाई 8 सितंबर को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने पार्टियों से पूछा- आप क्या कर रहे हैं
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग से कई सवाल पूछे। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा- राजनीतिक दलों की निष्क्रियता हैरान करने वाली है। राज्य की 12 पॉलिटिकल पार्टियों में से यहां मात्र 3 पार्टियां ही कोर्ट में आई हैं। वोटर्स की मदद के लिए आप क्या कर रहे हैं।
कोर्ट ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि राजनीतिक दलों के लगभग 1.6 लाख बूथ लेवल एजेंट होने के बावजूद, उनकी ओर से केवल दो आपत्तियां ही आई हैं।
आधार कार्ड मानना होगा: SC
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बड़ा आदेश देते हुए वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की अनुमति दी है। फॉर्म को फिजिकली जमा करना जरूरी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि फॉर्म 6 में दिए गए 11 दस्तावेज़((जैसे ड्राइविंग लाइसेंस, पासबुक, पानी का बिल आदि) में से कोई भी या आधार कार्ड जमा किया जा सकता है। कोर्ट ने आधार कार्ड को भी स्वीकार करने का आदेश दिया है।
SIR की समयसीमा बढ़ाने की मांग
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने दलील दी, ‘यह मुद्दा प्रासंगिक नहीं है। सभी को चुनाव आयोग पर भरोसा रखना चाहिए। हमें कुछ समय दीजिए, हम बेहतर तस्वीर सामने रखेंगे और साबित करेंगे कि किसी को भी बाहर नहीं किया गया है।’
अधिवक्ता ग्रोवर ने इसका विरोध करते हुए कहा, ‘इस पूरी प्रक्रिया को लेकर ज़मीन पर भ्रम फैला हुआ है। आयोग को इस पर प्रेस रिलीज़ जारी करनी चाहिए और समयसीमा बढ़ानी चाहिए ताकि निष्पक्षता बनी रहे।’
भूषण ने सवाल उठाया, ‘7.24 करोड़ मतदाताओं का क्या होगा? 12% को BLOs ने ‘नॉट रिकमेंडेड’ कहा है। रोज़ाना 36 हज़ार फॉर्म की जांच करनी होगी, यह संभव नहीं है। ऐसे में कोई उपाय नहीं बचेगा।’

