सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु में शराब दुकान के लाइसेंस से जुड़े तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (TASMAC) घोटाला केस में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की छापेमारी पर सवाल उठाए। कोर्ट ने ED से सवाल किया कि क्या आप राज्य पुलिस की शक्तियों में दखल नहीं दे रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने पूछा कि क्या राज्य पुलिस इस घोटाले की जांच नहीं कर सकती है, क्या ED का दखल जरूरी है? इससे संघीय ढांचे पर क्या असर होगा?
दरअसल, ED ने मार्च में TASMAC के चेन्नई स्थित मुख्यालय पर ₹1,000 करोड़ के घोटाले मामले में छापेमारी की थी। इसमें शराब की बोतलों की कीमत बढ़ाना, टेंडर में हेराफेरी और रिश्वतखोरी शामिल है। इस दौरान अधिकारियों ने कंप्यूटर और अन्य सामान जब्त किए थे।
इसके बाद राज्य सरकार और TASMAC ने दावा किया था कि छापे अवैध हैं और ED ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है। इसके बाद मामला मद्रास हाइकोर्ट पहुंचा, जहां हाइकोर्ट ने ED को जांच जारी रखने की इजाजत दी थी।
एएसजी राजू- मीडिया आमतौर पर केंद्रीय एजेंसी के पक्ष में रिपोर्ट नहीं करता है। यही मेरी शिकायत है। इस मामले में 47 एफआईआर दर्ज की गई हैं और TASMAC में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं मिली हैं। यह सिर्फ कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि बड़े स्तर का फाइनेंशियल क्राइम है। हमने किसी को धमकाया नहीं, न ही किसी कार्यालय में तोड़फोड़ की। सब कुछ नियमों के तहत हुआ है। राज्य सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों को बचाने की कोशिश कर रही है।
कपिल सिब्बल- एक सरकारी कंपनी पर छापा कैसे मारा जा सकता है, जबकि TASMAC ने ही इस मामले में कार्रवाई का आदेश दिया था। ज्यादातर FIR पहले ही बंद हो चुकी हैं और ED को राज्य पुलिस से जानकारी शेयर करनी चाहिए। धनशोधन अधिनियम (PMLA) के मुताबिक, ईडी को राज्य पुलिस के साथ जानकारी साझा करनी चाहिए लेकिन ज्यादातर FIR तो बंद हो चुकी हैं।

