सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह नौ महीने की गर्भवती सुनाली खातून और उसके 8 साल के बच्चे को बांग्लादेश से वापस लाए। अदालत ने कहा कि कानून को कभी-कभी इंसानियत के आगे झुकना होता है।
यह फैसला उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें बांग्लादेश डिपोर्ट किए गए परिवार को वापस भारत लाने की मांग की गई थी। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी।
दरअसल सुनाली खातून और परिवार के 5 लोगों को बांग्लादेशी होने का शक में जून में दिल्ली से हिरासत में लिया गया था। इसके बाद 27 जून को उन्हें सीमा पार बांग्लादेश भेज दिया गया था। कोर्ट इस मामले में आगे की कार्यवाही 10 दिसंबर को करेगा, जिसमें परिवार के अन्य सदस्यों की वापसी पर सुनवाई होगी।
सुनाली खातून, उनके बेटे और परिवार के अन्य सदस्यों को दिल्ली पुलिस ने 18 जून 2025 को रोहिणी इलाके से हिरासत में लिया था। पुलिस को उनके बांग्लादेशी होने का शक था। इसके बाद 27 जून को उन्हें सीमा पार बांग्लादेश भेज दिया गया। जहां बांग्लादेश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
सुनाली के पिता भोदू शेख ने दावा किया कि परिवार पिछले 20 साल से पश्चिम बंगाल और दिल्ली में रह रहा है और सभी भारतीय नागरिक हैं। इसी आधार पर उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट में हेबियस कॉर्पस याचिका दायर की।
हाईकोर्ट ने केंद्र को परिवार को भारत वापस लाने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने 1 दिसंबर को केंद्र से पूछा था कि क्या सुनाली और उनके 8 साल के बेटे को मानवीय आधार पर वापस लाया जा सकता है। इस पर आज केंद्र ने जवाब दिया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि महिला और उसके बेटे को सरकारी प्रक्रिया से बांग्लादेश भेजा गया था, इसलिए सरकार का रुख लिखित में रिकॉर्ड करना जरूरी है, ताकि तुरंत कूटनीतिक काम शुरू हो सके। इस पर कोर्ट ने इसे अपने आदेश में शामिल कर लिया।
टीएमसी ने इसे गरीब परिवार के लिए बड़ी जीत बताया और सभी समर्थकों का धन्यवाद किया। टीएमसी नेता समीरुल इस्लाम ने कहा कि सुनाली को कुछ महीने पहले सिर्फ इसलिए बांग्लादेश भेज दिया गया था क्योंकि वह बंगाली बोलती थी। यह दिखाता है कि गलत पहचान की वजह से एक गरीब महिला को कितना बड़ा नुकसान और परेशानी झेलनी पड़ी।

