New Delhi/Atulya Loktantra : भाद्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ऋषि तर्पण से आरंभ होकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृ पक्ष होता है। इस दौरान पितरों की पूजा की जाती है और उनके नाम से तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। इस बार शनिवार के दिन पितृ पक्ष समाप्त हो रहा है। शनि और सर्वपितृ अमावस्या के संयोग से 28 सितंबर को शनि अमावस्या है। इस बार िपितर शनि अमावस्या के दिन विदा हो रहे हैं। इससे पहले 1999 में इस तरह का संयोग बना था। इस संयोग में पितरों की विदाई उनके वंशजों के लिए सौभाग्यशाली मानी जाती है।
दोपहर को करें श्राद्ध
श्राद्ध का नियम है कि दोपहर के समय पितरों के नाम से श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। शास्त्रों में सुबह और शाम का समय देव कार्य के लिए बताया गया है। लेकिन दोपहर का समय पितरों के लिए माना गया है। इसलिए कहते हैं कि दोपहर में भगवान की पूजा नहीं करनी चाहिए। दिन का मध्य पितरों का समय होता है।
यम की दिशा है दक्षिण
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिण दिशा में चंद्रमा के ऊपर की कक्षा में पितृलोक की स्थिति है। इस दिशा को यम की भी दिशा माना गया है। इसलिए दक्षिण दिशा में पितरों का अनुष्ठान किया जाता है। रामायण में उल्लेख है कि जब दशरथ की मृत्यु हुई थी, तो भगवान राम ने स्वप्न में उन्हें दक्षिण दिशा की तरफ जाते हुए देखा था।
ऐसे बनाएं पिंड
सनातन धर्म के अनुसार, किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है। शरीर को भी पिंड माना जा सकता है। धरती को भी एक पिंड रूप माना गया है। हिंदू धर्म में निराकार की पूजा की बजाय साकार स्वरूप की पूजा को महत्व दिया गया है, क्योंकि इससे साधना करना आसान होता है। इसीलिए पितरों को भी पिंड रूप यानी पंच तत्वों में व्याप्त मानकर पिंडदान किया जाता है। पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए चावल को पकाकर उसके ऊपर तिल, शहद, घी, दूध को मिलाकर एक गोला बनाया जाता है, जिसे पाक पिंडदान कहते हैं। दूसरा जौ के आटे का पिंड बनाकर दान किया जाता है। पिंड का संबंध चंद्रमा से माना जाता है। पिंड चंद्रमा के माध्यम से पितरों को प्राप्त होता है।
सफेद फूल से करें पितरों की पूजा
पितरों की पूजा में सफेद फूल का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि सफेद रंग सात्विकता का प्रतीक है। मान्यता है कि आत्मा का कोई रंग नहीं होता, जीवन के उस पार की दुनिया पारदर्शी है। इसके अलावा सफेद रंग चंद्रमा से संबंध रखता है, जो पितरों तक उनका अंश पहुंचाते हैं। साथ ही शाम के समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके घर के बाहर किसी खुले स्थान में या छत पर एक दीप जलाकर पितरों को नमस्कार करें।
यह कर सकते हैं दान
काला तिल, उड़द, गुड़, नमक, छाता, जूता, वस्त्र, जौ इनमें से जो भी आपके लिए सुलभ हो, पितरों को याद करके किसी जरूरतमंद को दान कर देना चाहिए। इन चीजों से पितरों को सुख मिलता है।
सर्वपितृ अमावस्या कल
आरंभ: 28 सितंबर 2019 को सुबह 3.46 बजे से
समाप्त: 28 सितंबर 2019 को रात 11.56 बजे तक
कुतुप मुहूर्त: सुबह 11.48 बजे से दोपहर 12.35 बजे तक
रोहिण मुहूर्त: दोपहर 12.35 बजे से 1.23 बजे तक
अपराह्न काल: दोपहर 1.23 बजे से 3.45 बजे तक