सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाया है। यूपी में विधानसभा सत्र शुरू होने के ठीक 19 घंटे पहले अखिलेश ने सबको चौंका दिया। अखिलेश ने पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के बाद अब ब्राह्मण कार्ड चला है।
81 साल के माता प्रसाद पांडेय विधानसभा में सत्ता पक्ष का मुकाबला करेंगे। वह सिद्धार्थनगर की इटवा सीट से विधायक हैं। 7 बार विधायक रह चुके हैं। दो बार विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं। अखिलेश के कन्नौज से सांसद चुने जाने के बाद से विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली था।
वहीं, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा- सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पिछड़ों-दलितों को धोखा दिया है। सपा के PDA का मतलब बहुत बड़ा धोखा है। भाजपा 2027 में 2017 की विजय दोहराएगी।
अखिलेश ने अमरोहा सीट से विधायक महबूब अली को अधिष्ठाता मंडल, मुरादाबाद की कांठ सीट से विधायक कमाल अख्तर को मुख्य सचेतक और प्रतापगढ़ से विधायक राकेश कुमार उर्फ आरके वर्मा को विधानसभा का उप-सचेतक बनाया है।
माता प्रसाद को क्यों बनाया गया नेता प्रतिपक्ष
माता प्रसाद सपा के सबसे सीनियर लीडर हैं। शिवपाल के नाम पर अखिलेश सहमत नहीं थे। ऐसे में माता प्रसाद वह नाम है, जिनका पार्टी के कैडर में कोई विरोध नहीं है।
माता प्रसाद 7 बार विधायक रह चुके हैं। मुलायम और अखिलेश सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं। ऐसे में वह सीएम योगी और भाजपा के 255 विधायकों का मुकाबला कर सकते हैं।
शिवपाल खुद नेता प्रतिपक्ष बनना चाहते थे। ऐसे में किसी और नेता को बनाया जाता तो वह शिवपाल के कद के आगे कमजोर पड़ सकता था। माता प्रसाद शिवपाल के भी करीबी रहे हैं।
अखिलेश लगातार पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की राजनीति कर रहे हैं। ऐसे में माता प्रसाद पांडेय के माध्यम से वह अगड़ी जाति के वोट बैंक पर भी सेंध लगाना चाहते हैं।
माता प्रसाद बोले- मैं तो मीटिंग के बाद घर चला गया था, वहीं पता चला
नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद माता प्रसाद पांडेय ने बताया- साथियों से बात करके विधानसभा की रूपरेखा तय की जाएगी। अचानक से उनका नाम सामने क्यों आया? इस सवाल पर उन्होंने कहा- आज हम अखिलेश ने मिले थे। उन्होंने हमारी राय पूछी थी। हमने कहा, जो जिम्मेदारी तय करेंगे वह निभाएंगे। इसके बाद हम घर चले गए। बाद में उन्होंने बताया कि आपको नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है।
बता दें, रायबरेली के ऊंचाहार से विधायक मनोज पांडेय के बगावत करने के बाद सपा के बाद कोई बड़ा ब्राह्मण चेहरा नहीं था। ऐसे में अखिलेश ने माता प्रसाद पांडेय को अहम पद देकर सपा को मुस्लिम-यादव से आगे ले जाने की कोशिश की है।
कई राउंड की मीटिंग के बाद लगी मुहर
अखिलेश यादव ने रविवार को विधायक दल की बैठक बुलाई। इसमें नेता प्रतिपक्ष का नाम तय होना था। अखिलेश सुबह 11 बजे बैठक में पहुंचे। विधायकों ने सपा प्रमुख को नेता प्रतिपक्ष पर अंतिम फैसला लेने को कहा। हालांकि, ज्यादातर विधायक शिवपाल के नाम पर सहमत थे, लेकिन परिवार के आरोपों के चलते अखिलेश चाचा को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाना चाहते थे।
इसके बाद दो नाम सामने आए। इंद्रजीत सरोज और तूफानी सरोज। इंद्रजीत सरोज के नाम पर इसलिए सहमति नहीं बन पाई क्योंकि वह 2018 में ही बसपा छोड़कर सपा में आए थे। सपा के सीनियर लीडर उनके नाम पर सहमत नहीं हुए। उनका कहना था कि इंद्रजीत बसपा से आए हैं, इसलिए पार्टी कार्यकर्ताओं में गलत मैसेज जाएगा।
वहीं, तूफानी सरोज को लेकर यह बात सामने आई कि वह विधानसभा में सत्ता पक्ष का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। वजह यह कि तूफानी सरोज शांत स्वभाव के नेता माने जाते हैं। लाइमलाइट में नहीं रहते।
पहली मीटिंग के बाद शिवपाल यादव सपा मुख्यालय से चले गए
अखिलेश ने पहले सपा के सीनियर नेताओं के साथ मीटिंग की, लेकिन नाम नहीं तय हो पाया। शिवपाल यादव भी सपा मुख्यालय से चले गए। इसके बाद अखिलेश ने चुनिंदा नेताओं के साथ फिर बैठक की। उसमें माता प्रसाद का नाम पर मुहर लगी।
पार्टी नेताओं ने बताया- माता प्रसाद सीनियर लीडर हैं। वह लंबे वक्त से सपा के साथ हैं। ऐसे में पार्टी कैडर में उनका विरोध नहीं होगा। खासकर शिवपाल यादव भी विरोध नहीं करेंगे। दूसरी अहम बात यह कि माता प्रसाद पांडेय दो बार विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उन्हें विधानसभा चलाने का लंबा अनुभव है। हालांकि उनकी उम्र 81 साल है। ऐसे में वह सत्ता पक्ष का मुकाबला कैसे कर पाएंगे, यह देखना होगा।

