शिमला। चीन के साथ तिब्बत की निर्वासित जल्द ही बातचीत करने की तैयारी में है ताकि तिब्बती अंदोलन को सही दिशा मिल सके। इस बारे में चल रही तैयारियों को लेकर निर्वासित सरकार के नये चुने गये प्रधानमंत्री पेंपा सेरिंग ने जानकारी दी है व कहा कि चीन को वार्ता के लिये अपने दरवाजे खोलने चाहिये। दरअसल पिछले कुछ सालों से बातचीत बीच अधर में ही छोड दी गई थी। दोनों पक्ष पीछे हट गये थे लेकिन अब तिब्बत की निर्वासित सरकार का रवैया बदलने लगा है। निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री पेंपा सेंरिग ने कहा कि बातचीत तभी शुरू हो पायेगी जब चीन दलाई लामा को तिब्बत जाने की इजाजत दे दे। उन्होंने कहा कि दलाई लामा अपनी जन्म भूमि और तिब्बत की राजधानी ल्हासा जाना चाहते हें। यदि ये संभव हो जाता है तो मुमकिन है कि इससे चीन से बातचीत का मार्ग भी खुल जाए।
उन्होंने इसको लेकर विश्वास जताया है कि इससे राहें कुछ आसान हो सकती है और चीन-तिब्बत के बीच कड़वाहट को कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि फिलहाल उनके पास चीन से बातचीत शुरू करने का कोई अधिकारिक चैनल नहीं है। उनके मुताबिक 2002-2010 के बीच चीन और तिब्बत की निर्वासित सरकार के बीच आठ दौर की बातचीत हुई थी। लेकिन फिलहाल बातचीत के लिये कोई आधिकारिक चैनल नहीं है। बातचीत का रास्ता केवल अनाधिकारिक तौर पर ही है। इसलिए देखते हैं कि आगे क्या होता है। उन्होंने कहा कि हम क्या सोच रहे हैं और हम अपनी इच्छा को किस तरह से आगे बढ़ा रहे हैं। इस बारे चीन को अवगत करा दिया गया है लिहाजा अब चीन को भी अब इस बारे में अपनी सोच को साफ कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि चीन को ही वार्ता के बारे में निर्णय लेना है।
पेंपा सेरिंग ने कहा कि क्या वो तिब्बत विवाद को सुलझाना चाहते हैं या फिर नहीं। या फिर वो ये चाहते हैं कि दलाई लामा इसी तरह से निर्वासित रहते हुए अपने प्राण त्याग दें और चीन तिब्बत पर पूरी तरह से कब्जा जमा ले। उन्होंने कहा कि चीन को उनके बयान पर गंभीरता से विचार लेना चाहिए और फैसला लेना चाहिए। 1959 में चीन के ख़लिफ़ हुए एक नाकाम विद्रोह के बाद 14वें दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी। जहां उन्होंने निर्वासित सरकार का गठन किया ।साठ और सत्तर के दशक में चीन की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान तिब्बत के ज़्यादातर बौद्ध विहारों को नष्ट कर दिया गया। माना जाता है कि दमन और सैनिक शासन के दौरान हज़ारों तिब्बतियों की जाने गई थीं। चीन और तिब्बत के बीच विवाद, तिब्बत की क़ानूनी स्थिति को लेकर है। चीन कहता है कि तिब्बत तेरहवीं शताब्दी के मध्य से चीन का हिस्सा रहा है लेकिन तिब्बतियों का कहना है कि तिब्बत कई शताब्दियों तक एक स्वतन्त्र राज्य था और चीन का उसपर निरंतर अधिकार नहीं रहा। मंगोल राजा कुबलई ख़ान ने युआन राजवंश की स्थापना की थी और तिब्बत ही नहीं बल्कि चीन, वियतनाम और कोरिया तक अपने राज्य का विस्तार किया था।