विश्व प्रदुषण निवारण दिवस एवं राष्ट्रीय प्रदुषण नियन्त्रण दिवस हर वर्ष 2 दिसंबर को मनाया जाता है। यह हमारे पर्यावरण के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए प्रदुषण और प्रदुषण की समस्या के प्रति जागरूकता फैलाना एक अवसर है।
यह विशेष आयोजन 1989 में पर्यावरण में खतरनाक पदार्थों के उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों और रणनीतियों को उजागर करने के प्रयास के रूप में शुरू हुआ था। भारत में
2 और 3 दिसंबर 1984 को भोपाल गैस त्रासदी में जान गंवाने वालों की याद में राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है। इसे तेल, गैस और कोयला खनन से लेकर परिवहन, रसायनिक विनिर्माण , कृषि तक कई उद्योगों द्वारा उत्पन्न प्रदुषण के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए बनाया गया था। यह दिवस प्रदुषण के खिलाफ सीखने और कारवाई करने का एक विशेष अवसर है। यह हमें सरल परिर्वतन करने की याद दिलाता है जो हमारे पर्यावरण की रक्षा करते हैं और बदलाव आते हैं। प्रदुषण हमारे पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती है और इसका समाधान सामुदायिक सहभागिता के साथ साथ सरकारी सशक्त नीतियों से ही हो सकता है। प्रदुषण के समाधान के लिए सरकारों को नीतियों में सुधार करने की ज़रूरत है। यही नहीं पर्यावरण के लिए नई नीतियों की आवश्यकता है जो प्रदुषण को प्रभावी रुप से नियंत्रित कर सकें और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा दे सकें। हमें नीतियों को अद्धतित करने की आवश्यकता है ताकि वे वर्तमान समय के अनुकूल हों और नई चुनौतियों का सामना कर सकें। नई तकनीकों का समर्थन करने वालो नीतियां बननी चाहिए जो प्रदुषण को कम करने में सहायक हो सकती है। नीतियों में सुधार का मतलब यह नहीं है कि हमें विकास से मुकाबले में कमी करनी चाहिए बल्कि हमें बेहतर और स्वस्थ विकास के लिए स्थाई समाधान ढूंढना चाहिए। हमें सुनिश्चित करना होगा कि ये सुधार वास्तव में परिणामी हों।
पिछले कुछ दशकों में हुए आर्थिक विकास से देश लाभान्वित तो हुआ है पर हमने इसकी कीमत पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर चुकाई है। विश्व बैंक की रिर्पोट के मुताबिक पर्यावरण नुकसान के चलते हर साल भारतीय अर्थव्यवस्था को 80 अरब डॉलर से ज्यादा की चपत लगती है। ऐसे में टिकाऊ विकास का लक्ष्य ऐसी तकनीकों के बदौलत ही हासिल हो सकेगा जो विकास के साथ पर्यावरण भी सहेजे। टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने के लिए देश को अपने प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ोतरी पर ध्यान देना होगा। साथ ही सभी तरह की पारिस्थितिकी को बचाना होगा। विकास को मापने के पारंपरिक तरीकों से काम नहीं चलेगा। पर्यावरणीय विकास के लिए ग्रीन ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानि ग्रीन जीडीपी इंडेक्स विकसित किया जाना चाहिए।
प्रदुषण का समाधान केवल सरकारी कदमों द्वारा ही संभव नहीं है। इसमें समुदाय के सहभागिता और जागरूकता का महत्वपूर्ण योगदान है। समुदाय केंद्रित दृष्टिकोण के प्रति जागरूक कर सकते हैं और इन्हें इस समस्या का समाधान में सहायक बना सकते हैं। पहले हमें अपने समुदाय के बीच जागरूकता फैलाने के लिए शिक्षा अभियानों का आयोजन करना चाहिए।
यह शिक्षा अभियान लोगों को प्रदुषण के हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षित करेगा और उनके कार्यों के प्रभाव को समझने के लिए प्रेरित करेगा। हमें समुदाय में प्रदुषण नियंत्रण के लिए सामुदायिक परियोजनाओं का समर्थन करना चाहिए। हम ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं जब धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं से दुनिया हलकान है और भावी पीढ़ी को बेहतर भविष्य देने के लिए समाज के सभी वर्गों को आगे आना चाहिए। सरकार ने पर्यावरण को बचाने के लिए जो भी नियम कानून बना रखे हैं इसे विकास की अंधी दौड़ उन्हें हमेशा ठेंगा दिखाती रही है। ऐसे में निजी स्तर पर लोगों को ग्रीन इकोनॉमी यानि हरित अर्थव्यवस्था को अपनाना होगा। समुदाय केन्द्रित दृष्टिकोण से हम न सिर्फ़ जागरूकता बढ़ा सकते है बल्कि इस समस्या के समाधान में भी सहायक हो सकते हैं। हमें इस मुहिम में एक जुट होकर प्रदुषण को कम करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि हम एक स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण की दिशा में बढ़ सकें।