रक्षा मंत्रालय की ओर से इस प्रोजेक्ट को लेकर खास गुजारिश की गई थी। अब उस पर सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की मुहर लग गई है। उल्लेखनीय है, कि यह हाईवे रक्षा क्षेत्र से जुड़े हैं। और सबसे अहम, राजमार्ग के जरिए भारतीय सेना (Indian Army) को चीनी सीमा (china border) तक पहुंचने में भी सेना को आसानी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान एक समिति भी बनाई है। इसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एस.के. सीकरी करेंगे। कोर्ट ने कहा है, कि इस परियोजना में पर्यावरण के हितों को ध्यान में रखकर ही काम किया जाए। समिति इसका पूरा ध्यान रखेगी।
भारत के लिए क्या है परियोजना का महत्त्व?
बता दें, कि चारधाम परियोजना को केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी परियोजना माना जाता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने ‘ऑल वेदर राजमार्ग परियोजना’ में सड़क की चौड़ाई बढ़ाने और डबल लेन हाइवे बनाने के लिए केंद्र सरकार को आज हरी झंडी दे दी है। अनुमति मिलने के बाद चारधाम परियोजना पर अब काम तेजी से शुरू हो जाएगा। उल्लेखनीय है, कि इस राजमार्ग के जरिए भारत की पहुंच चीन सीमा तक हो जाएगी। मतलब इसका सामरिक महत्त्व है। किसी भी मौसम में भारतीय सेना चीन से सटी सीमाओं पर पहुंच सकेगी।रक्षा मंत्रालय की दुर्भावना नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा, कि राजमार्ग के निर्माण के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने में रक्षा मंत्रालय की कोई दुर्भावना नजर नहीं आ रही। साथ ही कहा, कि हाल के दिनों में भारतीय सीमा पर सुरक्षा के लिए कई गंभीर चुनौतियां सामने आई हैं। अदालत सशस्त्र बलों की ढांचागत जरूरतों का अनुमान नहीं लगा सकती है।
जानें क्या है मामला?
इस मामले में रक्षा मंत्रालय का कहना था, कि इस सड़क निर्माण से भारतीय सेना को सीमा तक टैंक सहित हथियारों के साथ पहुंचने में आसानी होगी। साथ ही, पर्वतीय क्षेत्रों से देश के बाकी हिस्से जुड़ सकेंगे। लेकिन विवाद तब गहराया जब एक एनजीओ (NGO) ने सड़क को 10 मीटर तक चौड़ा डबल लेन बनाने को चुनौती दी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने देश की रक्षा जरूरतों के आधार पर सरकार की अधिसूचना को जायज ठहराया। लेकिन, पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं के मद्देनजर एक कमिटी बनाई है, जो सीधे सर्वोच्च न्यायालय को रिपोर्ट सौंपेगी। यह कमिटी हर चार महीने में परियोजना की प्रगति पर सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट देगी।
लागत करीब 12,000 करोड़ रुपए
केंद्र सरकार की ओर से चारधाम परियोजना का उद्देश्य गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करना है। बता दें, कि 900 किलोमीटर लंबी इस परियोजना की लागत करीब 12,000 करोड़ रुपए अनुमानित है। केंद्र सरकार ने अपनी याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है, कि भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा की ओर से जाने वाली सीमा सड़कों के लिए यह फीडर सड़कें हैं।