Faridabad/Atulya Loktantra: अक्षय तृतीया साढे तीन शुभ मुहूर्त की तिथियों में से एक तिथि है। यह वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है। इस वर्ष अक्षय तृतीया 26 मई को है। अक्षय तृतीया, त्रेता युग का प्रथम दिन/ आरंभ दिन है । इस दिन की संपूर्ण अवधि शुभ मुहूर्त ही होती है इसलिए इस तिथि पर धार्मिक कार्य करने के लिए मुहूर्त नहीं देखना पड़ता।
इस तिथि पर हयग्रीव अवतार हुआ, नर नारायण का प्रकटीकरण हुआ तथा परशुराम अवतार भी इसी दिन हुआ था। इसके अतिरिक्त इस तिथि का महत्व यह है कि श्री ब्रह्मा एवं श्री विष्णु की तरंगे देवता लोकों से पृथ्वी पर आती हैं। इससे पृथ्वी पर सात्विकता की मात्रा 10% बढ़ जाती है । इस महत्व के कारण इस तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान करना, दान देना इत्यादि धर्म कार्य करने से अधिक लाभ होता है। देवता और पितरों के निमित्त/लिए इस दिन जो कर्म किए जाते हैं वे अविनाशी होते हैं ।
अक्षय तृतीया पर करने योग्य धार्मिक कार्य
पवित्र जल में, तीर्थ क्षेत्र में स्नान करना चाहिए। यदि ऐसा संभव ना हो तो बहते जल की नदी में कहीं भी स्नान करें । इस दिन श्री विष्णु पूजा जप, होम करने से, निरंतर सुख समृद्धि प्रदान करने वाले देवता की कृतज्ञता भाव से पूजा करने और उन्हें प्रार्थना करने से हम पर उनकी कृपा दृष्टि सदा बनी रहती है। इसलिए श्री विष्णु सहित वैभव लक्ष्मी की प्रतिमा का श्रद्धा पूर्वक और कृतज्ञता भाव से पूजन करना चाहिए। इस दिन हवन और जप-तप में अपना समय बिताना चाहिए। अक्षय तृतीया के दिन श्रीविष्णु का तत्त्व आकर्षित एवं प्रसारित करने वाली सात्विक रंगोलियां बनाना।
तिलतर्पण
अक्षय तृतीया के दिन तिल तर्पण का विशेष महत्व है। तर्पण का अर्थ है देवता और पूर्वजों को तिल मिश्रित जल अर्पण करना। तिल सात्विकता का प्रतीक है, तो जल ब्रह्मांड के शुद्ध स्रोत का प्रतीक है।
सुपात्र व्यक्ति को क्यों दान करना चाहिए ?
अक्षय तृतीया पर दान का विशेष रूप से महत्व है। इस दिन सुपात्र को दान करना चाहिए । अक्षय तृतीया पर किया हुआ दान और हवन अक्षय रहता है अर्थात उनका फल अवश्य मिलता है। ऐसे में यह प्रश्न आ सकता है कि दान सुपात्र व्यक्ति को ही क्यों करना चाहिए? अक्षय तृतीया पर किए दान से व्यक्ति का पुण्य भंडार बढ़ता है। पुण्य से व्यक्ति को स्वर्ग प्राप्त होता है और सुख भोग कर, सर्व सुख समाप्त होने पर, पृथ्वी पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। परंतु मनुष्य जीवन का वास्तविक उद्देश्य पुण्य कमाना अथवा सुख भोगना नहीं। पाप और पुण्य से आगे जाकर ईश्वर की प्राप्ति करना मनुष्य जीवन का वास्तविक ध्येय है। इसलिए मनुष्य के लिए सुपात्र व्यक्ति को दान करना आवश्यक होता है जिससे कि दान उसकी आध्यात्मिक उन्नति का कारण बने।
अक्षय तृतीया के मुहूर्त पर बीज बोए जाते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि स्वयं में एक शुभ मुहूर्त है। इस दिन से खेत जोतना और उसकी निराई का कार्य अक्षय तृतीया तक पूरा कर लेना चाहिए। निराई के पश्चात अक्षय तृतीया के दिन खेत की मिट्टी की कृतज्ञता भाव से पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात पूजा की गई मिट्टी को जैविक बनाकर उसमें बीज बोना चाहिए। अक्षय तृतीया के मुहूर्त पर बीज बोना आरंभ करने से उस दिन वातावरण में सक्रिय दैवी शक्ति बीज में आ जाती है। इससे कृषि उपज बहुत अच्छी होती है और इस प्रकार से अक्षय तृतीया के दिन फल के वृक्ष लगाने पर वह अधिक फल देते हैं।
हल्दी -कुमकुम
स्त्रियों के लिए अक्षय तृतीया का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। चैत्र मास में स्थापित चैत्र गौरी का इस दिन विसर्जन होता है।