रचना शर्मा •
शिक्षा में नवाचार अर्थात् नवीन व्यवहार, नवीन विधियों एवं रीतियों को शिक्षा में उतारना,जिससे शिक्षा में गुणात्मक वृद्धि की जा सके। वर्तमान समय में शिक्षा पूर्णतःनिःशुल्क,बाल-केन्द्रित हो गई है । विद्यालय को सभी तरह की भौतिक सुविधायें भी मुहैया करायी जा रही हैं जैसे- खाद्यान्न,दूध,स्कूल-ड्रेस,विद्युत-पेयजल-स्वास्थ्य सेवायें,पाठ्यपुस्तक,खेल-सामग्री आदि।इनसे विद्यालय में संख्यातमक वृद्धि बेशक हुई है किंतु क्या इनसे गुणवत्तापरक् शिक्षा में इजाफा हो पाया ? ये अब भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है ।
शिक्षा में नवाचार का क्षेत्र बहुत अहम हो जाता है।
यशपाल समिति की सिफारिश में शिक्षकों के द्वारा सुझाए नवाचारों को प्राथमिकता देने,पाठ्यक्रम निर्माण में शिक्षकों को ज्यादा अवसर देने पर जोर दिया गया ताकि बस्ते के बोझ को कम किया जा सके , जो एक अच्छी पहल भी है। बाल-केन्द्रित शिक्षण के लिए यह जरूरी भी है कि शिक्षक की कल्पना,स्वतंत्रता,स्वायत्तता को उचित स्थान,सम्मान,प्रोत्साहन दिया जाए।
शिक्षक जीते-जागते अनुभवों को नवाचार ( नवीन व्यवहार ) के माध्यम से वास्तविक रूप में उकेर कर बाल-सुलभ रूप में परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं।
मोंटेसरी की खेल-पद्धति हो या फ्रोबेल की गीत-शैली , ये ऐसे ही नवाचार हैं जिन्होंने विद्यालयों को पुस्तकों-पाठ्यक्रम की जटिलता से मुक्त कर उसे बाल-केन्द्रित रूप दिया। इसी कड़ी में कुछ नवाचार इस तरह से समझे जा सकते हैं:-
बच्चों की अपनी बाल संसद बच्चों को अहं से सामुदायिक सहभागिता की भावना की ओर ले जाती है।विद्यालय में सुव्यवस्थित प्रबंधन व नेतृत्व क्षमता का विकास,दायित्व-बोध,लोकतंत्र के प्रति निष्ठा, अनुशासित वातावरण,व्यक्तिगत कौशल का संवर्धन,शैक्षिक-सह शैक्षिक गतिविधियों का क्रियान्वयन,आत्मविश्वास में व्रद्वि, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का जन्म,श्रमदान,स्वास्थ्य,पर्यावरण आदि के प्रति जागरूकता जैसे गुण इस नवाचार द्वारा संभव हैं।
बाल-अखबार से बच्चों में सृजनात्मकता अभिव्यक्ति की क्षमता विकास,कला-संस्कृति-साहित्य,समाज,राज्य दुनिया के प्रति जानकारी व अभिरुचि उत्पन्न ,भाषा-पठन-लेखन का कौशल विकसित एवं प्रभावशाली रिपोर्टिंग की तरफ बच्चों का रुझान पैदा होता है।
खेल-खेल में शिक्षा के द्वारा बच्चे कठिन विषयों को आत्मसात कर पाते हैं।शिक्षण को रूचिकर,सरल बनाकर समूह में कार्य करने की क्षमता व नेतृत्व क्षमता का विकास करते हुए समानता की भावना का विकास होता है जिससे सकारात्मक दृष्टिकोण बनता है।
भविष्य-सृजन जैसे नवाचार के माध्यम से बच्चों को भविष्य के लक्ष्य स्पष्ट होते हैं व उन्हे प्राप्त करने के लिए प्रेरित भी कर सकते हैं।
कला-शिल्प नवाचार द्वारा सर्वांगीण विकास होता है।चूंकि इससे बच्चों में विचारों के आदान-प्रदान की अभिव्यक्ति, अनुशासन, आत्म-सम्मान,व्यवस्थापन् जैसे गुण विकसित होते हैं।इस नवाचार से बच्चो का मस्तिष्क तीव्र गति से काम करता है जिससे बच्चे समस्याओं का समाधान करने में अधिक कुशाग्र हो पाते हैं।बच्चों में ‘करके सीखना’ का गुण विकसित होता है।
चित्र-कथा नवाचार से समावेशी शिक्षा का सृजन,बच्चों के सीखने के परिणाम में सुधार,रचनात्मकता का विकास होता है।
अभिनव शिक्षण तकनीक नवाचार भी संख्यातमक को गुणात्मक शिक्षा में परिवर्तित करने हेतु काफी कारगर साबित हुई है।मेडिटेशन,थीम आधारित उपस्थिति,कॉन्सेप्ट एप्लिकेशन जैसी तकनीक बच्चों को काफी मदद देती है।
विषय की रूपरेखा या कॉन्सेप्ट मैपिंग से सीखने के स्तर में स्वयं सुधार होता है चूंकि इसमें बच्चे मुख्य शब्द या सांकेतिक शब्दों द्वारा वैचारिक आलेख चित्रित करते हैं।
छात्र-प्रोफाइल/प्रलेखन को शिक्षा विग्यान का बीजमन्त्र कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसके द्वारा उपस्थिति, अनुशासन, अभिभावक-सहयोग,शैक्षिक व शिक्छणोत्तर क्रिया-कलापों की गुणवत्ता में सुधार सम्भव है।
सरल अंग्रेजी अधिगम से अंग्रेजी शब्दकोश बढता है। अंग्रेजी में रूचि बढने पर हीन-भावना का नाश व आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।बच्चे संप्रेषण करना सीखते हैं।
सामुदायिक सहभागिता नवाचार सामाजिक परिवेश में सकारात्मक भूमिका का निर्वहन व शिक्षा के महत्व को समझने हेतु आवश्यक है।इससे बच्चों में मानवीय मूल्यों का विकास व आपसी सामंजस्य स्थापित होता है।इसके लिए समय समय पर अभियान भी चलाया जाते हैं।जैसे-स्वच्छ भारत,बेटी बचाओ-बेटी पढाओ आदि।
अतः कहा जा सकता है कि शिक्षा को गुणवत्तापरक् बनाने हेतु विभिन्न नवाचारों का प्रयोग नियमित रूप से किया जाएगा तो बच्चों का सर्वांगीण विकास होगा इसमें संदेह होने की संभावना क्लेश मात्र भी नहीं रहेगी।
( लेखिका रचना शर्मा उत्तराखंड सरकार के राजकीय विद्यालय में अध्यापिका हैं )
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