अतुल्य लोकतंत्र के लिए वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद् ज्ञानेंद्र सिंह रावत की कलम से••
यह कटु सत्य है कि हिन्दुस्तान की पहचान ऋषियों, मुनियों, वीर, बलिदानियों, त्यागी, तपस्वियों और देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले देशभक्तों से है। इस ऐतिहासिक सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। ऐसे बलिदानियों से, उनके शौर्य से, उनके त्याग और समर्पण से हमारा इतिहास न केवल भरा पड़ा है, बल्कि इनकी गाथाओं की देश ही नहीं, दुनिया में सर्वत्र चर्चा भी है। वैसे जहां तक चर्चाओं का सवाल है, चर्चा तो देश में बेईमानों, बदमाशों, चोरों-उचक्कों, लफंगों, गद्दारों, आतताइयों, जुल्मियों, आतंकियों तक की होती है,होती रही है और आगे होती भी रहेगी।
इनमें ज़ुल्मी राजे-महाराजे-बादशाह और सामंत-जमींदार-जागीरदार भी रहे हैं, इस सच्चाई को झुठला नहीं सकते। इनमें कुछ मठाधीश, महंत और स्वयंभू संत कहलाने वाली विभूतियां भी हैं जिनके बारे में न केवल देश की जनता भलीभांति परिचित है, बल्कि उनका हश्र भी वह देख चुकी है। वे कारागार की शोभा भी बन चुके हैं और जो कुछ बचे-खुचे रह भी गये हैं, उनका हश्र भी जनता व देश के सामने लाने में समय अपनी भूमिका बखूबी निभाएगा, इसमें दो राय नहीं है। यह भी जगजाहिर है कि देर-सवेर उनकी करतूतें सबके सामने आ ही जाती हैं। इतिहास इसका जीता जागता प्रमाण है।
जैसा मैंने पहले ही कहा है कि वीरों, महापुरुषों, समाज सेवियों, त्यागियों, बलिदानियों और नायकों के इतिहास को लाख कोशिशें और साजिशों के बावजूद भुलाया नहीं जा सकता। राम, कृष्ण, बाल्मीकि, बुद्ध, महावीर,रैदास, समर्थ गुरू रामदास, सुकरात, अरस्तु, सूर, तुलसी, गुरु नानक, गुरु गोविंद सिंह, अब्राहम लिंकन, गांधी, अम्बेडकर, सरदार बल्लभ भाई पटेल, महामना मदन मोहन मालवीय, सुभाष चंद्र बोस, महाराणा प्रताप, भामाशाह, वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मी बाई, रानी दुर्गावती, बेगम हजरत महल, वीर कुँवर सिंह, नाना साहिब,तांत्या टोपे, झलकारी बाई, अवंती बाई, ऊदा देवी, स्वामी श्रृद्धानंद, भाई मतिदास,बंदा बैरागी, राजा महेन्द्र प्रताप, बंदा सिंह बहादुर, सरदार ऊधम सिंह, सरदार भगत सिंह,राजगुरू, सुखदेव,चंद्र शेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, दुर्गा भाभी, शचीन्द्र नाथ सान्याल, अशफाक उल्ला खान, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, महावीर सिंह राठौर, गणेश शंकर विद्यार्थी ,हवलदार अब्दुल हमीद आदि असंख्य महापुरुष, योद्धा, राजनेता सहित वे हजारों आठ से चौदह साल के नौनिहाल जिन्होंने देश की आजादी के लिए बरतानिया हुकूमत की गोलियां खाकर अपने को बलिदान कर दिया या फांसी के फंदे पर हंसते-हंसते झूल गये। उन्होंने देश को चुना, देश की आजादी को चुना, देश की रक्षा को सर्वोपरि माना और देश पर बलिदान हो गये। ऐसे बलिदानी महावीरों -महापुरुषों की संख्या हजारों में नहीं, लाखों में है। इन्होंने देश को प्रमुखता दी, देश की आजादी को अहम माना, देश की जनता के भविष्य, उसकी खुशहाली को अहमियत दी। इनका नाम देश के इतिहास में स्वर्णाच्छरों में अंकित रहेगा। इन पर और इनके कृतित्व पर, हमें और देशवासियों को सदैव गर्व है और रहेगा। आज भी जब जब इनकी भूमिका की बात आती है, तो इनका नाम सदैव आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।
और तो और कभी भी इन विभूतियों के प्रति अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किसी ने किया हो, ऐसा उदाहरण ढूंढे भी नहीं मिलता। हमारे देश में जहां गांधी जी को अहिंसा के पुजारी के रूप में, सरदार पटेल को लौह पुरुष के रूप में, पंडित जवाहर लाल नेहरू को पंचशील के सिद्धांत के प्रेरक के रूप में, बाबा साहब को संविधान के निर्माण की भूमिका के लिए, लाल बहादुर शास्त्री को कुशल राजनेता और जय जवान, जय किसान को महत्ता प्रदान करने के लिए, इंदिरा गांधी को कुशल कूटनीतिक व रणनीतिक योद्धा के रूप में, चौधरी चरण सिंह को किसान मसीहा के रूप में, राजीव गांधी को कंप्यूटर क्रांति के लिए, विश्वनाथ प्रताप सिंह को मंडल मसीहा के रूप में, अटल बिहारी वाजपेयी को कुशल राजनेता और परिपक्व वक्ता के रूप में, डा० मनमोहन सिंह को एक शांत और मौन प्रधानमंत्री के रूप में, डा० ए पी जे अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन के रूप में जाना जाता है जबकि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विश्व में एक नये सशक्त भारत के निर्माता,विकास पुरूष और महाशक्ति के रूप में स्थापित करने वाले व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रदेश को अपराध व भ्रष्टाचार मुक्त करने वाले राजनेता की ख्याति है। जनता में इनकी ईमानदार नेता के रूप में छवि है और जनता का इन दोनों को अपार प्यार,आदर और समर्थन हासिल है। जबकि इतिहास इस बात का सबूत है कि वह चाहे गद्दार रहा हो, बेईमान, चोर, डकैत, ज़ुल्मी, आतंकी रहा हो, माफिया हो, गरीबों पर अत्याचार करने वाला राजा या सामंत,जागीरदार या फिर राजनेता ही क्यों न रहा हो, उसका नाम कभी आदर या सम्मान के साथ नहीं लिया जाता। उसको सदैव तिरस्कार और घृणा की दृष्टि से ही देखा जाता रहा है, देखा जाता है और भविष्य में भी देखा जाता रहेगा।
गौरतलब है कि आजादी के आंदोलन के दौरान और आजादी मिलने के कई दशक बाद तक समाज और राजनेताओं तक के बीच लाख मनभेद-मतभेदों के बावजूद संवाद में,भाषा में शिष्टता और शालीनता रहती थी लेकिन आजकल देखने में यह आ रहा है कि छोटे कार्यकर्ताओं की बात तो दीगर है, बड़े और देश के शीर्ष राजनेताओं तक में संवाद में शिष्टता और शालीनता के दूर तक दर्शन दुर्लभ हैं। दिखाई तो यह पड़ रहा है कि अब उनका स्तर एक आम आदमी के स्तर से भी कोसों दूर है और गाली-गलौज व अपशब्दों का प्रयोग तो आम हो गया है जो नैतिकता की दृष्टि से किसी भी कीमत पर उचित नहीं कहा जा सकता। चुनाव के दौर में तो इस मामले में कहना या राजनेताओं से संयमित रहने, भाषा की मर्यादा के पालन करने की उम्मीद करना ही बेमानी है। उस दशा में दलीय कार्यकर्ताओं से भाषा की मर्यादा की आशा करना आसमान से तारे तोड़ने के समान है। यह राजनीति के स्तरहीन होने का जीवंत प्रमाण है।
आज देश के राजनीतिक परिदृश्य की दशा इतनी दयनीय है जितनी इससे पहले कभी नहीं रही। राजनीति में अधिकांशतः अब न शुचिता, न व्यवहार में शालीनता और न ईमानदारी दिखाई देती है। राजनीतिक दलों में भी वंशवाद और परिवारवाद का बोलवाला है। यह बीमारी उन दलों में घर कर चुकी है जो एक समय पानी पी पीकर दूसरे दलों, मुख्यतः देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को कोसते थे। आज वे वंशवाद के पुरोधा बन चुके हैं। राजनीति में जहां तक चरित्र हनन का सवाल है, इस बारे में तो लगता है जैसेकि देश में चरित्र हनन के कई विश्व विद्यालय चल रहे हों। सोशल मीडिया और व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी ने इसमें अहम भूमिका निबाही है। देखा तो यह जा रहा है कि यदि कोई नेता देश में अपराध, शोहदेगीरी, लूट-खसोट, आतंक, गुंडागर्दी, माफिया राज और भ्रष्टाचार के खात्मे की दिशा में आगे बढ़ता है तो उसे भिन्न-भिन्न तथ्यहीन -निराधार अनर्गल आरोपों का सामना करना पड़ता है, यहां तक कि सुनियोजित साजिश के तहत उसके चरित्र हनन का भी गंभीर प्रयास किया जाता है। जबकि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या उ०प्र० के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ऊपर न तो वंशवादी, परिवारवादी, जातिवादी, भ्रष्टाचार में संलिप्तता व कदाचरण का ही कोई आरोप है। न इन्होंने और राजनेताओं की तरह अकूत धन संपत्ति अर्जित की है, न करोडो़ं की राशि से अपने लिए महल बनवाया है और न किसी परिवारी जन को मंत्री, एम पी, एम एल ए, विधान पार्षद या पंचायत प्रमुख ही बनाया है। मोदी जी भी निपट अकेले हैं और योगी जी भी। योगी जी तो सन्यासी हैं, उनका घर तो मठ है। विचारणीय यह है कि ये दोनों किसके लिए धन इकट्ठा करेंगे। उस स्थिति में जबकि कुछ राजनेता जो जातिवादी राजनीति के पुरोधा हैं, उन्होंने न केवल अकूत धन संपत्ति अर्जित की है, उनके करोडो़ं के आवास हैं, व्यापारिक प्रतिष्ठान हैं और पूरा का पूरा कुनबा पत्नी, भाई,भतीजा,बेटा,बेटी,दामाद आदि आदि राजनीति में ही नहीं हैं, एम पी, एम एल ए, विधान पार्षद, हैं और मंत्री भी हैं और रहे भी है। इन सब पर गलत तरीके से अकूत धन संपत्ति के अर्जन के आरोप भी हैं। जबकि कुछ दशक पहले इनके परिवार और इनकी आर्थिक स्थिति क्या थी, इससे देशवासी भलीभांति परिचित हैं।
विडम्बना यह कि इस सबके बावजूद देश में प्रधानमंत्री मोदी पर जहां राजनैतिक दलों द्वारा अपमान जनक शब्दों,आरोपों और गालियों की अनवरत बौछार की जा रही है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जातिवादी,पिछडो़ं का विरोधी, हत्यारा और माफियाओं के संरक्षण दाता आदि आदि अनेकों अनर्गल निराधार आरोप क्या स्वच्छ राजनीति का परिचायक है। क्या प्रधानमंत्री जैसे प्रतिष्ठित राजनेता जिसकी छवि की देश ही नहीं विदेशों में भी ख्याति है, को गालियां देना, अपशब्द कहना किस राजनीति की ओर इशारा करती है। क्या यह दुनिया के सबसे अहम लोकतांत्रिक देश की प्रतिष्ठा के लिए शर्मनाक नहीं है। यही नहीं इससे क्या दुनिया में हमारे देश के प्रतिपक्षी नेताओं की छवि भी नहीं प्रभावित होगी। उस स्थिति में जबकि भाषा के गिरते स्तर पर देश के चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के लिए एडवाइजरी जारी की है और चेतावनी जारी की है कि वे भाषा पर संयम रखें। चुनावी बहस को उच्च स्तरीय बनाये रखें अन्यथा ऐसे दरों व नेताओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए बाध्य होना पड़ेगा। अगर दूसरे दलों के नेताओं को अपशब्द बोलना गर्व की बात है तो उस दशा में गर्व की परिभाषा क्या होगी,यह समझ से परे है। शायद देश की सबसे बड़ी विरोधी पार्टी कांग्रेस इस पर कोई अपनी अलग ही परिभाषा दे। वह क्या होगी, वह उसके बुद्धि और विवेक के पैमाने का प्रमाण होगा।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)